महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 125 श्लोक 40-59
पञ्चविंशत्यधिकशतकम (125) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
चेदिराज के मारे जाने पर उत्तम अस्त्रों का ज्ञाता उसका पुत्र अमर्ष के वशीभूत हो पिता के स्थान पर आकर डट गया। परंतु हँसते हुए द्रोणाचार्य ने उसे भी अपने बाणों द्वारा उसी प्रकार यमलोक पहुँचा दिया, जैसे बलवान् महाव्याघ्र विशाल वन में किसी हिरन के बच्चे को दबोच लेता है। भरतनन्दन ! उन पाण्डव योद्धाओं के इस प्रकार नष्ट होने पर जरासंध के वीर पुत्र सहदेव ने स्वयं ही द्रोणाचार्य पर धावा किया। जैसे बाइल आकाश में सूर्य को ढक लेता है, उसी प्रकार महाबाहु सहदेव ने युद्ध स्थल में अपने बाणों की धाराओं ये द्रोणाचार्य को तुरंत ही अदृश्य कर दिया। उसकी वह फुर्ती देखकर शत्रियों का संहार करने वाले द्रोणाचार्य ने शीघ्र ही उस पर सैंकड़ों और सहस्त्रों बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। इस प्रकार रणक्षेत्र में द्रोणाचार्य ने सम्पूर्ण धनुर्धरों के देखते - देखते रथ पर बैइे हुए रथियों में श्रेष्ठ जरासंध कुमार को अपने बाणों द्वारा आच्छादित करके उसे शीघ्र ही काल के गाल में डाल दिया। जैसे काल आने पर यमराज समस्त प्राणियों को ग्रस लेता है, उसी प्रकार काल के समान द्रोणाचार्य ने जो जो वीर उनके सामने पहुँचा, उसे उसे मौत के हवाले कर दिया ।
महाराज ! तदनन्तर द्रोणाचार्य ने युद्ध स्थल में अपना नाम सुनाकर अनेक सहस्त्र बाणों द्वारा पाण्डव सैनिकों को ढक दिया। द्रोधाचार्य के चलाये हुए वे बाण सान पर चढ़ाकर तेज किये गये थे। उन पर आचार्य के नाम खुदे हुए थे। उन्होंने समर भूमि में सैंकड़ों मनुष्यों, हाथियों और घोड़ों का संहार कर डाला। जैसे सर्दी से पीडि़त हुई गौएँ थर थर काँपती हैं और जैसे देवराज इन्द्र की मार खाकर बड़े बड़े असुर काँपने लगते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के बाणों से बिद्ध होकर पान्चाल सैनिक काँप उठे । भरतश्रेष्ठ ! फिर तो द्रोणाचार्य के द्वारा मारी जाती हुई पाण्डवों की सेनाओं में घोर आर्तनाद होने लगा। भरतनन्दन ! उस समय ऊपर से तो सूर्य तपा रहे थे और रणभूमि में द्रोणाचार्य के सायकों की मार पड़ रही थी। उस अवस्था में पान्चाल वरा मन-ही-मन अत्यन्त भयभीत एवं व्याकुल हो उठे। उस युद्ध स्थल में भरद्वाज नन्दन द्रोणाचार्य के बाण समूहों से आहत होकर पान्चाल महारथी मूर्छित हो रहे थे। उनकी जाँघें अकड़ गयी थीं।
महाराज ! उस समय चेदि, सृंजय, काशी और कोसल प्रदेशों के सैनिक हर्ष और उत्साह में भरकर युद्ध की अभिलाषा से द्रोणाचार्य पर टूट पड़े। ‘द्रोणाचार्य को मार डालो, द्रोणाचार्य को मार डालो’ परस्पर ऐसा कहते हुए चेदि, पान्चाल और सृंजय वीरों ने द्रोणाचार्य पर धावा किया। वे पुरुषसिंह वीर समरांगण में महातेजस्वी आचार्य द्रोण को यमराज के घर भेज देने की इच्छा से अपनी सारी शक्ति लगाकर प्रयत्न करने लगे। इस प्रकार पयत्न में लगे हुए उन वीरों को विशेषतः चेदि देश के प्रमुख योद्धाओं को द्रोणाचार्य ने अपने बाणों द्वारा यमलोक भेज दिया। चेदि देश के प्रधान वीर जब इस प्रकार नष्ट होने लगे, तब द्रोणाचार्य के बाणों से पीडि़त हुए पान्चाल योद्धा थर थर काँपने लगे। माननीय भरतनन्दन ! वे द्रोण के वैसे पराक्रम को देखकर भीमसेन तथा धृष्टद्युम्न को पुकारने लगे। और परस्पर कहने लगे - ‘इस ब्राह्मण ने निश्चय ही कोई बड़ी भारी दुष्कर तपस्या की है, तभी तो यह युद्ध में अत्यन्त क्रुद्ध होकर श्रेष्ठ रथियों को दग्ध कर रहा है।
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