महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 164 श्लोक 1-18
चतुःषष्टयधिकशततम (164) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
दोनों सेनाओं का घमासान युद्ध और दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा के लिये सैनिकों को आदेश
संजय कहते हैं- राजन्। उस समय धूल और अन्धकार से ढकी हुई रणभूमि में इस प्रकार उजेला होने पर एक दूसरे के वध की इच्छावाले वीर सैनिक आपस में भिड़ गये।। महाराज। समरागंण में परस्पर भिड़कर वे नाना प्रकार के शस्त्र, प्राप्त और खडग आदि धारण करने वाले योद्धा, जो परस्पर अपराधी थे, एक दूसरे की ओर देखने लगे। चारों ओर हजारों मशालें जल रही थीं। उनके डंडे सोने के बने हुए थे और उनमें रत्न जड़े हुए थे। उन मशालों पर सुगन्धित तेल डाला जाता था। भारत। उन्हीं में देवताओं और गन्धर्वों के भी दीप आदि जल रहे थे, जो अपनी विशेष प्रभा के कारण अधिक प्रकाशित हो रहे थे। उनके द्वारा उस समय रणभूमि नक्षत्रों से आकाश की भाँति सुशोभित हो रही थी। सैक़ड़ों प्रज्वलित उल्काओं (मशालों) में वह रणभूमि ऐसी शोभा पा रही थी, मानो प्रलयकाल में यह सारी पृथ्वी दग्ध हो रही हो। उन प्रदीपों से सब ओर सारी दिशाएँ ऐसी प्रदीप्त हो उठी, मानो वर्षा के सायंकाल में जुगनुओं से घिरे हुए वृक्ष जगमगा रहे हों। उस समय वीरगण विपक्षी वीरों के साथ पृथक्-पृथक् भिड़ गये। हाथी हाथियों के और घुड़सवार घुड़सवारों के साथ जूझने लगे। इसी प्रकार रथी श्रेष्ठ रथियों के साथ प्रसन्नतापूर्वक युद्ध करने लगे। उस भयंकर प्रदोषकाल में आपके पुत्र की आशा से वहाँ चतुरंगिणी सेना में भारी मारकाट मच गयी। महाराज। तदनन्तर। अर्जुन बड़ी उतावली के साथ समस्त राजाओं का संहार करते हुए कौरव-सेना का विनाश करने लगे।
धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय। क्रोध और अमर्ष में भरे हुए दुर्धर्ष वीर अर्जुन जब मेरे पुत्र की सेना में प्रविष्ठ हुए, उस समय तुम लोगों के मन की कैसी अवस्था हुई? शत्रुओं को पीड़ा देने वाले अर्जुन के प्रवेश करने पर मेरी सेनाओँ ने क्या किया? तथा दुर्योधन ने उस समय के अनुरूप कौनसा कार्य उचित माना?
समरागंण में शत्रुओं का दमन करने वाले कौन-कौन से योद्धा वीर अर्जुन का सामना करने के लिये आगे बढ़े। श्वेत वाहन अर्जुन के कौरव सेना के भीतर घुस आने पर किन लोगों ने द्रोणाचार्य की रक्षा की। कौन-कौन से योद्धा द्रोणाचार्य के रथ के दाहिने पहिये की रक्षा करते थे और कौन-कौन से बायें पहिये की? कौन-कौन से वीर वीरों का वध करने वाले द्रोणाचार्य के पृष्ठभाग के रक्षक थे और रण में शत्रुसैनिकों का संहार करने वाले कौन-कौन से योद्धा आचार्य के आगे-आगे चलते थे? महाधनुर्धर, पराक्रमी एवं किसी से पराजित न होने वाले पुरुषसिंह द्रोणाचार्य ने रथ के मार्गों पर नृत्य सा करतेहुए वहाँ पाञ्चालों की सेना में प्रवेश किया था। जिन आचार्य द्रोण ने क्रोध में भरे हुए अग्निदेव के समान अपने बाणों की ज्वाला से पाञ्चाल महारथियों के समुदायों को जलाकर भस्म कर दिया था, वे कैसे मृत्यु को प्राप्त हुए? सूत। तुम मेरे शत्रुओं को तो व्यग्रतारहित, अपराजित, हर्ष और उत्साह से युक्त तथा संग्राम में वेगपूर्वक आगे बढ़नेवाले ही बता रहे हो, परंतु मेरे पुत्रों की ऐसी अवस्था नहीं बताते। सभी युद्धों में मेरे पक्ष के रथियों को तुम हताहत, छिन्न-भिन्न, तितर-बितर तथा रथहीन हुआ ही बता रहे हो।
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