महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 76-89

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एकोननवतितम (89) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 76-89 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर सूर्यकुमार कर्ण ने दस हजार उत्तम बाणोंद्वारा वायुपुत्र भीमसेन के मर्मस्थानों पर गहरा आघात किया। साथ ही, श्रीकृष्ण, अर्जुन और उनके रथकी ध्वजा को, उनके छोटे भाईयों को तथा सोमकों को भी उसने मार गिराने का प्रयत्न किया। जब जैसे मेंघों के समूह आकाश में सूर्य को ढक लेते हैं, उसी प्रकार सोमकों ने अपने बाणों द्वारा कर्ण को आच्छादित कर दिया; परंतु सूतपुत्र अस्त्रविद्या का महान् पण्डित था, उसने अनेक बाणों द्वारा अपने ऊपर आक्रमण करते हुए सोमकों को जहाँ-के-तहाँ रोक दिया। राजन् ! उनके चलाये हुए सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों का नाश करके सूतपुत्र ने उनके बहुत-से रथों, घोड़ों ओर हाथियों का भी संहार कर डाला ओर अपने बाणोंद्वारा शत्रुपक्ष के प्रधान-प्रधान योद्धाओं को पीड़ा देना प्रारम्भ किया। उन सबके शरीर कर्ण के बाणों से विदीर्ण हो गये और वे आर्तनाद करते हुए प्राणशुन्य हो पृथ्वी पर गिर पडे़। जैसे क्रोध में भरे हुए भयंकर बलशाली सिंह ने कुत्तों के महाबली समुदाय को मार गिराया हो, वही दशा सोमकों की हुई।
पांचालों के प्रधान-प्रधान सैनिक तथा दूसरे योद्धा पुनः कर्ण और अर्जुन के बीच में आ पहुँचे; परंतु बलवान् कर्ण ने अच्छी तरह छौड़े़ हुए बाणों द्वारा उन सबको हठपूर्वक मार गिराया। फिर तो उपके सैनिक कर्ण की बड़ी भारी विजय मानकर ताली पीटने और सिंहनाद करने लगे। उन सबने यह समझ लिया किइस युद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुन कर्ण के वश में हो गये। तब कर्ण के बाणों से जिनका अंग-अंग क्षत-विक्षत हो गया था, उन कुन्तीकुमार अर्जुन ने रणभूमि में अत्यन्त क्षत-विक्षत हो गया था, उन कुन्तीकुमार अर्जुन ने रणभूमि में अत्यन्त कुपित हो शीघ्र ही धनुष की प्रत्यंचा को झुकाकर चढ़ा दिया और कर्ण के चलाये हुए बाणों को छिन्न-भिन्न करके कौरवों को आगे बढ़ने से रोक दिया। तत्पश्चात् किरीटधारी अर्जुन ने धनुष की प्रत्यंचा को हाथ से रगड़कर कर्ण के दस्ताने पर आघात किया और सहसा बाणों का जाल फैलाकर वहाँ अन्धकार कर दिया। फिर कर्ण, शल्य और समस्त कौरवों को अपने बाणों द्वारा बलपूर्वक घायल किया। अर्जुन के महान् अस्त्रों द्वारा आकाश में घोर अंधकार फैल जाने से उस समय वहाँ पक्षी भी नहीं उड़ पाते थे। तब अन्तरिक्ष में खडे़ हुए प्राणिसमूहों से प्रेरित होकर तत्काल वहाँ दिव्य सुगन्धित वायु चलने लगी।
इसी समय कुन्तीकुमार अर्जुन ने हँसते-हँसते दस बाणों से शल्य को गहरी चोट पहुँचायी और उनके कवच को छिन्न-भिन्न कर डाला। फिर अच्छी तरह छौड़े़ हुए बारह बाणों से कर्ण को घायल करके पुनः उसे सात बाणों से बींध डाला। अर्जुन के धनुष वेगपूर्वक छूटे हुए भयंकर वेगशाली बाणों द्वारा गहरी चोट खाकर कर्ण के सारे अंग विदीर्ण हो गये। वह खून से नहा उठा और रौद्र मुहूर्त में श्मशान के भीतर क्रीड़ा करते हुए, बाणों से व्याप्त एवं रक्त से भीगे शरीरवाले रूद्र देव के समान प्रतीत होने लगा। तदनन्तर अधिरथपुत्र कर्ण देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी अर्जुन को तीन बाणों से बींध डाला और श्रीकृष्ण को मार डालने की इच्छा से उनके शरीर में प्रज्जवलित सर्पो के समान पाँच बाण घूसा दिये। अच्छी तरह से छौड़े़ हुए वे सुवर्णजटित वेगशाली बाण पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण के कवच को विदीर्ण करके बडे़ वेग से धरती में समा गये और पातालगंगा में नहाकर पुनः कर्ण की ओर जाने लगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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