महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 77 श्लोक 1-15

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सप्तसप्ततितम (77) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: सप्तसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन और भीमसेन द्वारा कौरव सेना का संहार तथा भीमसेन से शकुनि की पराजय एवं दुर्योधनादि धृतराष्ट्र पुत्रों का सेना सहित भागकर कर्ण का आश्रय लेना

संजय कहते हैं- राजन् ! उधर युद्धथल में शत्रुओं के रथों की घर्घराहट और सिंहनाद सुनकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा – प्रभो ! घोड़ों को जल्दी-जल्दी हाँकियों। अर्जुन बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उन से कहा – यह लो, मैं बहुत जल्दी उस स्थान पर जा पहुँचता हूँ , जहाँ भीम सेन खडे़ हैं। जैसे देवराज इन्द्र हाथ में वज्र लेकर जम्भासुर को मार डालने की इच्छा से मन में भयानक क्रोध भरकर चले थे, उसी प्रकार अर्जुन भी शत्रुओं को जीतने के लिये भयंकर क्रोध से युक्त हो सुवर्ण, मुक्ता और मणियों के जाल से आबद्ध हुए हिम और शंख के समान श्वेत कान्ति वाले अश्वों द्वारा यात्रा कर रहे थे । उस समय क्रोध में भरे हुए शत्रुपक्ष के पुरूषसिंह वीर, रथी, घुडसवार, हाथीसवार और पैदलों के समूह अपने बाणों की सनसनाहट, पहियों की घर्घराहट तथा टापों के टप-टप की आवाज से सम्पूर्ण दिशाओं और पृथ्वी को प्रतिध्वनित करते हुए अर्जुन का सामना करने के लिये आगे बढ़े। मान्यवर ! फिर तो त्रिलोकी के राज्य के लिये जैसे असुरों के साथ भगवान् विष्णु का युद्ध हुआ था, उसी प्रकार विजयी वीरों में श्रेष्ठ कुन्तीकुमार अर्जुन का उन योद्धाओं के साथ घोर संग्राम होने लगा, जो उनके शरीर, प्राण और पापों का विनाश करने वाला था।
उनके चलाये हुए छोटे-बडे़ समान अस्त्र-शस्त्रों को अकेले किरीटमाली अर्जुन ने छुर, अर्धचन्द्र तथा तीखे भल्लों से काट डाला । साथ ही उनके मस्तकों, भुजाओं, छत्रों, चवरों, ध्वजाओं, अश्रों, रथों, पैदल समूहों तथा हाथियों के भी टुकडे़-टुकडे़ कर डाले । वे सब अनेक टुकडों में बँटकर विरूप हो आँधी के उखाडे़ हुए वनों के समान पृथ्वी पर गिर पडे़। सोने की जालियों से आच्छादित, वैजयन्ती ध्वजा से सुशोभित तथा योंद्धाओं द्वारा सुसंगित किये हुए बडे़-बडे़ हाथी सुवर्णमय पंखवाले बाणों से व्याप्त हो प्रज्वलित पर्वतों के समान प्रकाशित हो रहे थे। जैसे पूर्वकाल में इन्द्र ने बलासुर का विनाश करने के लिये बडे़ वेग से यात्रा की थी, उसी प्रकार अर्जुन कर्ण को मार डालने की इच्छा से इन्द्र के वज्रसदृश उत्तम बाणों द्वारा शत्रुओं के हाथी, घोडों और रथों को विदीर्ण करते हुए शीघ्रतापूर्वक आगे बढे़। तदनन्तर जैसे मगर समुद्र में घुस जाता है, उसी प्रकार शत्रुओं का दमन करने वाले पुरूष सिंह महाबाहु अर्जुन ने आपकी सेना के भीतर प्रवेश किया। राजन् ! उस समय हर्ष में भरे हुए आपके रथियों और पैदलों सहित हाथीसवार तथा घुड़सवार सैनिक जिनकी संख्या बहुत अघिक थी, पाण्डुपुत्र अर्जुन पर टूट पडे़। पार्थ पर आक्रमण करते हुए उन सैनिकों का महान् कोलाहल विक्षुब्ध समुद्र के जल की गम्भीर ध्वनि के समान सब ओर गूँज उठा। वे महारथी संग्राम में प्राणों का भय छोड़कर बाघ के समान पुरूष सिंह अर्जुन की ओर दौडे़। परंतु जैसे आँधी बादलों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार अर्जुन बाणों की वर्षा पूर्वक आक्रमण करने वाले उन समस्त योद्धाओं का संहार कर डाला। तब वे महाधनुर्धर योद्धा संगठित हो रथसमूहों के साथ चढ़ाई करके अर्जुन को तीखे बाणों से घायल करने लगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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