महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 34 श्लोक 75-94

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चतुस्त्रिंश (34) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: चतुस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 75-94 का हिन्दी अनुवाद

पितामह बोले-देवताओं ! तुमने जो कुछ कहा है,उसमें तनिक भी मिथ्या नहीं है। मैं युद्ध करते समय भगवान शंकर के घोड़ों को काबू में रक्खूँगा। तदनन्तर लोकसृष्टा भगवान पितामह देव ने जो जगत् के प्रपितामह हैं,उपयुक्त बात कहकर उपनी जटाओं के बोझ को बांधलिया और मृगचर्म के वस्त्र को अच्छी तरह कसकर कमण्डलु को अलग रख दिया। ततपश्चात् वे भगवान ब्रह्मा हाथ में चाबुक लेकर तत्काल उस रथ पर जा चढ़े। इस प्रकार देवताओं ने भगवान शंकर के सारथि के पद पर उन्हें प्रतिष्ठित कर दिया। जब उस लोकपूजित रथ पर ब्रह्माजीचढ़ रहे थे,उस समय वायु के समान वेगशाली घोड़े धरती पर माथा टेककर बैठ गये थे। अपने तेज से प्रकाशित होते हुए भगवान ब्रह्मा ने रथारूढत्र होकर घोड़ों की बागडोर और चाबुक दोनों वस्तुएँ अपने हाथ में ले ली। तत्पश्चात् वायु के समान तीव्रगति वाले उन घोड़ों को उठाकर सुरश्रेष्ठ भगवान ब्रह्मा ने महादेवजी से कहा- ‘अब आप रथ पर आरूढ़ होईये। तब विष्णु,चन्द्रमा और अग्नि से उत्पन्न हुए उस बाण को हाथ में लेकर महादेवजी अपने धनुश के द्वारा शत्रुओं को कम्पित करते हुए उस रथ पर चढ़ गये। रथ पर आरूढ़ हुए देवेश्वर शिव की महर्षियों,गन्धर्वों,देवसमूहों तथा अप्सराओं के समुदाय ने स्तुति की। खंग,धनुषऔर बाण लेकर शोभा पाते हुए वरदायक महादेवजी अपने तेज से तीनों लोकों को प्रकाशित करते हुए रथ पर स्थित हो गये। तब महादेवजी ने पुनः इन्द्र आदि देवताओं से कहा- ‘शायद ये दैत्यों को न मारें ‘ऐसा समझकर तुम्हें किसीर प्रकार भी शोक नहीं करना चाहिये। तुम लोग असुरों को इस बाण से ‘मरा हुआ’ही समझो। यह सुनकर उन देवताओं ने कहा- ‘प्रभो ! आपका कथन सत्य है। अवश्य ही वे दैत्य मारे गये। शक्तिशाली भगवान जो कुछ कह रहै हैं,वह वचन मिथ्या नहीं हो सकतायह सोचकर देवताओं को बड़ा संतोष हुआ। राजन् ! तदनन्तर जिसकी कहीं उपमा नहीं थी,उस विशाल रथ के द्वारा देवेश्वर महादेवजी समस्त देवताओं से घिरे हुए वहाँ से चल दिये। उस समय उनके अपने पार्षद भी महायशस्वी महादेवजी की पूजा कर रहै थे। शिव के दुर्धर्ष पार्षद नृत्य करते और परस्पर एक दूसरे को डांटते हुए चारों और दौड़ लगाते थे। अन्य कितने ही पार्षद (भूत-प्रेतादि) मांसभक्षी थे। महान् भाग्यशाली और उत्तम गुण सम्पन्न तपस्वी ऋषियों,देवताओं तथा अन्य लोगों ने भी सब प्रकार से महादेवजी की विजय के लिए शुभाशंसा की। नरश्रेष्इ ! सम्पूर्ण लोकों को अभय देने वाले देवेश्वर महादेवजी के इस प्रकार प्रस्थान करने पर सारा जगत् संतुष्ट हो गया। देवता भी बड़े प्रसन्न हुए। राजन् ! ऋषिगण नाना प्रकार के स्तोत्रों का पाठ करके देवेश्वर महादेव की स्तुति करते हुए बारंबार उनका तेज बढ़ा रहै थे। उनके प्रसथान के समय सहस्त्रों,लाखों और अरबों गन्धर्व नाना प्रकार के बाजे बजा रहै थे। रथ पर आरूढ़ हो वरदायक भगवान शंकर जब असुरों की ओर चले,तब वे विश्वनाथ ब्रह्माजी को साधुवाद देते हुए मुसकराकर बोले-। ‘देव ! जिस ओर दैत्य हैं,उधर ही चलिये और सावधान होकर घोड़ों का हाँकिये। आज रणभूमि में जब मैं शत्रुसेना का संहार करने लगूँ,उस समय आप मेरी इन दोनों भुजाओं का बल देखियेगा ‘।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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