महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 5 श्लोक 45-60
पञ्चम (5) अध्याय: कर्ण पर्व
घटोत्कच ने पराक्रम करके गर्दभ युक्त सुन्दर रथ वाले राक्षसराज अलम्बुष को यमलोक पहुँचा दिया है। सूतपुत्र राधा नन्दन कर्ण, उसके महारथी भाई तथा समस्त केकय भी सव्यसाची अर्जुन के हाथ से मारे गये। मालव, मद्रक, भयकर कर्म करने वाले द्राविड़, यौधेय, ललित्य, क्षुद्रक, उशीनर, मावेल्लक, तुण्डिकेर, सावित्री पुत्र, प्राच्य, प्रतीच्य, उछीच्य और दक्षिणात्य, पैदल समूह, दस लाख घोड़े, रथों के समूह और बड़े - बड़े गजराज अर्जुन के हाथ से मारे गये हैं। राजन् ! पालन निपुण पुरुषों ने जिनका दीर्घकाल से पालन - पोषण किया था, जो युद्ध में सदा सावधान रहने वाले शूरवीर थे, वे सभी अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन के हाथ से ध्वज, आयुध, कवच, वस्त्र और आभूषणों सहित समरांगण में मारे गये। महाराज ! एक दूसरे के वध की इच्छा रखने वाले असीम बलशाली अन्यान्य योद्धा भी मौत के घाट उतर चुके हैं। राजन् ! ये तथा और भी बहुत से नरेश रण भूमि में अपने दल बल के साथ सहस्त्रों की संख्या में मारे गये हैं। आप मुझसे जो कुछ पूछ रहे थे, वह सब मैंने बता दिया।
राजन् ! इस प्रकार कर्ण और अर्जुन के संग्राम में यह भारी संहार हुआ है। जैसे देवराज इन्द्र ने वृत्रासुर को, श्रीरामचन्द्र जी ने रावण को, नरक शत्रु श्रीकृष्ण ने नरक और मुरु को तथा भृगुवंशी परशुरामजी ने तीनों लोकों को मोहित करने वाला अत्यन्त घोर युद्ध करके समरांगण में रणदुर्मद शूरवीर कृतवीर्य कुमार अर्जुन को उसके भाई बन्धुओं सहित मार डाला था, जैसे स्कन्द ने महिषासुर का और रुद्र ने अन्धकासुर का संहार किया था, उसी प्रकार अर्जुन ने योद्धाओं में श्रेष्ठ युद्ध दुर्मद कर्ण को द्वैरथ युद्ध में उसके मन्त्री और बन्धुओं सहित मार डाला।
जिससे आपके पुत्रों ने विजय की आशा लगा रक्खी थी, जो वैर का मुख बना हुआ था, उससे पाण्डु पुत्र अर्जुन पार हो गये। महाराज ! पहले आपने हितैषी बन्धुओं के कहने पर भी जिसकी ओर ध्यान नहीं दिया, वही यह महान् विनाशकारी संकट प्राप्त हुआ है। राजन् ! आपने राज्य की कामना रखने वाले अपने पुत्रों के हित की इचछा रखते हुए सदा उन पाण्डवों के अहित ही किय हैं; आपके उन्हीं कर्मों का यह फल प्राप्त हुआ है।
« पीछे | आगे » |