महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 146 श्लोक 38-59
षट्चत्वारिंशदधिकशततम (146) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )
समरांगण में मूर्तिमान यमराज के समान अर्जुन के उस अभूतपूर्व पराक्रम को देखकर कौरवों पर भय छा गया। तदनन्तर पाण्डुकुमार अर्जुन अपने अस्त्रों द्वारा विपक्षी वीरों के अस्त्र लेकर रौद्रकर्म में तत्पर हो अपने को रौद्र सूचित करने लगे। राजन ! तत्पश्चात् अर्जुन बड़े-बड़े रथियों को लांघ कर आगे बढ़ गये। उस समय आकाश में तपते हुए दोपहर के सूर्य के समान पाण्डुपुत्र अर्जुन की ओर सम्पूर्ण प्राणी देख नहीं पाते थे। उन महात्मा के गाण्डीव धनुष से छूटकर संग्राम में फैले हुए बाण समूहों को हम आकाश में हंसों की पंक्ति के समान देखते थे। वीरों के अस्त्र शस्त्रों को अस्त्रों द्वारा सब ओर से रोककर अपने रौद्रभाव का दर्शन कराते हुए वे उग्र कर्म में संलग्न हो गये। राजन ! उस समय जयद्रथ वध की इच्छा से अर्जुन नाराचों द्वारा उन महारथियों को मोहित करते हुए से लांघ गये। श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं, वे धनंजय सम्पूर्ण दिशाओं में बाणों की वृष्टि करते हुए रथ सहित तुरंत वहां विचरने लगे। उस समय उनकी शोभा देखने ही योग्य थी। शूरवीर महात्मा अर्जुन के चलाये हुए सैकड़ों और हजारों बाणसमूह आकाश में घूमते हुए से दिखायी देते थे। उस समय हम कुन्तीकुमार महाधनुर्धर अर्जुन को बाण लेते, चढ़ाते और छोड़ते समय देख नहीं पाते थे। राजन् ! इस प्रकार अर्जुन ने रणक्षेत्र में सम्पूर्ण दिशाओं और समस्त रथियों को कदम्ब के फूल के समान रोमान्चित करके जयद्रथ पर धावा किया। साथ ही उसे झुकी हुई गांठ वाले चौंसठ बाणों से क्षत विक्षत कर दिया। पाण्डुपुत्र अर्जुन को सिंधुराज के सम्मुख जाते देख हमारे पक्ष के वीर योद्धा उसके जीवन से निराश होकर युद्ध से निवृत्त हो गये। प्रभो ! उस घोर संग्राम में आपके पक्ष का जो-जो योद्धा पाण्डुपुत्र अर्जुन की ओर बढ़ा, उस-उस के शरीर पर प्राणान्तकारी बाण पड़ने लगे। विजयी वीरों में श्रेष्ठ महारथी अर्जुन ने अग्नि की ज्वाला के समान तेजस्वी बाणों द्वारा आपकी सेना को कबन्धो से भर दिया ।।राजेन्द्र ! उस समय इस प्रकार आपकी उस चतुरगिणी सेना को व्याकुल करके कुन्तीकुमार अर्जुन जयद्रथ की ओर बढ़े। उन्होंने अश्वत्थामा को पचास और वृषसेन को तीन बाणों से बींध डाला। कृपाचार्य को कृपापूर्वक केवल नौ बाण मारे। शल्य को सोलह, कर्ण को बत्तीस और सिंधुराज को चैंसठ बाणों से घायल करके अर्जुन ने सिंह के समान गर्जना की। गाण्डीवधारी अर्जुन के चलाये हुए बाणों से उस प्रकार घायल होने पर सिंधुराज सहन न कर सका। वह अंकुश की मार खाये हुए हाथी के समान अत्यन्त कुपित हो उठा। उसकी ध्वजा पर वाराह का चिन्ह था। उसने गीध की पांखों से युक्त, सीधे जाने वाले, सोनार के मांजे हुए तथा कुपित विषधर के समान बहुत से बाण धनुष को कान तक खींचकर शीघ्रतापूर्वक अर्जुन के रथ की ओर चलाये। तीन बाणों से श्रीकृष्ण को, छः नाराचों से अर्जुन को तथा आठ बाणों से घोड़ों को घायल करके जयद्रथ ने एक बाण से अर्जुन की ध्वजा को भी बींध डाला। परंतु अर्जुन ने तुरंत ही जयद्रथ के चलाये हुए बाणों को काट गिराया और एक ही साथ दो बाणों से सिंधुराज के सारथीका सिर तथा अलकारों से सुशोभित उसका ध्वज भी काट डाला।
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