महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 44-60
एकोननवतितम (89) अध्याय: कर्ण पर्व
कर्ण को आगे करके सब लोग यही समझ रहे हैं कि तुम्हारा अस्त्र उसके अस्त्रों द्वारा नष्ट होता जा रहा है। तुमने जिस धैर्य से प्रत्येक युग में घोर राक्षसों का, उनके मायामय तामस अस्त्र तथा दम्भोद्धव नामवाले असुरों का युद्धस्थलों में विनाश किया है, उसी धैर्य से आज तुम कर्ण को भी मार डालो। तुम मेंरे दिये हुए इस सुदर्शनचक्र के द्वारा जिसके नेमिभाग में (किनारे) क्षुर लगे हुए हैं, आज बलपूर्वक शत्रु का मस्तक काट डालो। जैसे इन्द्र ने वज्र के द्वारा अपने शत्रु नमुचिका सिर काट दिया था। वीर ! तुमने अपने जिस उत्तम धैर्य के द्वारा किरातरूप धारी महात्मा भगवान् शंख को संतुष्ट किया था, उसी धैर्य को पुनः अपना कर सगे-सम्बन्धयों सहित सूतपुत्र का वध कर डालो। पार्थ ! तत्पश्चात् समुद्र से घिरी हुई नगरों और गाँवों से युक्त तथा शत्रुसमुदाय से शून्य वह समृद्धि शालिनी पृथ्वी राजा युधिष्ठिर को दे दो और अनुपम यश प्राप्त करो। भीमसेन और श्रीकृष्ण के इस प्रकार प्रेरणा देने और कहने पर अत्यन्त बलशाली महात्मा अर्जुन ने सूतपुत्र के वध का विचार किया। उन्होंने अपने स्वरूप स्मरण करके सब बातोंपर दृष्टिपात किया और इस युद्धभूमि में अपने आगमन के प्रयोजन को समझकर श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा- प्रभो ! में जगत् के कल्याण और सूतपुत्र वध के लिये अब एक महान् एवं भयंकर अस्त्र प्रकट कर रहा हूँ। इसके लिये आप, ब्रह्माजी को नमस्कार करके जिसका मन से ही प्रयोग किया जात है, उस असह्य एवं उत्तम ब्रह्यास्त्र को प्रकट किया। परंतु जैसे मेंघ जल की धारा गिराता है, उसी प्रकार बाणों की बौछार से कर्ण उस अस्त्र को नष्ट करके बड़ी शोभा पाने लगा।
रणभूमि में किरीटधारी अर्जुन के उस अस्त्र को कर्णद्वारा नष्ट हुआ देख अमर्षशील बलवान् भीमसेन पुनः क्रोध से जल उठे और सत्यप्रतिज्ञ अर्जुन से इस प्रकार बोले-सव्यसचिन् ! सब लोग कहते हैं कि तुम परम उत्तम एवं मन के द्वारा प्रयोग करने योग्य महान् ब्रह्यास्त्र के ज्ञाता हो; इसलिये तुम दूसरे किसी श्रेष्ठ अस्त्र का प्रयोग करो। उनके ऐसा कहने पर सव्यसाची अर्जुन ने दूसरे दिव्यास्त्र का प्रयोग किया। इससे महातेजस्वी अर्जुन ने अपने गाण्डीव धनुष से छुटे हुए सर्पो के समान भयंकर और सूर्य-किरणों के तुल्य तेजस्वी बाणों द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया, कोना-कोना ढक दिया। भरतश्रेष्ठ अर्जुन के छौड़े़ हुए प्रलयकालीन सूर्य और अग्नि किरणों के समान प्रकाशित होनेवाले दस हजार बाणों ने क्षणभर में कर्ण के रथ को आच्छादित कर दिया। उस दिव्यास्त्र से शूल, फरसे, चक्र और सैकड़ों नाराच आदि घोरतर अस्त्र-शस्त्र प्रकट होने लगे, जिनसे सब ओर के योद्धाओं का विनाश होने लगा। उस युद्धस्थल में किसी शत्रुपक्षीय योद्धाका सिर धड़ से कटकर धरती पर गिर पड़ा। उसे देखकर दूसरा भी भय के मारे धराशायी हो गया। उसको गिरा हुआ देख तीसरा योद्धा वहां से भाग खड़ा हुआ। किसी दूसरे योद्धा की हाथी की सूँड़ के समान मोटी दाहिनी बाँह तलवार सहित कटकर गिर पड़ी। दूसरे की बायीं भुजा क्षुरों द्वारा कवच के साथ कटकर भूमिपर गिर गयी। इस प्रकार किरीटधारी अर्जुन ने शत्रुपक्ष के सभी मुख्य-मुख्य योद्धाओं का संहार कर डाला। उन्होंने शरीर का अन्त कर देनेवाले घोर बाणों द्वारा दुर्योधन की सारी सेना का विध्वंस कर दिया। इसी प्रकार वैकर्तन कर्ण ने भी समरांगण में सहस्त्रों बाण समूहों की वर्षा की।
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