महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 9 श्लोक 35-52
नवम (9) अध्याय: कर्ण पर्व
संजय ! युद्ध स्थल में किरीटधारी अर्जुन के द्वारा उस महाधनुर्धर कर्ण के मारे जाने पर कौन - कौन से वीर ठहर सके। यह मुझे बताओ। तात ! कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि कर्ण को अकेला छोड़ दिया गया हो और समस्त पाण्डवों ने मिलकर उसे मार डाला हो; क्योंकि तुम पहले बता चुके हो कि वीर कर्ण मारा गया। समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ भीष्म जब युद्ध नहीं कर रहे थे, उस दशा में शिखण्डी ने अपने उत्तम बाणों द्वारा उन्हें समरांगण में मार गिराया। इसी प्रकार जब महाधनुर्धर द्रोणाचार्य युद्ध स्थल में अपने सारे अस्त्र - शस्त्रों को नीख्चे डालकर ब्रह्म का ध्यान लगाते हुए बैठे थे, उस अवस्था में द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न ने उन्हें बहुसंख्यक बाणों से ढक दिया और तलवार उठाकर उनका सिर काट लिया। संजय ! इस प्रकार ये दोनों वीर छिद्र मिल जाने से विशेषतः छल पूर्वक मारे गये। मैंने यह समाचार भी सुना था कि भीष्म और द्रोणाचार्य मार गिराये गये, परंतु मैं तुमसे यह सच्ची बात कहता हूँ कि ये भीष्म और द्रोण यदि समर भूमि में न्याय पूर्वक युद्ध करते होते तो इन्हें साक्षात् इन्द्र भी नहीं मार सकते थे । मैं पूछता हूँ कि युद्ध में दिव्यास्त्रों की वर्षा करते हुए इन्द्र के समान पराक्रमी वीर कर्ण को मृत्यु कैसे छू सकी ?
जिसे देवराज इन्द्र ने दो कुण्डलों के बदले में विद्युत के समान प्रकाशित होने वाली तथा शत्रुओं का नाश हरने में समर्थ सुवर्ण भूषित दिव्य शक्ति प्रदान की थी, जिसके तूणीर में सर्प के समान मुख वाला दिव्य, सुवर्ण भूषित, कंकपत्र युक्त एवं युद्ध में शत्रुसंहारक तीखा बाण शयन करता था, जो भीष्म - द्रोण आदि महारथी वीरों की भी अवहेलना करता था, जिसने जमदग्नि नन्दन परशुरामजी से अत्यन्त घोर ब्रह्मास्त्र की शिक्षा पायी थी और जिस महाबाहु वीर ने सुभद्रा कुमार के बाणों से पीडित्रत हुए द्रोणाचार्य आदि को युद्ध से विमुख हुआ देख अपने तीचो बाणों से उसका धनुष काट डाला था, जिसने दस हजार हाथियों के समान बलशाली, वज्र के समान तीव्र वेग वाले, अपराजित वीर भीमसेन को सहसा रथहीन करके उनकी हँसी उड़ायी थी, जिसने सहदेव को जीतकर झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा उन्हें रथहीन करके भी धर्म के विचार से दयावश उनके प्राण नहीं लिये; जिसने सहस्त्रों मायाओं की सृष्टि करने वाले विजयाभिलाषी राक्षसराज घटोत्कच को इन्द्र की दी हुई शक्ति से मार डाला तथा इतने दिनों तक अर्जुन जिससे भयभीत होकर उसके साथ द्वैरथ युद्ध में सम्मिलित नहीं हो सके, वही वीर कर्ण उसके साथ द्वैरथ युद्ध में मारा कैसे गया ? ‘संशप्तकों में से जो योद्धा सदा मुण्े दूसरी ओर युद्ध के लिये बुलाया करते हैं, इन्हें पहले मारकर पीछे वैकर्तन कर्ण का रएा भूमि में वध करूँगा।’ ऐसा बहाना बनाकर अर्जुन जिस सूत पुत्र को युद्ध स्थल में छोडत्र दिया करते थे, उसी शत्रुवीरों के संहारक वीरवर कर्ण को अर्जुन ने किस प्रकार मारा ? यदि उसका रथ नहीं टूट गया था, धनुष के टुकडत्रे - टुकड़े नहीं हो गये थे और अस्त्र नहीं नष्ट हुए थे, तब शत्रुओं ने उसे किस प्रकार मार गिराया ?
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