महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 11 श्लोक 1-22
एकाशद (11) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
धृतराष्ट्र का भगवान श्रीकृष्ण की संक्षिप्त लीलाओं का वर्णन करते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन की महिमा बताना
धृतराष्ट्र बोले – संजय ! वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य कर्मो का वर्णन सुनो । भगवान गोविन्दने जो-जो कार्य किये हैं, वैसा दूसरा कोई पुरूष कदापि नहीं कर सकता । संजय ! बाल्यावस्था में ही जब कि वे गोपकुल मे पल रहे थे, महात्मा श्रीकृष्ण ने अपनी भुजाओं के बल और पराक्रम को तीनों लोकों मे विख्यात कर दिया । यमुना के तटवर्ती वनमें उच्चै:श्रवा के समान बलशाली और वायु के समान वेगवान् अश्रराज केशी रहता था । उसे श्रीकृष्ण ने मार डाला । इसी प्रकार एक भयंकर कर्म करनेवाला दानव वहां बैलका रूप धारण करके रहता था, जो गौओं के लिये मृत्यु के समान प्रकट हुआ था । उसे भी श्रीकृष्णने बाल्यावस्था में अपने हाथों से ही मार डाला । तत्पश्चात् कमलनयन श्रीकृष्ण ने प्रलम्ब, नरकासुर, जम्भासुर, पीठ नामक महान असुर यमराजदृश मुर का भी संहार किया । इसी प्रकार श्रीकृष्ण ने पराक्रम करके ही जरासंघ के द्वारा सुरक्षित महातेजस्वी कंस को उसके गणों सहित रणभूमि मे मार गिराया । शत्रुहन्ता श्रीकृष्ण ने बलरामजी के साथ जाकर युद्धमें पराक्रम दिखाने वाले, बलवान, वेगवान्, सम्पूर्ण अक्षौहिणी सेनाओं के अधिपति, भोजराज कंस के मझले भाई शूरसेन देश के राजा सुनामा को समर में सेना सहित दग्ध कर डाला । पत्नी सहित श्रीकृष्ण ने परम क्रोधी ब्रह्रार्षि दुर्वासा की आराधना की । अत: उन्होंने प्रसन्न होकर उन्हें बहुत से वर दिये । कमलनयन वीर श्रीकृष्ण ने स्वयंवर में गान्धरराज की पुत्री को प्राप्त करके समस्त राजाओं को जीतकर उसके साथ विवाह किया । उस समय अच्छी जाति के घोड़ों की भॉति श्रीकृष्ण के वैवाहिक रथ में जुते हुए वे असहिष्णु राजालोग कोड़ों की मार से घायल कर दिये गये थे । जर्नादन श्रीकृष्ण ने समस्त अक्षौहिणी सेनाओं के अधिपति महाबाहु जरासंघ को उपायपूर्वक दूसरे योद्धा (भीमसेन) के द्वारा मरवा दिया । बलवान् श्रीकृष्ण ने राजाओं की सेना के अधिपति पराक्रमी चेदिराज शिशुपालको अग्रपूजन के समय विवाद करने के कारण पशु की भॉति मार डाला । तत्पश्चात् माधव ने आकाश मे स्थित रहने वाले सौम नामक दुर्घर्ष दैत्य-नगर को, जो राजा शाल्व द्वारा सुरक्षित था, समुद्र के बीच पराक्रम करके मार गिराया । उन्होंने रणक्षेत्र में अंग, वंग, कलिग, मगध, काशि, कोसल, वत्स, गर्ग, करूष तथा पौण्ड्र आदि देशों पर विजय पायी थी । संजय ! इसी प्रकार कमलनयन श्रीकृष्ण ने अवन्ती, दक्षिण प्रान्त, पर्वतीय देश, दशेरक, काश्मीर, औरसिक, पिशाच, मुद्रल, काम्बोज, वाटधान, चोल, पाण्डय, त्रिर्गत, मालव, अत्यन्त दुर्जय दरद आदि देशों के योद्धाओं को तथा नाना दिशाओं से आये हुए खशों, शकों और अनुयायियों सहित कालयवन को भी जीत लिया । पूर्वकाल में श्रीकृष्ण ने जल-जन्तुओं से भरे हुए समुद्र में प्रवेश करके जल के भीतर निवास करने वाले वरूण देवता को युद्ध में परास्त किया । इसी प्रकार ह्रषीकेश ने पाताल निवासी पञजन नामक दैत्य को युद्ध में मारकर दिव्य पञजन्य शंख प्राप्त किया । खाण्डव वन में अर्जुन के साथ अग्निदेव को संतुष्ट करके महाबली श्रीकृष्ण ने दुर्धर्ष आग्नेय अस्त्र चक्र को प्राप्त किया । वीर श्रीकृष्ण गरूड़ पर आरूढ़ हो अमरावती पुरी में जाकर वहां के निवासियों को भयभीत करके महेन्द्र भवन से पारिजात वृक्ष उठा ले आये ।
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