महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 129 श्लोक 20-41
एकोनत्रिंशदधिकशतकम (129) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
तदनन्तर कर्ण ने बीस बाणों से भीमसेन को गहरी चोट पहुँचायी। फिर तुरंत ही उनके सारथि को पाँच बाणों से बींध डाला। तब शीघ्रता करने वाले महायशस्वी भीमसेन ने भी हँसकर चैंसठ बाणों द्वारा रण भूमि में कर्ण पर आक्रमण किया। राजन् ! फिर महाधनुर्धर कर्ण ने चार बाण चलाये। परंतु भीमसेन ने अपने हाथ की फुर्ती दिखाते हुए झुकी हुई गाँठ वाले अनेक बाणों द्वारा अपने पास आने के पहले ही कर्ण के बाणों के टुकड़े - टुकड़े कर दिये। तब कर्ण ने अनेकों बार बाण समूहों की वर्षा करके भीमसेन को आच्छादित कर दिया। कर्ण के द्वारा बारंबार आचछादित होते हुए पाण्डु नन्दन महारथी भीम ने कर्ण के धनुष को मुट्ठी पकड़ने की जगह से काट दिया और झुकी हुई गाँठ वाले बहुत से बाणों द्वारा उसे घायल कर दिया। तत्पश्चात् भयंकर कर्म करने वाले महारथी सूतपुत्र कर्ण ने दूसरा धनुष लेकर उस पर प्रत्यन्चा चढ़ायी और समर भूमि में भीमसेन को घायल कर दिया। तब भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने वेग पूर्वक सूत पुत्र की छाती मे ण्ुकी हुई गाँठ वाले तीन बाण धँसा दिये।
भरतश्रेष्ठ ! ठीक छाती के बीच में गड़े हुए उन बाणों द्वारा कर्ण तीन शखरों वाले ऊँचे पर्वत के समान सुशोभित हुआ। उन उत्तम बाणों से बिंणे हुए कर्ण की छाती से बहुत रक्त गिरने लगा, मानो धतु की धाराएँ बहाने वाले पर्वत से गैरिक धातु ( गेरु ) प्रवाहित हो रहा हो। उस गहरे प्रहार से पीडि़त हो कर्ण कुछ विचलित हो उठा। फिर धनुष को कान तक खींचकर उसने अनेक बाणों द्वारा भीमसेन को बींध डाला। तत्पश्चात् उन पर पुनः सैंकड़ों और हजारों बाणों का प्रहार किया। सुदृढ़ धनुर्धर कर्ण के बाणों से पीडि़त हो भीमसेन ने एक क्षुर के द्वारा तुरंत ही उनके धनुष की प्रत्यन्चा काट दी। साथ ही उसके सारथि को एक भल्ल से मारकर रथ की बैइक से नीचे गिरा दिया। इतना ही नहीं , महारथी भीम ने उसके चारों घोड़ों के भी प्राण ले लिये।
प्रजानाथ ! उस समय कर्ण भय के मारे उस अश्वहीन रथ से कूदकर तुरंत की वृषसेन के रथ पर जा बैठा । इस प्रकार अलवान् एवं प्रतापी भीमसेन ने रण भूमि में कर्ण को पराजित करके मेघ गर्जना के समान गम्भीर स्वर से सिंहनाद किया। भीमसेन का वह महान् सिंहनाद सुनकर उनके द्वारा युद्ध में कर्ण को पराजित हुआ जान राजा युधिष्ठिर बड़े प्रसन्न हुए।
उस समय पाण्डव सेना सब ओर शंखनाद करने लगी। शत्रु सेना की शंख ध्वनि सुनकर आपके सैनिक भी जोर - जोर से गर्जना करने लगे। राजा युधिष्ठिर ने युद्ध स्थल में हर्ष के कारण अपनी सेना को शंख और बाणों की ध्वनि तथा हर्षनाद से व्याप्त कर दिया। इसी समय अर्जुन ने गाण्डीव धनुष की टंकार की और भगवान् श्रीकृष्ण ने पान्चजन्य शंख बजाया। परंतु उसकी ध्वलि को तिरोहित करके गरजते हुए भीमसेन का भयंकर सिंहनाद सम्पूर्ण सेनाओं में सुनायी देने लगा। तदनन्तर वे दोनों वीर एक दूसरे पर पृथक् - पृथक् सीधे जाने वाले बाणों का प्रहार करने लगे । राधा नन्दन कर्ण मृदुता पूर्वक बाण चलाता था और पाण्डु नन्दन भीमसेन कठोरता पूर्वक। महाराज ! कुन्ती पुत्र भीमसेन के द्वारा कर्ण को बहु संख्यक बाणों से पीडि़त हुआ देख, दुर्योधन ने दुःशल से कहा - ‘दुःशल ! देखो, कर्ण संकट में पड़ा है। तुम शीघ्र उसके लिये रथ प्रस्तुत करो’। राजा के ऐसा कहने पर दुःशल कर्ण के पास दौड़ा गया; फिर महारथी कर्ण दुःशल के रथ पर आरूढ़ हो गया। इसी समय भीमसेन ने सहसा जाकर दस बाणों से उन दोनों को घायल कर दिया। तत्पश्चात् पुनः कर्ण पर आघात किया और दुःशल का सिर काट लिया।
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