महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 27-42
दशम (10) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
जिस समय भयंकर गर्जना करने वाले रौद्ररूपधारी बुद्धिमान् अर्जुन ने युद्धमें गाण्डीव धारण करके सानपर चढ़ाकर तेज किये हुए गृध्रपंखयुक्त बाणों द्वारा दुर्योधन आदि मेरे पुत्रों और सैनिकों को घायल करना आरम्भ किया, उस समय तुम लोगों के मन की कैसी अवस्था हुई थी ?। वानरके चिन्ह से युक्त श्रेष्ठ ध्वजावाले अर्जुन जब आकाश को अपने बाणों से ठसाठस भरते हुए तुम लोगों पर चढ़ आये थे, उस समय उन्हें देखकर तुम्हारे मनकी कैसी दशा हुई थी ? उस अवसर पर पार्थने अपने बाणों द्वारा तुम्हारे सैनिकों के प्राण तो नहीं ले लिये थे ? जैसे वायु वेगपूर्वक चलकर मेघों की घटा को छिन्न-छिन्न कर देती है, उसी प्रकार अर्जुन ने वेग से चलाये हुए बाण-समूहों द्वारा विपक्षी नरेशों को घायल कर दिया होगा । सेना के प्रमुख भाग में जिनका नाम सुनकर ही सारे सैनिक विदीर्ण हो जाते (भाग निकलते) हैं, उन्हीं गाण्डीव धारी अर्जुनका वेग रणक्षेत्र में कौन मनुष्य सह सकता है ? जहां सारी सेनाऍ कॉप उठी, समस्त वीरोंके मन में भय समा गया, वहां किन वीरोंने द्रोणाचार्य का साथ नहीं छोड़ा और कौन कौनसे अधम सैनिक भय के मारे मैदान छोड़कर भाग गये ? मानवेतर प्राणियों (देवताओं और दैत्यों) पर भी विजय पाने वाले वीर अर्जुनको युद्ध में अपने प्रतिकूल पाकर किन वीरों ने वहां अपने शरीरों को निछावर करके मृत्यु को स्वीकार किया ? मेरे सैनिक श्वेतवाहन अर्जुन के वेग और वर्षाकाल के मेघ की गम्भीर गर्जना की भॉति गाण्डीव धनुषकी टंकार ध्वनि को सह सकेंगे । जिसके सारथि भगवान श्रीकृष्ण और योद्धा वीर धनंजय हैं, उस रथको जीतना मैं देवताओं तथा असुरों के लिये भी असम्भव मानता हूं । सुकुमार, तरूण, शूरवीर, दर्शनीय (सुन्दर), मेधावी, युद्धकुशल, बुद्धिमान और सत्यपराक्रमी पाण्डुपुत्र नकुल जब युद्धमें जोर-जोर से गर्जना करके समस्त सैनिकों को पीडित करते हुए द्रोणाचार्य पर चढ़ आये, उस समय किन वीरोंने उन्हें रोका था ? विषघर सर्प के समान क्रोध में भरे हुए तथा तेजसे दुर्जय सहदेव जब युद्ध में शत्रुओं का संहार करते हुए द्रोणाचार्य के सामने आये, उस समय श्रेष्ठ व्रतधारी अमोघ बाणोंवाले लज्जाशील और अपराजित वीर सहदेव को आते देख किन शूरवीरों ने उन्हें रोका था ? । जिन्होंने सौवीरराज की विशाल सेना को मथकर उनकी सर्वागसुन्दरी कमनीय कन्या भोजा को अपनी रानी बनाने के लिये हर लिया था, उन पुरूषशिरोमणि सात्यकि में सत्य, धैर्य, शौर्य और विशुद्ध ब्रह्राचर्य आदि सारे सद्रुण विधमान रहते हैं । वे सात्यकि बलवान्, सत्यपराक्रमी, उदार, अपराजित युद्ध में वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण के समान शक्तिशाली, अवस्थामें उनसे कुछ छोटे, अर्जुन के तुल्य यशस्वी है । उन वीरवर सात्यकि को किसने द्रोणाचार्यके पास आने से रोका ? । वृष्णिवंशके श्रेष्ठ शूरवीर सात्यकि सम्पूर्ण धनुर्धरों में उत्तम है । वे अस्त्र विधा, यश तथा पराक्रम में परशुरामजी के समान हैं । जैसे भगवान श्रीकृष्ण में तीनों लोक स्थित हैं, उसी प्रकार सात्वतवंशी सात्यकि में सत्य, धैर्य, बुद्धि, शौर्य तथा परम उत्तम ब्रह्रास्त्र विधमान हैं । इस प्रकार सर्वसद्रुणसम्पन्न महाधनुर्धर सात्यकि को रोकना देवताओं के लिये भी अत्यन्त कठिन है । उनके पास पहॅुचकर किन शूरवीरों ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका ? । पाचालों मे उत्तम श्रेष्ठ कुल एवं ख्याति के प्रेमी, सदा सत्कर्म करने वाले, संग्राम में उत्तम आत्मबल का परिचय देनेवाले, अर्जुन के हितसाधन में तत्पर, मेरा अनर्थ करने के लिये उघत रहनेवाले, यमराज, कुबेर, सूर्य, इन्द्र और वरूण के समान तेजस्वी, विख्यात महारथी तथा भयंकर युद्धमें अपने प्राणों को निछावर करके द्रोणाचार्य से भिड़ने के लिये सदा तैयार रहनेवाले वीर धृष्टधुम्न को किन शूरवीरों ने रोका ?
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