महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 191 श्लोक 41-53
एकनवत्यधिकशततम (191) अध्याय: द्रोणपर्व (द्रोणवध पर्व )
तदन्दर, उस युद्ध-संकट के समय विप्रवर द्रोणाचार्य ने एक हजार बाणों से धृष्टधुम्न सो चांदवाली ढाल और तलवार काट गिरायी। निकट से युद्ध करते समय उपयोग में आने वाले जो एक बित्ते के बराबर वैतस्तिक नामक बाण होते है, वे समीप से भी युद्ध करने में कुशल द्रोणाचार्य के ही पास थे, दूसरों के नहीं। भारत ! कृपाचार्य, अर्जुन, अश्वत्थामा, वैकर्तन कर्ण, प्रधुम्न, सात्यकि और अभिमन्यु को छोड़कर और किसी के पास वैसे बाण नहीं थे। तत्पश्चात् पुत्र तुल्य शिष्य को मार डालने की इच्छा से आचार्य ने धनुष पर परम सुदृढ़ बाण रक्खा। परंतु उस बाण को शिनिप्रवर सात्यकि ने महामना कर्ण और आपके पुत्र के देखते-देखते दस तीखे बाणों से काट डाला और आचार्य प्रवर के द्वारा प्राण संकट में पड़े हुए धृष्टधुम्न को छुड़ा लिया। भारत ! उस समय सत्य पराक्रमी सात्यकि द्रोण, कर्ण और कृपाचार्य के बीच में होकर रथ के मार्गों पर विचर रहे थे । उन्हें उस अवस्था में महात्मा श्रीकृष्ण और अर्जुन ने देखा और 'साधु-साधु' कहकर सात्यकि की भूरि-भूरि प्रशंसा की । वे युद्ध में अविचल भाव से डटे रहकर समस्त विरोधियों के दिव्यस्त्रों का निवारण कर रहे थे। तदनन्तर श्रीकृष्ण ओर अर्जुन शत्रु सेना में टूट पड़े । उस समय अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा- केशव ! देखिये, यह मधुवंशशिरोमणि सात्यकि आचार्य की रक्षा करने वाले मुख्य महारथियों के बीच में खेल रहा है। शत्रुवीरों का संहार करने वाला सात्यकि मुझे बारंबार आनन्द दे रहा है और नकुल, सहदेव, भीमसेन तथा राजा युधिष्ठिर को भी आनन्दित कर रहा है। वृष्णिवंश का यश बढ़ाने वाला सात्यकि उत्तम शिक्षा से युक्त होने पर भी अभिमानशून्य हो महारथियों के साथ क्रीड़ा करता हुआ रणभूमि में विचर रहा है। इसलिये ये सिद्धगण और सैनिक आश्चर्यचकित हो समरांगण परास्त न होने वाले सात्यकि की ओर देखकर 'साधु-साधु कहते हुए इसका अभिनन्दन करते हैं और दोनों दलों के समस्त योद्धाओं ने इसके विरोचित कर्मों से प्रभावित हो इसकी बड़ी प्रशंसा की है'।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोण पर्व के अन्तर्गत द्रोणवध पर्व में संकुलयुद्ध विषयक एक सौ इक्यानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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