महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 173 श्लोक 60-67
त्रिसप्तत्यधिकशततम (173) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
‘घटोत्कच! मेरी सम्पूर्ण सेनाओं में तीन ही वीर श्रेष्ठ माने गये हैं- तुम, महाबाहु सात्यकि तथा पाण्डुनन्दन भीमसेन। ‘अतः तुम इस निशीथकाल में कण के साथ द्वैरथ युद्ध करो और महारथी सात्यकि तुम्हारे पृष्ठरक्षक होंगे। ‘जैसे पूर्वकाल में स्कन्द के साथ रहकर इन्द्र ने तारकासुर का वध किया था, उसी प्रकार तुम भी सात्यकि की सहायता पाकर रणभूमि में शूरवीर कर्ण को मार डालो’।
घटोत्कच ने कहा- महाबाहो! प्रभो! आप मुझे जैसा कह रहे हैं, वैसा ही है। मैं आपका भेजा हुआ कर्ण के वध की इच्छा से जा रहा हूँ। भारत! मैं कर्ण का सामना करने में तो समर्थ हूँ ही, द्रोणाचार्य का भी अच्छी तरह सामना कर सकता हूँ। अस्त्र-विद्या के जानने वाले ये जो दूसरे महामनस्वी क्षत्रिय हैं, उनके साथ भी लोहा ले सकता हूँ। आज मैं इस रात में सूत पुत्र कर्ण के साथ ऐसा संग्राम करूँगा, जिसकी चर्चा जब तक यह पृथ्वी रहेगी, तब तक लोगकरते रहेंगे। इस युद्ध में मैं न तो शूरवीरों को जीवित छोडूँगा, न डरने वालों को और न हाथ जोड़ने वालों को ही। राक्षस-धर्म का आश्रय लेकर सच का ही संहार कर डालूँगा।
संजय कहते हैं- राजन्! श्रेष्ठ वीरों का संहार करने वाला महाबाहु हिडिम्बाकुमार ऐसा कहकर उस भयंकर युद्ध में आपकी सेना को भयभीत करता हुआ कर्ण का सामना करने के लिये गया। क्रोध में भरे हुए उस प्रज्वलित मुख और चमकीले केशों वाले राक्षस को आते हुए देख पुरूषसिंह सूत पुत्र कर्ण ने हँसते हुए उसे अपने प्रतिद्वन्द्वी के रूप में ग्रहण किया। नृपश्रेष्ठ! संग्रामभूमि में गर्जना करते हुए कर्ण और राक्षस दोनों में इन्द्र और प्रहलाद के समान युद्ध होने लगा।।
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