महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 114 श्लोक 79-103
चतुदर्शाधिकशततम (114) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
तदनन्तर उस महाधनुर्धर ने क्रोध में भरकर हंसते हुए ही तीन बाणों द्वारा भीमसेन को गहरी चोट पहुंचाकर युद्ध में विजय के लिये प्रयत्न करनेवाले उन सभी महारथियों को तीन-तीन बाणों से बींघ डाला। तब उन महारथियों ने कृतवर्मा को सात-सात बाण मारे। उस समय क्रोध में भरे हुए महारथी कृतवर्मा ने हंसते हुए ही समरांगण में क्षुरप्र द्वारा शिखण्डी का धनुष काट डाला। धनुष कट जाने पर शिखण्डी ने तुरंत ही कुपित हो उस युद्धस्थल में सौ चन्द्रमा से युक्त चमकीली ढाल और तलवार हाथ में ले ली। उसने स्वर्णभूषित विशाल ढाल को घुमाकर कृतवर्मा के रथ पर वह तलवार दे मारी। राजन् ! वह महान् खंग कृतवर्मा के बाण सहित धनुष को काटकर आकाश से टूटे हुए तारे के समान धरती में समा गया। इसी समय पाण्डव महारथियों ने युद्ध में जल्दी-जल्दी हाथ चलानेवाले कृतवर्मा को अपने बाणों द्वारा भारी चोट पहुंचायी।भरतश्रेष्ठ ! तदनन्तर शत्रुवीरों का संहार करनेवाले कृतवर्मा ने टूटे हुए उस विशाल धनुष को त्यागकर दूसरा धनुष हाथ में ले लिया और युद्ध में पाण्डवों को तीन-तीन बाण मारकर घायल कर दिया। साथ ही शिखण्डी को भी तीन और पांच बाणों से बींघ डाला। तत्पश्चात् महायशस्वी शिखण्डी ने भी दूसरा धनुष लेकर कछुओं के नखों के समान धारवाले बाणों द्वारा कृतवर्मा का सामना किया। राजन् ! जैसे सिंह हाथी पर आक्रमण करता है, उसी प्रकार उस रणक्षेत्र में कुपित हुए शूरवीर कृतवर्मा ने समरांगण में महात्मा भीष्म की मृत्यु का कारण बने हुए महारथी शिखण्डी पर अपने बल का प्रदर्शन करते हुए बड़े वेग से धावा किया। प्रज्वलित अग्नियों के समान तेजस्वी तथा शत्रुओं का दमन करनेवाले वे दोनों वीर अपने बाण समूहों द्वारा दो दिग्गजों के समान एक दूसरे पर टूट पड़े। जैसे दो सूर्य पृथक-पृथक अपनी किरणों का विस्तार करते हों, उसी प्रकार वे दोंनों वीर अपने श्रेष्ठ धनुष हिलाते और उन पर सैकड़ों बाणों का संधान करके छोड़त थे। अपने पैने बाणों द्वारा एक दूसरे को संताप देते हुए वे दोनों महारथी वीर प्रलयकाल के दो सूर्यो के समान शोभा पा रहे थे। कृतवर्मा ने समरांगण में महारथी शिखण्डी को पहले तिहतर बाणों से घायल करके फिर सात बाणों से क्षत-विक्षत कर दिया। उन बाणों को गहरी चोट खाकर शिखण्डी व्यथित एवं मूर्छित हो धनुष-बाण त्यागकर रथ की बैठक् में बैठ गया। नरश्रेष्ठ ! रणक्षेत्र में शिखण्डी को विषादग्रस्त देख आपके सैनिक कृतवर्मा की प्रशंसा करने और वस्त्र हिलाने लगे। महारथी शिखण्डी को कृतवर्मा के बाणों से पीड्ति जान सारथि बड़ी उतवाली के साथ उसे रणभूमि से बाहर ले गया। कुन्तीकुमारों ने शिखण्डी को रथ के पिछले भाग में बसेुध होकर बैठा देख तुंरत ही कृतवर्मा को रणभूमि में अपने रथों-द्वारा चारों ओर से घेर लिया। वहां महारथी कृतवर्मा ने अत्यन्त अद्रुत पराक्रम प्रकट किया। उसने अकेले होने पर भी सेवकों सहित समस्त पाण्डवों का समरभूमि में सामना किया। महारथी कृतवर्मा ने पाण्डवो को जीतकर चेदिदेशीय सेनिकों को परास्त किया, फिर पाञ्जालों, संजयो और महापराक्रमी केकयों को भी हरा दिया। समरांगण में कृतवर्मा के बाणों की मार खाकर पाण्डव सैनिक इधर-उधर भगने लगे। वे रणभूमि में कहीं भी स्थिर न हो सके। युद्ध में भीमसेन आदि पाण्डवों को जीतकर कृतवर्मा उस रणक्षेत्र में घूमरहित अग्नि के समान शोभा पाता हुआ खड़ा था। समरांगण में कृतवर्मा के द्वारा खदेड़े गये और उसकी बाण वर्षा से पीड़ित हुए पूर्वोक्त सभी महारथियों ने युद्ध से मुंह मोड़ लिया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तगर्त जयद्रथपर्व में सात्यकि का कौरव सेना में प्रवेश हुआ कृतवर्मा का पराक्रमविषयक एक सौ चौदहंवा अध्याय पूरा हुआ।
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