महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 70 श्लोक 1-11

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सप्‍ततितम (70) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व:सप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद


भगवान् श्रीकृष्‍ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा-भंग भ्रातृवध तथा आत्‍मघात से वचाना और युधिष्ठिर को सान्‍त्‍वना देकर संतुष्‍ट करना संजय उवाच संजय कहते है- राजन्। भगवान् श्रीकृष्‍ण के ऐसा कहने पर कुन्‍तीकुमार अर्जुन ने हितैषी सखा के उस वचन की बड़ी प्रशंसा की। फिर वे हठपूर्वक धर्मराज के प्रति ऐसे कठोर वचन कहने लगे, जैसे उन्‍होंने पहले कभी नहीं कहे थे । अर्जुन उवाच अर्जुन बोले- राजन्। तू तो स्‍वयं ही युद्ध से भागकर एक कोस दूर आ बैठा है, अत: तू मुझसे न बोल, न बोल। हां, भीमसेन को मेरी निन्‍दा करने का अधिकार है, जो कि समस्‍त संसार के प्रमुख वीरों के साथ अकेले ही जुझ रहे हैं । जो यथासमय शत्रुओं को पीड़ा देते हुए युद्धस्‍थल में उन समस्‍त शौर्यसम्‍पन्न भूपतियों, प्रधान-प्रधान रथियों, श्रेष्‍ठ गजराजों, प्रमुख अश्वारोहियों, असंख्‍य वीरों, सहस्‍त्र से भी अधिक हाथियों, दस हजार काम्‍बोज देशीय अश्वों तथा पर्वतीय वीरों का वध करके जैसे मृगों को मारकर सिंह दहाड़ रहा हो, उसी प्रकार भयंकर सिंहनाद करते हैं, जो वीर भीमसेन हाथ में गदा ले रथ से कूदकर उसके द्वारा रणभूमि में हाथी, घोड़ों एवं रथों का संहार करते हैं तथा ऐसा अत्‍यन्‍त दुष्‍कर पराक्रम प्रकट इन्‍द्र के समान हैं तथा ऐसा अत्‍यन्‍त दुष्‍कर पराक्रम प्रकट कर रहे हैं जैसा कि तू कभी नहीं कर सकता, जिनका पराक्रम इन्‍द्र के समान है, जो उत्तम खंड, चक्र और धनुष के द्वारा हाथी, घोड़ों, पैदल-योद्धाओं तथा अन्‍यान्‍य शत्रुओं को दग्‍ध किये देते हैं और जो पैरों से कुचलकर दोनों हाथों से वैरियों का विनाश करते हैं, वे महाबली, कुबेर और यमराज के समान पराक्रमी एवं शत्रुओं की सेना का बलपूर्वक संहार करने में समर्थ भीमसेन ही मेरी निन्‍दा करने के अधिकारी हैं। तू मेरी निन्‍दा नहीं कर सकता; क्‍योंकि तू अपने पराक्रम से नहीं, हितैषी सुह्रदों द्वारा सदा सुरक्षित होता है । जो शत्रुपक्ष के महारथियों, गजराजों, घोड़ों और प्रधान-प्रधान पैदल योद्धाओं को भी रौंदकर दुर्योधन की सेनाओं में घुस गये हैं, वे एकमात्र शत्रुदमन भीमसेन ही मुझे उलाहना देने के अधिकारी हैं । जो कलिग, वंग, अंग, निषाद और मगध देशो में उत्‍पन्न सदा मदमत्त रहने वाले तथा काले मेघों की घटा के समान दिखायी देने वाले शत्रुपक्षीय अनेकानेक हाथियों का संहार करते हैं, वे शत्रुदमन भीमसेन ही मुझे उलाहना देने के अधिकारी हैं । वीरवर भीमसेन यथासमय जुते हुए रथ पर आरुढ़ हो धनुष हिलाते हुए मुट्ठीभर बाण निकालते और जैसे मेघ जल की धारा गिराते हैं, उसी प्रकार महासमर में बाणों की वर्षा करते हैं । मैंने देखा है आज भीमसेन ने युद्धस्‍थल में अपने बाणों द्वारा शत्रुपक्ष के आठ सौ हाथियों को उनके कुम्‍भस्‍थल, शुण्‍ड और शुण्‍डाग्र भाग काटकर मार डाला है, वे शत्रुहन्‍ता भीमसेन ही मुझ से कठोर वचन कहने के अधिकारी हैं ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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