महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 46 श्लोक 46-65
षट्चत्वारिंश (46) अध्याय: कर्ण पर्व
‘देखो’ चारों दिशाओं में नाना प्रकार के पशुसमुदाय तथा बलवान एवं स्वाभिमानी सिंह सूर्य की ओर देख रहे है। 'देखो' सहस्त्रों घोर कक्ड़ और गीध एकत्र होकर सामने खड़े हैं और आपस में कुछ बोल भी रहे हैं। ‘कर्ण। तुम्हायरे विशाल रथ में बंधे हुए ये रंगीन और श्रेष्ठड चंवर सहसा प्रज्वभलित हो उठे हैं और तुम्हाकरी ध्वयजा भी जोर-जोर से हिलने लगी है। 'देखो, ये तुम्हारे विशालकाय, महान् वेगशाली, दर्शनीय तथा आकाश में गरुड के समान उड़ने वाले घोड़े थर्थर कांप रहे हैं। 'कर्ण। जब ऐसे अपशकुन प्रकट हो रहे हैं तो निश्चय ही आज सैकड़ों और हजारों नरेश मारे जाकर रणभूमि में शयन करेंगे। ‘राधानन्द न। सब ओर शंखों, ढोलों और मृदगडों की रोमाचकारी तुमुल-ध्वबनि सुनायी दे रही है। ‘कर्ण। बाणों के भांति-भांति के शब्दम, मनुष्यों , घोड़ों और रथों के कोलाहल तथा महामनस्वीं वीरों की प्रत्यंचा और दस्ता-नों के शब्दड सुनो। रथों की ध्वजाओं पर सोने और चांदी के तारों से खचित वस्त्रों की बनी हुई शिल्पियों द्वारा निर्मित बहुरंगी पताकाएं हवा के झोंकते से हिलती हुई कैसी शोभा पा रही हैं। ‘कर्ण। देखो, अर्जुन के रथ की इन पताकाओं में सुवर्णमय चन्द्र्मा, सूर्य और तारों के चिह्र बने हुए हैं और छोटी छोटी घंटियां लगी हुई हैं। रथ पर फहराती हुई ये पताकाएं मेघों की घटा में बिजली के समान प्रकाशित हो रही हैं। ‘कर्ण देवताओं के विमान जैसे रथ पर ये ध्वंज हवा के झोंके खा खाकर कड़कड शब्द। करते हुए शोभा पा रहे हैं। ‘ये महामनस्वीे पाच्चाल वीरों के रथ हैं, जिन पर पताकाएं फहरा रही है। यह देखो, श्रेष्ठओ वानरयुक्त ध्व जावाले अपराजित वीर कुन्तचकुमार अर्जुन आक्रमण करने के लिये इधर ही आ रहे हैं।
‘अर्जुन के ध्वलज के अग्रभाग पर यह सब ओर से देखने योग्यह भयंकर वानर दृष्टिगोचर होता है, जो शत्रुओं का दु:ख बढ़ाने वाला है। ‘ये बुद्धिमान् श्रीकृष्ण के शंख, चक्र, गदा, शार्ग्ड धनुष अत्यन्त शोभा पा रहे हैं। उनके वक्ष:स्थनल पर कौस्तुभमणि सबसे अधिक प्रकाशित हो रही है। ‘हाथों में शंख और गदा धारण करने वाले ये अत्यैन्तय पराक्रमी वसुदेवनन्दोन श्रीकृष्ण वायु के समान वेगशाली श्वेात घोड़ों को हांकते हुए इधर ही आ रहे हैं। ‘सव्यसाची अर्जुन के हाथ से खींचे गये गाण्डीकव धनुष की यह टकड़ार होने लगी। उनके कुशल हाथों से छोड़े गये ये पैने बाण शत्रुओं के प्राण ले रहे हैं । युद्ध छोड़कर पीछे न हटने वाले राजाओं के मस्त्कों से रणभूमि पटती जा रही है। वे मस्तीक पूर्ण चन्द्रपमा के समान मनोहर मुख और लाल-लाल विशाल नेत्रों से सुशोभित हैं। ‘अस्त्र उठाये हुए युद्ध-कुशल वीरों की ये परिघ-जैसी मोटी और पवित्र सुगन्धरयुक्त चन्दंन से चर्चित भुजाएं आयुधोंसहित काटकर गिरायी जाने लगी हैं। ‘जिनके नेत्र’ जीभ और आंतें बाहर निकल आयी हैं, वे गिरे और गिराये जाते हुए घुड़सवारों सहित घोड़े क्षत विक्षत होकर पृथ्वीऔ पर सो रहे हैं । ‘ये पर्वतशिखरों के समान विशालकाय हाथी अर्जुन के द्वारा मारे जाकर छिन्न-भिन्न हो पर्वतों के समान धराशायी हो रहे हैं।
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