महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 146 श्लोक 82-100

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षट्चत्वारिंशदधिकशततम (146) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: षट्चत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 82-100 का हिन्दी अनुवाद

वहां हम लोगों ने कुन्तीकुमार का अदभूत पराक्रम देखा। उन महायशस्‍वी वीरने उस समय जो पुरूषार्थ प्रकट किया था, वैसा न तो पहले कभी प्रकट हुआ था और न आगे कभी होगा ही। जैसे संहारकारी रूद्र समस्त प्राणियों का विनाश कर डालते हैं, उसी प्रकार उन्होंने हाथियों और हाथी सवारों को, घोडों और घुडसवारों को तथा रथों एवं रथियों को भी नष्ट कर दिया। नरेश्रर ! उस समरभूमि में मैंने कोई भी ऐसा हाथी, घोडा या मनुष्य नहीं देखा, जो अर्जुन के बाणों से क्षत विक्षत न हो गया हो। उस समय धूल और अन्धकार से सारे योद्धाओं के नेत्र आच्छादित हो गये थे। वे भयंकर मोह में पड़ गये। उनके लिये एक दूसरे को पहचानना भी असम्भव हो गया। भारत ! अर्जुन के चलाये हुए बाणों से जिनके मर्मस्थल विदीर्ण हो गये थे, वे सैनिक चक्कर काटते, लड़खडाते, गिरते, व्यथित होते और प्राणशून्य होकर मलिन हो जाते थे। समस्त प्राणियों के प्रलयकाल के समान जब वह महाभीषण अत्यन्त दारूण महान एवं दुर्लभय संग्राम चल रहा था, उस समय रक्त की वर्षा से और वायु के वेगपूर्वक चलने से रूधिर से भीगे हुए धरातल की धूल शान्त हो गयी। रथ के पहिये नाभि तक खून में डूबे हुए थे। राजन्! जिनके सवार मार डाले गये थे और समस्त अंग बाणों से विदीर्ण हो रहे थे, वे आपके योद्धाओं के वेगवान और पदमत सहस्त्रों हाथी समरभूमि में अपनी ही सेनाओं को रौंदते और आर्तनाद करते हुए जोर-जोर से भागने लगे। नरेश्रवर ! राजन ! घुड़सवार गिर गये थे और घोडे एवं पैदल सैनिक धनंजय बाणों से अत्यन्त घायल हो भयके मारे भागे जा रहे थे। लोगों के बाल खुले हुए थे, कवच कटकर गिर गये थे और वे अत्यन्त भयभीत हो युद्ध का मुहाना छोड़कर अपने घावों से रक्त की धारा बहाते हुए जान बचाने के लिये भाग रहे थे। कुछ लोग बिना हिले-डुले इस प्रकार भूमि पर खडे़ थे, मानो उनकी जांघें अकड़ गयी हों। दूसरे बहुत से सैनिक वहां मारे गये हाथियों के बीच में जा छिपे थे।

राजन् ! इस प्रकार अर्जुनने आपकी सेना को भगाकर भयंकर बाणों द्वारा सिंधुराज के रक्षकों को मारना आरम्भ किया।। पाण्डुकुमार अर्जुन ने अपने तीखे बाणसमूह से अश्रस्थामा, कृपाचार्य, कर्ण, शल्य, वृषसेन तथा दुर्योधन को आच्छादित कर दिया। राजन् ! उस समय युद्धस्‍थल में अर्जुन इतनी फुर्ती से बाण चलाते थे कि कोई किसी प्रकार भी यह न देख सका कि वे कब बाण लेते हैं, कब उसे धनुष पर रखते हैं, कब प्रत्यंचा खींचते हैं और कब वह बाण छोडते हैं। निरन्तर बाण छोड़ते हुए अर्जुन का केवल मण्डलाकार धनुष ही लोगों की दृष्टि में आता था एवं चारों और फैलते हुए उनके बाण भी दृष्टिगोचर होते थे। अर्जुन ने कर्ण और वृषसेन के धनुष काटकर एक भल्ल के द्वारा शल्य के सारथि को रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया।। विजयी वीरों में श्रेष्ठ अर्जुन ने रणभूमि में मामा-भानजे कृपाचार्य और अश्रत्थामा दोनों को बाणों द्वारा बींधकर गहरी चोट पहॅुंचायी। इस प्रकार आपके उन महारथियों को व्याकुल करके पाण्डुकुमार अर्जुन ने एक अग्नि के समान तेजस्वी एवं भयंकर बाण निकाला।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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