महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 64-76

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नवतितम (90) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 64-76 का हिन्दी अनुवाद

अच्छे-अच्छे शिल्पियों ने कर्ण के जिस उत्तम बहुमूल्य और तेजस्वी कवच को दीर्धकाल में बनाकर तैयार किया था, उसके उसी कवच के पाण्डुपुत्र अर्जुन ने अपने बाणों से क्षण भर में बहुत-से टुकडे़ कर डाले। कवच कट जाने पर कर्ण को कुपित हुए अर्जुन ने चार उत्तम तीखे बाणों से पुनः क्षत-विक्षत कर दिया। शत्रु के द्वारा अत्यन्त घायल किये जाने पर कर्ण वात-पित्त और कफ सम्बन्धी ज्वर (त्रिदोष या सन्निपात) से आतुर हुए मनुष्य की भाँति अधिक पीड़ा का अनुभव करने लगा। अर्जुन ने उतावले होकर क्रिया, प्रयत्न और बलपूर्वक छोडे़ गये तथा विशाल धनुर्मण्डल से छूटे हुए बहुसंख्यक पैने और उत्तम बाणों द्वारा कर्ण के मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचाकर उसे विदीर्ण कर दिया। अर्जुन के भयंकर वेगशाली और तेजधार वाले नाना प्रकार के बाणों द्वारा गहरी चोट खाकर कर्ण अपने अंगों से रक्त की धारा बहाता हुआ उस पर्वत के समान सुशोभित हुआ, जो गेरू आदि धातुओं से रँगा होने के कारण अपने झरनों से लाल पानी बहाया करता है। तत्पश्चात अर्जुन ने सोने के पंख वाले लोहनिर्मित, सुदृढ़ तथा यमदण्ड और अग्निदण्ड के तुल्य भयंकर बाणों द्वारा कर्ण की छाती को उसी प्रकार विदीर्ण कर डाला, जैसे कुमार कार्तिकेय ने क्रौच पर्वत को चीर डाला था।
प्रभो ! अत्यन्त आहत हो जाने के कारण सूतपुत्र कर्ण तरकस और इन्द्रधनुष के समान अपना धनुष छोड़कर रथ पर ही लड़खड़ाता हुआ मूर्छित हो गया। उस समय उसकी मुट्ठी ढीली हो गयी थी। राजन् ! अर्जुन सत्पुरूषों के व्रत में स्थित रहने वाले श्रेष्ठ मनुष्य हैं; अतः उन्होंने उस संकट के समय कर्ण को मारने की इच्छा नहीं की। तब इन्द्र के छोटे भाई भगवान श्रीकृष्ण ने बडे़ वेग से कहा-पाण्डुनन्दन ! तुम लापरवाही क्यों दिखाते हो ? विद्वान् पुरूष कभी दुर्बल-से-दुर्बल शत्रुओं को भी नष्ट करने के लिये किसी अवसर की प्रतीक्षा नही करते। विशेषतः संकट में पडे़ हुए शत्रुओं को मारकर बुद्धिमान पुरूष धर्म और यश का भागी होता है। इसलिये सदा तुमसे शत्रुता रखने वाले इस अद्वितीय वीर कर्ण का सहसा कुचल डालने के लिये तुम शीघ्रता करो। सूतपुत्र कर्ण शक्तिशाली होकर आक्रमण करे, इसके पहले ही तुम इसे उसी प्रकार मार डालो, जैसे इन्द्र ने नमुचिका वध किया था। वीर कर्ण को सहसा कुचल डालने के लिये तुम शीघ्रता करो। सूतपुत्र कर्ण शक्तिशाली होकर आक्रमण करे, इसके पहले ही तुम इसे उसी प्रकार मार डालो, जैसे इन्द्र ने नमुचिका वध किया था। अच्छा, ऐसा ही होगा यों कहकर श्रीकृष्ण का समादर करते हुए सम्पूर्ण कुरूकुल के श्रेष्ठ पुरूष अर्जुन उत्तम बाणों द्वारा शीघ्रतापूर्वक कर्ण को उसी प्रकार बींधने लगे, जैसे पूर्व-काल में शम्बर शत्रु इन्द्र ने राजा बलिपर प्रहार किया था।
भरतनन्दन ! किरीटधारी अर्जुन ने घोड़ों और रथसहित कर्ण के शरीर को वत्सदन्त नामक बाणों से भर दिया। फिर सारी शक्ति लगाकर सुवर्णमय पंख वाले बाणों से उन्होंने सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया । चैडे़ और मोटे वक्षःस्थल वाले अधिरथपुत्र कर्ण का शरीर वत्सदन्तनामक बाणों से व्याप्त होकर खिले हुए अशोक, पालाश, सेमल और चन्दनवन से युक्त पर्वत के समान सुशोभित होने लगा। प्रजानाथ ! कर्ण के शरीर में बहुत-से बाण धँस गये थे। उनके द्वारा समरांगण में उसकी वैसी ही शोभा हो रही थी, जैसे वृक्षों से व्याप्त शिखर और कन्दरा वाले गिरिराज के ऊपर लाल कनेर के फूल खिलने से उसकी शोभा होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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