महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 91 श्लोक 48-60

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एकनवतितम (91) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकनवतितम अध्याय: श्लोक 48-60 का हिन्दी अनुवाद

जैसे अथर्वांगिरस मन्त्रों द्वारा अभिचारिक प्रयोग करके उत्पन्न की हुई कृत्या उग्र, प्रज्वलित और युद्ध में मृत्यु के लिये भी असंहार होती है, उसी प्रकार वह बाण भी था। किरीटधारी अर्जुन अत्यन्त प्रसन्न होकर उस बाण को लक्ष्य करके बोले- मेरा वह बाण मुझे विजय दिलाने वाला हो। इसका प्रभाव चन्द्रमा और सूर्य के समान है। मेरा छोड़ा हुआ यह घातक अस्त्र कर्ण को यमलोक पहुँचा दे। किरीटधारी अर्जुन अत्यन्त प्रसन्न हो अपने शत्रु को मानने की इच्छा से आततायी बन गये थे। उन्होंने चन्द्रमा और सूर्य समान प्रकाशित होने वाले उस विजयदायक श्रेष्ठ बाण से अपने शत्रुओं को बींध डाला। बलवान अर्जुन के द्वारा इस प्रकार छोड़ा हुआ वह सूर्य के तुल्य तेजस्वी बाण आकाश एवं दिशाओं को प्रकाशित करने लगा। जैसे इन्द्र ने अपने वज्र से वृत्रासुर का मस्तक काट लिया था, उसी प्रकार अर्जुन ने उस बाण द्वारा कर्ण का सिर धड़ से अलग कर दिया। राजन् ! महान दिव्यास्त्र से अभिमंत्रित अंजलिक नामक उत्तम बाण के द्वारा इन्द्रपुत्र कुन्तीकुमार अर्जुन ने अपराहृ काल में वैकर्तन कर्ण का सिर काट लिया। अंजलिक कटा हुआ कर्ण का वह मस्तक पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसके बाद उसका शरीर भी धराशायी हो गया। जैसे लाल मण्डल वाला सूर्य अस्ताचल से नीचे गिरता है, उसी प्रकार उदित सूर्य के समान तेजस्वी तथा शरत्कालीन आकाश के मध्य भाग में तपने वाले भास्कर के समान दुःसह वह मस्तक सेना के अग्रभाग में पृथ्वी पर जा गिरा।
तदनन्तर सदा सुख भोगने के योग्य, उदाकर्मा कर्ण के उस अत्यन्त सुन्दर शरीर को उसके मस्तक ने बड़ी कठिनाई से छोड़ा। ठीक उसी तरह, जैसे धनवान पुरूष अपने समृद्धिशाली घर को और मन एवं इन्द्रियों को वश में रखनेवाला पुरूष सत्संग को बडे़ कष्ट से छोड़ पाता है। तेजस्वी कर्ण का वह ऊँचा शरीर बाणों से क्षत-विक्षत हो घावों से खून की धारा बहाता हुआ प्राणशून्य होकर गिर पड़ा, मानो वज्र के आघात से भग्न हुआ किसी पर्वत का विशाल शिखर गेरूमिश्रित जल की धारा वहा रहा हो। धरती पर गिराये गये कर्ण के शरीर से एक तेज निकलकर आकाश में फैल गया और ऊपर जाकर सूर्यमण्डल में विलीन हो गया। इस अद्भुत दृश्य को वहाँ खडे़ हुए सब लोगों ने अपनी आँखो से देखा था। कर्ण के मारे जाने पर उसे अर्जुनद्वारा गिराया हुआ देख पाण्डवों ने उच्चस्वर में शंख बजाया।
इसी प्रकार श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा हर्ष में भरे हुए नकुल सहदेव ने भी शेख बजाये। सोमकगण कर्ण को मरकर गिरा हुआ देख अपनी सेनाओं के साथ सिंहनाद करने लगे। वे बडे़ हर्ष में भरकर बाजे-बजाने और कपडे़ तथा हाथ हिलाने लगे। नरेन्द्र ! अत्यन्त हर्ष में भरे हुए पाण्डव योद्धा अर्जुन को बधाई देते हुए पास आकर मिले। अर्जुन बाणों से छिन्न-भिन्न एवं प्राणशून्य हुए कर्ण को रथ के नीचे पृथ्वी पर गिरा देख दूसरे बलवान् सैनिक एक दूसरे को गले से लगाकर नाचते और गर्जते हुए बातें करते थे। कर्ण का वह कटा हुआ मस्तक वायु के वेग से टूटकर गिरे हुए पर्वतखण्ड के समान, यज्ञ के अन्त में बुझी हुई अग्नि के सदृश तथा अस्ताचलपर पहुँचे हुए सूर्य के बिम्ब की भाँति सुशोभित हो रहा था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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