महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 124 श्लोक 18-34
चतुर्विंशत्यधिकशतकम (124) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
इसके बाद उन्होंने फिर कहा -‘सात्यकि और अर्जुन के न होने पर ये कौरव तो कृतार्थ हो जायेंगे और हम पराजित होंगे। अतः तुम सब लोग एक साथ मिलकर महान् वेग का आश्रय ले तुरंत ही इस सैन्य समुद्र में हलचल मचा दो। ठीक वैसे ही जैसे प्रचण्ड वायु महासागर को विक्षुब्ध कर देती है’। राजन् ! भीमसेन तथा धृष्टद्युम्न के द्वारा इस प्रकार प्रेरित हुए पाण्डव सैनिकों ने अपने प्यारे प्राणों का मोह छोड़ कर युद्ध स्थल में कौरव योद्धाओं का संहार आरम्भ कर दिया। वे उत्तम तेज वाले नरेश स्वर्ग लोक प्राप्त करना चाहते थे। अतः उन्हें युद्ध में शस्त्रों द्वारा मृत्यु आने की अभिलाषा थी।। इसी लिये उन्होंने मित्र का कार्य सिद्ध करने के प्रयत्न में अपने प्राणों की परवा नहीं की। राजन् ! इसी प्रकार आपके सैनिक भी महान् सुयश प्राप्त करना चाहते थे। अतः वे युद्ध विषयक श्रेष्ठ बुद्धि का आश्रय ले वहाँ युद्ध के लिये डटे रहे।
जिस प्रकार वह अत्यनत भयंकर घमासान युद्ध चल रहा था, उसी समय सात्यकि आपकी सारी सेनाओं को जीतकर अर्जुन की ओर बढ़ चले। वहाँ वीरों के सुवर्णमय कवचों की प्रभाएँ सूर्य की किरणों से उद्भासित हो युद्ध स्थल में सब ओर खड़े हुए सैनिकों के नेत्रों में चकाचैंध पैदा कर रही थी। महाराज ! इस प्रकार विजय के लिये प्रयत्नशील हुए महामनस्वी पाण्डवों की उस विशाल वाहिनी में राजा दुर्योधन ने प्रवेश किया। भारत ! पाण्डव सैनिकों तथा दुर्योधन का वह भयंकर संग्राम समस्त प्राणियों के लिये महान् संहारकारी सिद्ध हुआ।
धृतराष्ट्र ने पूछा - सूत ! जब इस प्रकार सारी सेनाएँ भाग रही थीं, उस समय स्वयं भी वैसे संकट में पड़े हुए दुर्योधन ने क्या उस युद्ध में पीठ नहीं दिखायी ? उस महासमर में बहुत से योद्धाओं के साथ किसी एक वीर का विशेषतः राजा दुर्योधन का युद्ध करना तो मुझे विषम ( अयोग्य ) प्रतीत हो रहा है। अत्यन्त सुख में पला हुआ, इस लोक तथा राज लक्ष्मी का स्वामी अकेला दुर्योधन बहुसंख्यक योद्धाओं के साथ युद्ध करके रणभूमि से विमुख तो नहीं हुआ ?
संजय ने कहा - भरतवंशी नरेश ! आपके एकमात्र पुत्र दुर्योधन का शत्रु पक्ष के बहुसंख्यक योद्धाओं के साथ जो आश्चर्यजनक संग्राम हुआ था, उसे मैं बताता हूँ, सुनिये। दुर्योधन ने समरांगण में पाण्डवों को सब ओर से उसी प्रकार मथ डाला, जैसे हाथी कमलों से भरे हुए किसी पोखरे को। नरेश्वर ! आपके पुत्र द्वारा आपकी सेना के आगे बढ़ने के लिये प्रेरित हुई देख भीमसेन को अगुआ बनाकर पान्चाल योद्धाओं से दुर्योधन पर आक्रमण कर दिया। तब दुर्योधन ने पाण्डुपुत्र भीमसेन को दस बाणों से, वीर नकुल और सहदेव को तीन - तीन बाणों से तथा धर्मराज युधिष्ठिर को सात बाणों से घायल कर दिया। तत्पश्चात् उसने राजा विराट और द्रुपद को छः छः बाणों से बींध डाला, फिर शिखण्डी को, धृष्टद्युम्न को बीस और द्रौपदी पुत्रों को तीन - तीन बाणों से घायल किया। तदनन्तर उस रणक्षेत्र में उसने अपने भयंकर बाणों द्वारा दूसरे दूसरे सैकंड़ों योद्धाओं, हाथियों और रथों को उसी प्रकार काट डाला, जैसे क्रोध में भरा हुआ यमराज समस्त प्राणियों का विनाश करता है।
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