महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 83 श्लोक 1-15

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त्रयशीतितम (83) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: त्रयशीतितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

भीमद्वारा दुःषासन का रक्तपान और उसका वध, युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्रार

राजकुमार दुःशासन ने दुष्कर पराक्रम प्रकट किया। उसने एक बाण से भीमसेन का धनुष काट डाला और साठ बाणों से उनके सारथि को भी घायल कर दिया। ऐसा करके उस वेगशाली राजपुत्र ने भीमसेन पर नौ बाणों का प्रहार किया। इसके बाद महामना दुःशासन ने बड़ी फूर्ती के साथ बहुत-से उत्तम बाणों द्वारा भीमसेन को अच्छी तरह बींध डाला। तब क्रोध में भरे हुए वेगशाली भीमसेन ने आपके पुत्रपर एक भयंकर शक्ति छोड़ी। प्रज्वलित उल्का के समान उस अत्यन्त भयानक शक्ति को सहसा अपने ऊपर आती देख आपके महामनस्वी पुत्र ने कानतक खींचकर छोडे़ हुए दस बाणों के द्वारा उसे काट डाला। उसके इस अत्यन्त दुष्कर कर्म को देखकर सभी योद्धा बडे़ प्रसन्न हुए और उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। फिर आपके पुत्र ने तुरंत ही एक बाण मारकर भीमसेन को गहरी चोट पहुंचायी। इससे फिर उन्हें बड़ा क्रोध हुआ। वे उसकी ओर देखकर शीघ्र ही रोष से प्रज्वलित हो उठे।। और बोले-वीर ! तूने तो आज मुझे शीघ्रतापूर्वक बाण मारकर बहुत घायल कर दिया; किंतु अब स्वयं भी मेंरी मदा का प्रहार सहन-कर उच्चस्वर से ऐसा कहकर कुपित हुए भीमसेन ने दुःशासन के वध के लिये एक भयंकर गदा हाथ में ली।
फिर वे इस प्रकार बोले-दुरात्मन् ! आज इस संग्राममें में तेरा रक्त पान करूँगा। भीम के ऐसा कहते ही आपके पुत्र ने उनके ऊपर बडे़ वेग से एक भयंकर शक्ति चलायी, जो मृत्युरूप जान पड़ती थी। इधर से रोष में भरे हुए भीमसेन ने भी अपनी अत्यन्त घोर गदा घुमाकर फेंकी। वह गदा रणभूमि में दुःशासन की उस शक्ति को टूट-टूट करती हुई सहसा उसके मस्तक में जा लगी। मदस्त्रावी गजराज के समान अपने घावों रक्त बहाते हुए भीमसेन ने उस तुमुल युद्ध में दुःशासन पर जो गदा चलायी थी, उसके द्वारा उन्होंने उसे बलपूर्वक दस धनुष (चालीस हाथ) पीछे हटा दिया। दुःशासन उस वेगवती गदा के आघात से धरतीपर गिरकर काँपने और अत्यन्त वेदना से व्याकुल हो छटपटाने लगा। उसका कवच टूट गया, आभूषण और हार बिखर गये तथा कपडे़ फट गये थे। नरेन्द्र ! उस गदा ने गिरते ही दुःशासन के रथको चूर-चूर कर डाला और सारथि सहित उसके घोड़ों को भी मार डाला। दुःशासन को उस अवस्था में देखकर समस्त पाण्डव और पांचाल योद्धा हर्ष में भरकर सिंहनाद करने लगे। इस प्रकार वृकोदर भीम दुःशासन को धराशायी करके हर्ष से उल्लसित हो सम्पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्वनित करते हुए जोर-जोर से गर्जना करने लगे। अजमीढ़वंशी नरेश ! उस समय सिंहनाद से भयभीत हो आसपास खडे़ हुए समस्त योद्धा मूच्र्छित होकर गिर पडे़।
फिर भीमसेन भी शीघ्रतापूर्वक रथ से उतरकर बडे़ वेग से दुःशासन की ओर दौडे़। उस समय वेगशाली भीमसेन को आपके पुत्रों द्वारा किये गये शत्रुतापूर्ण बर्ताव याद आने लगे थे।। राजन् ! वहां चारों ओर जब प्रधान-प्रधान वीरों का वह अत्यन्त घोर तुमुल युद्ध चल रहा था, उस समय अचिन्त्यपराक्रमी महाबाहु भीमसेन दुःशासन को देखकर पिछली बातें याद करने लगे-देवी द्रौपदी रजस्वला थी। उसने कोई अपराध नहीं किया था। उसके पति भी उसकी सहायता से मुँह मोड़ चुके थे तो भी इस दुःशासन ने द्रौपदी के केश कपडे़ और भरी सभी में उसके वस्त्रों का अपहरण किया। उसने और भी जो-जो दुःख दिये थे, उन सबको याद करके भीमसेन घीकी आहुति से प्रज्वलित हुई अग्नि के समान क्रोध से जल उठे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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