महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 156 श्लोक 81-98

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षट्पञ्चाशदधिकशततम (156) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: षट्पञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 81-98 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन के पौत्र अंजनपर्वा के बाणों से आच्छादित हुआ अश्वत्थामा मेघ की जलधारा से आवृत हुए मेरूपर्वत के समान सुशोभित हो रहा था। रूद्र, विष्णु तथा इन्द्र के समान पराक्रमी अश्वत्थामा के मन में तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उसने एक बाण से अंजनपर्वा की ध्वजा काट डाली। फिर दो बाणों से उसके दो सारथियों को, तीन से त्रि‍वेणु को, एक से धनुष को और चार से चारों घोडों को काट डाला। तत्पश्‍चात् रथहीन हुए राक्षसपुत्र के हाथ से उठे हुए सुवर्ण-विन्दुओं से व्याप्त खग्ड को उसने एक तीखे बाण से मारकर उसके दो टूकडे कर दिये। राजन् ! तब घटोत्कचपुत्र ने तुरंत ही सोने के अंगद से विभूषित गदा घुमाकर अश्वत्थामा पर दे मारी, परंतु अश्वत्थामा बाणों से आहत होकर वह भी पृथ्वी पर गिर पडी। तब आकाश में उछलकर प्रलयकाल के मेघ की भांति गर्जना करते हुए अंजनपर्वा ने आकाश से वृक्षों की वर्षा आरम्भ कर दी। तदनन्तर द्रोणपुत्र ने आकाश में स्थित हुए मायाधारी घटोत्कचकुमार को अपने बाणों द्वारा उसी तरह घायल कर दिया, जैसे सूर्य किरणों द्वारा मेघों की घटा को गला देते है। इसके बाद वह नीचे उतरकर अपने स्वर्णभूषित रथ पर अश्वत्थामा के सामने खडा हो गया। उस समय वह तेजस्वी राक्षस पृथ्वी पर खडे हुए अत्यन्त भयंकर कज्जल-गिरि के समान जान पडा उस समय द्रोणकुमार ने लोहे के कवच धारण करके आये हुए भीमसेन पौत्र अंजनपर्वा को उसी प्रकार मार डाला, जैसे भगवान् महेश्‍वर ने अन्धकारसुर का वध किया था। अपने महाबली पुत्र को अश्वत्थामा द्वारा मारा गया देख चमकते हुए बाजूबंद से विभूषित घटोत्कच बडे रोष के साथ द्रोणकुमार के समीप आकर बढे हुए दावानल के समान पाण्डवसेना रूपी वन को दग्ध करते हुए उस वीर कृपी-कुमार से बिना किसी घबराहट के इस प्रकार बोला।

घटोत्कचने कहा- द्रोणपुत्र ! खडे रहो, खडे रहो। आज तुम मेरे हाथसे जीवित बचकर नहीं जा सकोगे। जैसे अग्रिपुत्र कार्तिकेय ने क्रौज पर्वत को विदीर्ण किया था, उसी प्रकार आज मैं तुम्हारा विनाश कर डालूंगा।

अश्वत्थामा ने कहा- देवताओं के समान पराक्रमी पुत्र ! तुम जाओ, दूसरों के साथ युद्ध करो। हिडिम्बानन्दन ! पुत्र के लिये यह उचित नहीं है कि वह पिता को भी सताये ।। हिडिम्बाकुमार ! अभी मेरे मनमें तुम्हारे प्रति तनिक भी रोष नहीं हैं, परंतु रोष हो जाय तो तुम्हें ज्ञात होना चाहिये कि रोष के वशीभूत हुआ प्राणी अपना भी विनाश कर डालता है (फिर दूसरे की तो बात ही क्या है ? अतः मेरे कुपित होनेपर तुम सकुशल नहीं रह सकते।

संजय कहते हैं-राजन् ! पुत्रशोक में डूबे हुए भीमसेन कुमार ने अश्वत्थामा की यह बात सुनकर क्रोध से लाल आंखें करके रोषपूर्वक उससे कहा-। ’द्रोणकुमार ! क्या मैं युद्धस्थल में नीच लोगों के समान कायर हूं, जो तू मुझे अपनी बातों से डरा रहा है। तेरी यह बात नीचतापूर्ण है। ’ देख, मैं कौरवों के विशाल कुल में भीमसेन से उत्पन्न हुआ हूं, समंरागण में कभी पीठ न दिखानेवाले पाण्डवों का पुत्र हूं, राक्षसों का राजा हूं और दशग्रीव रावण के समान बलवान् हूं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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