महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 69 श्लोक 36-51
एकोनसप्ततितम (69) अध्याय: कर्ण पर्व
जिसकी बुद्धि शुद्ध (निष्काम) है, वह पुरुष यदि अत्यन्त कठोर होकर भी, जैसे अंधे पशु को मार देने से बलाक नामक व्याध पुण्य का भागी हुआ था, उसी प्रकार महान् पुण्य प्राप्त कर ले तो क्या आश्चर्य है । इसी तरह जो धर्म की इच्छा तो रखता है, पर मूर्ख और अज्ञानी, वह नदियों के संगम पर बसे हुए कौशिक मुनि की भांति यदि अज्ञानपूर्वक धर्म करके भी महान् पाप का भागी हो जाय तो क्या आश्चर्य है । अर्जुन उवाच अर्जुन बोले- भगवन्। बलाक नामक व्याध और नदियों के संगम पर रहने वाले कौशिक मुनि की कथा कहिये, जिससे मैं इस विषय को अच्छी तरह समझ सकूं । वासुदेव उवाच भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा- भारत। प्राचीनकाल में बलाक नाम से प्रसिद्ध एक व्याध रहता था, जो अपनी स्त्री और पुत्रों की जीवन रक्षा के लिये ही हिंसक पशुओं को मारा करता था, कामनावश नहीं । वह बूढ़े माता-पिता तथा अन्य आश्रित जनों का पालन पोषण किया करता था। सदा अपने धर्म में लगा रहता, सत्य बोलता और किसी की निन्दा नहीं करता था।एक दिन वह पशुओं को मार लाने के लिये वन में गया; किंतु कहीं किसी हिंसक पशु को न पा सका। इतने ही में उसे एक पानी पीता हुआ हिंसक जानवर दिखायी दिया, जो अंधा था, नाक से सूंघकर ही आंख का काम निकाला करता था । यद्यपि वैसे जानवर को व्याध ने पहले कभी नहीं देखा था, तो भी उसने मार डाला। उस अंधे पशु के मारे जाते ही आकाश से व्याध पर फूलों की वर्षा होने लगी । साथ ही उस हिंसक पशुओं को मारने वाले व्याध को ले जाने के लिये स्वर्ग से एक सुन्दर विमान उतर आया, जो अप्सराओं के गीतों और वाद्यों की मधुर ध्वनि से मुखरित होने के कारण बड़ा मनोरम जान पड़ता था । अर्जुन। लोग कहते हैं कि उसे जन्तु ने पूर्वजन्म में तप करके सम्पूर्ण प्राणियों का संहार कर डालने के लिये वर प्राप्त किया था; इसीलिये ब्रह्माजी ने उसे अन्धा बना दिया था । इस प्रकार समस्त प्राणियों का अन्त कर देने के निश्चय से युक्त उस जन्तु को मारकर बलाक स्वर्गलोक में चला गया; अत: धर्म का स्वरुप अत्यन्त दुर्ज्ञेय है । इस तरह कौशिक नाम का तपस्वी ब्राह्मण था, जो बहुत पढ़ा-लिखा या शास्त्रज्ञ नहीं था। वह गांव के पास ही नदियों के संगम पर निवास करता था । धनंजय। उसने यह नियम ले लिया था कि मैं सदा सत्य ही बोलूंगा। इसलिये उन दिनों वह सत्यवादी के नाम से विख्यात हो गया था । एक दिन की बात है, कुछ लोग लुटेरों के भय से छिपने के लिये उस वन में घुस गये; परंतु वे लुटेरे कुपित हो वहां भी उन लोगों का यत्नपूर्वक अनुसंधान करने लगे । उन्होंने सत्यवादी कौशिक मुनि के पास आकर पूछा 'भगवन्। बहुत से लोग जो इधर ही आये हैं, किस रास्ते से गये हैं मैं सत्य की साक्षी से पूछता हूं। यदि आप उन्हें जानते हों तो बताइये । उनके इस प्रकार पूछने पर कौशिक मुनि ने उन्हें सच्ची बात बता दी-'इस वन में जहां बहुत से वृक्ष, लताएं और झाडियां हैं, वहीं वे गये हैं। इस प्रकार कौशिक ने उन दस्युओं को यथार्थ बात बता दी ।
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