महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 26 श्लोक 18-38

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षड्-विंश (26) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षड्-विंश अध्याय: श्लोक 18-38 का हिन्दी अनुवाद

महाराज ! तब सारथि घोड़ों को तेजी से हाँकता हुआ उसी ओर चल दिया जहाँ महाधनुर्धर भीमसेन आपके सैनिकों के साथ युद्ध कर रहे थे। मान्यवर नरेश ! धृष्टद्युम्न के रथ को वहाँ से भागते देख कृपाचार्य ने सैंकड़ों बाणों की वर्षा करते हुए उनका पीछा किया। शत्रुओं का दमन करने वाले कृपाचार्य ने बारंबार शंख ध्वनि की और जैसे इन्द्र नमुचि को डराया था,उसी प्रकार उन्होंने धृष्टद्वुम्न को भयभीत कर दिया। दूसरी ओर समरांगण में दुर्जय वीर शिखण्डी को,जो भीष्म के लिये मृत्यु स्वरूप था,कृतवर्मा ने बारंबार मुसकराते हुए से रोका। हृदिकवंशी यादवों के महारथी वीर कृतवर्मा को सामने पाकर शिखण्डी ने उसके गले की हँसली पर पँाच तीखे भल्लें द्वारा प्रहार किया। राजन् ! तब महराथी कृतवर्मा ने अत्यन्त कुपित हो साठ बाणों से शिखण्डी को घायल करके एक से हँसते-हँसते उसका धनुष काट डाला। तत्पश्चात् द्रुपद के बलवान् पुत्र ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर कृतवर्मा से क्रोध पूर्वक कहा- ‘अरे ! खड़ा रह,खड़ा रह ‘। राजेन्द्र ! फिर सोने की पाँख वाले नब्बे पैने बाण उसने चलाये,परंतु वे कृतवर्मा के कवच से फिसल कर गिर गये। उन्हें व्यर्थ होकर पृथ्वी पर गिरा देख शिखण्डी ने तीखे क्षुरप्र से कृतवर्मा के धनुष के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। धनुष कअ ताने पर कृतवर्मा की दशा टूटे सींग वाले बैल के समान हो गई। उस समय शिखण्डी ने कुपित होकर उसकी दोनों भुजाओं तथा छाती में अस्सी बाण मारे। कृतवर्मा उन बाणों से क्षत-विक्षत होर अत्यन्त कुपित हो उठा और जैसे घड़े के मुँह से जल गिर रहा हो,उसी प्रकार वह अपने अंगों से रक्त वमन करने लगा। राजन् ! खून से लथ पथ हुआ कृतवर्मा वर्षा से भीगे हुए गेरू के पहाड़ समान शोभा पा रहा था। तदनन्तर शक्तिशाली कृतवर्मा ने बाण और प्रत्ंचा सहित दुसरा धनुष हाथ में लेकर शिखण्डी के कंधों पर अपने बाण समूहों द्वारा गहरी चोट पहुँचायी। कंधों में धँसे हुए उन बाणों से शिखण्डी वैसी ही शोभा पाने लगा,जैसे कोई महान् वृक्ष अपनी शाखा-प्रशाखाओं के कारण अधिक विस्तृत दिखाई देता हो। वे दोनों महान् वीर ऐक दूसरे को अत्यन्त घायल करके खुन से इस प्रकार नहा गये थे,मानो रक्त के सरोवर में बारंबार डुबकी लगाकर आये हों। उस समय उक दूसरे के सींगों से चोट खाये हुए दो साँड़ के समान उन दोनों की बड़ी शोभा हो रही थी। एक दूसरे के वध के लिए प्रयत्न करते हुए वे दोनों महारथी अपने रथ के द्वारा वहाँ सहस्त्रों बार मण्डलाकार गति से विचरते थे। महाराज ! कृतवर्मा ने सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख वाले सत्तर बाणों से दु्रपद पुत्र शिखण्डी को घायल कर दिया। तत्पश्चात् प्रहार करने वाले योद्धाओं में श्रेष्ठ कृतवर्मा ने उसके ऊपर समरांगण में बड़ी उतावली के साथ प्राणान्तकारी बाण छोड़ा। राजन् ! उस बाण से आहत हो शिखण्डी तत्काल मूर्छित हो गया। उसने सहसा माहाच्छन्न होकर ध्वजदण्ड का सहारा ले लिया। कृतवर्मा के बाणों से संतप्त हो बारंबार लंबी साँस खींचते हुए रथियों में श्रेष्ठ शिखण्डी को उसका सारथि तुरंत रणभूमि से बाहर हटा ले गया। प्रभो ! शूरवीर द्रुपद पुत्र के पराजित हो जाने पर सब ओर से मारी जाती हुई पाण्डव सेना भागने लगी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में संकुल युद्ध विषयक छब्बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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