महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 165 श्लोक 1-24
पंचषष्ट्यधिकशततम (165) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
दोनों सेनाओं का युद्ध और कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय
संजय कहते हैं- प्रजानाथ! जब सम्पूर्ण भूतों का विनाश करने वाला वह भयंकर रात्रि युद्ध आरम्भ हुआ, उस समय धर्म पुत्र युधिष्ठिर ने पाण्डवों, पान्चालों और सोमकों से कहा- ‘दौड़ो, द्रोणाचार्य पर ही उन्हें मार डालने की इच्छा से आक्रमण करो’। राजन्! राजा युधिष्ठिर के आदेश से पान्चाल और संजय भयानक गर्जना करते हुए द्रोणाचार्य पर ही टूट पड़े। वे सब के सब अमर्ष में भरे हुए थे और युद्धस्थल में अपनी शक्ति, उत्साह एवं धैर्य के अनुसार बारंबार गर्जना करते हुए द्रोणाचार्य पर चढ़ आये। जैसे मतवाला हाथी किसी मतवाले हाथी पर आक्रमण कर रहा हो, उसी प्रकार युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य पर धावा करते देख हृदिक पुत्र कृतवर्मा ने आगे बढ़कर उन्हें रोका। राजन्! युद्ध के मुहाने पर चारों ओर बाणों की बौछार करते हुए शिनिपौत्र सात्यकि पर कुरूवंशी भूरिने धावा किया। राजन्! द्रोणाचार्य को पकड़ने के लिये आते हुए महारथी पाण्डु पुत्र सहदेव को वैकर्तन कर्ण ने रोका। मुँह बाये यमराज के समान अथवा विपक्षी बनकर आयी हुई मृत्यु के समान भीमसेन का सामना स्वयं राजा दुर्योधन ने किया। राजन्! सम्पूर्ण युद्धकला में कुशल योद्धाओं में श्रेष्ठ नकुल को सुबल पुत्र शकुनि ने शीघ्रतापूर्वक आकर रोका। नरेश्वर! रथ से आते हुए रथियों में श्रेष्ठ शिखण्डी को युद्धस्थल में शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य ने रोका। महाराज! मयूर के समान रंगवाले घोड़ों द्वारा आते हुए प्रयत्नशील प्रतिविन्ध्य को दुःशासन ने यत्नपूर्वक रोका। राजन्! सैकड़ों मायाओं के प्रयोग में कुशल भीमसेन कुमार राक्षस घटोत्कच को आते देख अश्वत्थामा ने रोका।। समरागंण में द्रोण को पराजित करने की इच्छा वाले सेना और सेवकों सहित महारथी द्रुपद को वृषसेन ने रोका। भारत! द्रोण को मारने के उद्देश्य से शीघ्रतापूर्वक आते हुए राजा विराट को अत्यन्त क्रोध में भरे हुए मद्रराज शल्य ने रोक दिया। द्रोणाचार्य के वध की इच्छा से रणक्षेत्र में वेगपूर्वक आते हुए नकुल पुत्र शतानीक को चित्रसेन ने अपने बाणों द्वारा तुरंत रोक दिया। महाराज! कौरव सेना पर धावा करते हुए योद्धाओं में श्रेष्ठ महारथी अर्जुन को राक्षसराज अलम्बुष ने रोका। इसी प्रकार रणभूमि में शत्रुसैनिकों कासंहार करने वाले, हर्ष और उत्साह से युक्त, महाधनुर्धर द्रोणाचार्य को पान्चाल राजकुमार धृष्टद्युम्न ने आगे बढ़ने से रोक दिया। राजन! इसी तरह आक्रमण करने वाले पाण्डवपक्ष के अन्य महारथियों को अपकी सेना के महारथियों ने बलपूर्वक रोका। उस महासमर में सैकड़ों और हजारों हाथीसवार तुरंतही विपक्षी गजारोहियों से भिड़कर परस्पर जूझने और सैनिकों को रौंदने लगे। राजन्! रात के समय एक दूसरे पर वेग से धावा करते हुए घोड़े पंखधारी पर्वतों के समान दिखायी देते थे। महाराज! हाथ में प्रास, शक्ति और ऋष्टि धारण किये घुड़सवार सैनिक पृथक्-पृथक् गर्जना करते हुए शत्रुपक्ष के घुड़सवारों के साथ युद्ध कर रहे थे। उस युद्धस्थल में बहुसंख्यक पैदल मनुष्य गदा और मुसल आदि नाना प्रकार के अस्त्रों द्वारा एक दूसरे पर आक्रमण करते थे। जैसे उत्ताल तरंगो वाले महासागर को तटभूमि रोक देती है, उसी प्रकार धर्मपुत्र युधिष्ठिर को अत्यन्त क्रोध में भरे हुए हृदिक पुत्र कृतवर्मा ने रोक दिया। युधिष्ठिर ने कृतवर्मा का पहले पाँच बाणों से घायल करके फिर बीस बाणों से बींध डाला और कहा- ‘खड़ा रह, खड़ा रह’।
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