महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 130 श्लोक 35-44
त्रिंशदधिकशतकम (130) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
इसी प्रकार उत्तमौजा ने भी अत्यन्त कुपित हो अपने सुवर्ण भूषित बाणों द्वारा उसके सारथि को गहरी चोट पहुँचायी और उसे यमलोक भेज दिया। राजेन्द्र ! तब दुर्योधन ने भी पान्चालराज उत्तमौजा के चारों घोड़ों और दोनों पाश्र्वरक्षकों को सारथि सहित मार डाला ।।36।। युद्ध में घोड़ों और सारथि के मारे जाने पर उत्तमौजा शीघ्रता पूर्वक अपने भाई युधामन्यु के रथ पर जा चढ़ा। भाई के रथ पर बैठकर उत्तमौजा ने अपने बहुसंख्यक बाणों द्वारा दुर्योधन के घोड़ों पर इतना प्रहार किया कि वे प्राणशून्य होकर धरती पर गिर पड़े। घोड़ों के धराशायी हो जाने पर युधामन्यु ने उस युद्ध स्थल में उत्तम बाण का प्रहार करके दुर्योधन के धनुष और तरकस को भी शीघ्रता पूर्वक काट गिराया। घोड़े और सारथि के मारे जाने पर आपका पुत्र राजा दुर्योधन रथ से उतर पड़ा और गदा लेकर पान्चाल देश के उन वीरों की ओर दौड़ा। उस समय क्रोध में भरे हुए कुरुराज दुर्योधन को अपनी ओर आते देख दोनों भाई युधामन्यु और उत्तमौजा रथ के पिछले भाग से नीचे कूद गये। नरेश्वर ! तदनन्तर अत्यनत कुपित हुए गदाधारी दुर्योधन ने घोड़े, सारथि और ध्वज सहित उस सुवर्ण जटित सुन्दर रथ को गदा के आघात से चूर - चूर कर दिया। इस प्रकार उस रथ को तोड़ - फोड़ कर घोड़ों और सारथि से हीन हुए शत्रुसंतापी दुर्शेधन शीघ्र ही मद्रराज शल्य के रथ पर जा चढ़ा। तत्पश्चात् पान्चाल सेना के वे दोनों प्रधान महारथी राजकुमार युधामन्यु और उत्तमौजा देसरे दो रथों पर आरूढ़ होकर अर्जुन के समीप चले गये।
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