महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 109 श्लोक 1-21
नवाधिकशततम (109) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
घटोत्कच द्वारा अलम्बुष का वध और पाण्डव सेना में हर्ष-ध्वनि संजयक कहते हैं-राजन् ! युद्ध में इस प्रकार निर्भय से विचरत हुए अलम्बुष के पास हिडिम्बाकुमार घटोत्कच बड़े वेग से आ पहुंचा और उसे अपने तीखे बाणों द्वारा बींघने लगा। वे दोनों राक्षसों से सिंह के समान पराक्रमी थे और इन्द्र तथा शम्बरासुर के समान नाना प्रकार की मायाओं का प्रयोग करते थे। उन दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। अलम्बुष ने अत्यन्त कुपित होकर घटोत्कच को घायल कर दिया। वे दोंनो राक्षस समाज के मुखिया थे। प्रभो ! जैसे पूर्वकाल में श्रीराम और रावण का संग्राम हुआ था, उसी प्रकार उन दोनों में भी युद्ध हुआ। घटोत्कच बीस नाराचों द्वारा अलम्बुष की छाती में गहरी चोट पहुंचाकर बारंबार सिंह के समान गर्जना की।। राजन् ! इसी प्रकार अलम्बुष भी युद्धदुर्मद घटोत्कच को बारंबार घायल करके समूचे आकाश को हर्षपूर्वक गुंजाता हुआ सिंहनाद करता था। इस प्रकार अत्यन्त क्रोध में भरे हुए थे दोनों महाबली राक्षसराज परस्पर मायाओं का प्रयोग करते हुए समान रुप से युद्ध करने लगे। वे प्रतिदिन सैकड़ों मायाओं की सृष्टि करनेवाले थे और दोनो ही माया युद्ध में कुशल थे। अत: एक दूसरे को मोहित करते हुए माया द्वारा ही युद्ध करने लगे। नरेश्वर ! घटोत्कच युद्धस्थल में जो-जो माया दिखाता, उसे अलम्बुष अपनी माया द्वारा ही नष्ट कर देता था।। माया युद्ध विशारद राक्षसराज अलम्बुष को इस प्रकार युद्ध करते देख समस्त पाण्डव कुपित हो उठे थे। राजन् ! वे अत्यन्त उद्विग्न हुए भीमसेन आदि श्रेष्ठ और क्रोध में भरकर रथों द्वारा सब ओर से अलम्बुष पर टूट पड़े।। माननीय नरेश ! जैसे जलती हुई उल्काओं द्वारा चारों ओर से घेरकर हाथी पर प्रहार किया जाता हैं, उसी प्रकार रथसमूह के द्वारा अलम्बुष को कोष्ठबद्ध करके वे सब लोग चारों ओर से उस पर बाणों की वर्षा करने लगे। उस समय अलम्बुष को अपने अस्त्रों की माया से उनके उस महान् अस्त्र वेग से दबाकर रथसमूह के उस घेरे से मुक्त हो गया, मानों कोई गजराज दावानल के घेरे से बाहर हो गया हो।। उसने इन्द्र के वज्र की भांति घोर टंकार करने वाले अपने भयंकर धनुष को तानकर भीमसेन को पचीस और उनके पुत्र घटोत्कच को पांच बाण मारे। आर्य ! उसने युधिष्ठिर को तीन, सहदेव को सात, नकुल को तिहतर और द्रौपदी-पुत्रों को पांच-पांच बाणों से घायल करके घोर गर्जना की। तब भीमसेन ने नौं, सहदेव ने पांच और युधिष्ठिर ने तो बाणों से राक्षस अलम्बुष को घायल कर दिया। तत्पश्चात् नकुल ने चौसठ और द्रोपदी कुमारों ने तीन-तीन बाणों से अलम्बुष को बींघ डाला। तदनन्तर महाबली हिडिम्बाकुमार ने युद्धस्थल में उस राक्षस को पचास बाणों से घायल करके पुन: सतर बाणों द्वारा बींघ डाला और बड़े जोर से गर्जना की। राजन् ! उसके महान् सिंहनाद से वृक्षों, जलाशयों, पर्वतो और वनों सहित यह सारी पृथ्वी कौप उठी। उन महाधनुर्धर महारथियों द्वारा सब ओर से अत्यन्त घायल होकर बदले में अलम्बुष ने भी पांच-पांच बाणों से उन सबको वेघ दिया। भरतश्रेष्ठ ! उस युद्धस्थल में कुपित हुए राक्षस अलम्बुष-क्रोध में भरे हुए निशाचर घटोत्कच ने सात बाणों से घायल कर दिया। बलवान् घटोत्कच द्वारा अत्यन्त क्षत-विक्षत होकर उस महाबली राक्षसराज ने तुरंत ही सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी।
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