महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 132 श्लोक 21-38

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द्वात्रिंशदधिकशतकम (132) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: द्वात्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 21-38 का हिन्दी अनुवाद

उस समय भरतवंश के उस सिंह ने अपने जीवन का मोह छोड़कर सुवर्णमय पृष्ठ भाग से सुशोभित दुर्धर्ष एवं विशाल धनुष की टंकार करते हुए यहाँ पर धावा किया। कर्ण के रथ पर भीमसेन ने सान पर चढ़ा कर स्वच्छ किये हुए तेजस्वी बाणों का जाल सा बिछाकर सूर्य की प्रभा को आच्छादित कर दिया। तब अधिरथ पुत्र कर्ण ने हँसकर शिला पर तेज किये हुए पंख युक्त बाणों द्वारा भीमसेन के उन बाण समूहों को तुरंत ही छिन्न - भिन्न कर दिया। महारथी महाबाहु महाबली अधिरथ पुत्र कर्ण ने उस समय नौ तीखे महाबाणों से भीमसेन को घायल कर दिया। जैसे मतवाला हाथी अंकुश से रोका जाय, उसी प्रकार पंख युक्त बाणों द्वारा सूत पुत्र कर्ण पर चढ़ आये। जैसे मतवाला हाथी दूसरे मतवाले हाथी पर णावा करता है, उसी प्रकार पाण्डव शिरोमणि वेगशाली भीम को वेग पूर्वक आक्रमण करते देख कर्ण भी युद्ध सथल में उनका सामना करने के लिसे आगे बढ़ा। तदनन्तर कर्ण ने हर्ष पूर्वक सैंकड़ों भेरियों के समान गम्भीर ध्वनि करने वाले शंख को बजाकर सब ओर गुँजा दिया ।
इसने पाण्डवों की सेना में विक्षुब्ध समुद्र के समान हलचल पैदा हो गयी। हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों से युक्त उस सेना को विक्षुब्ध हुई देख भीमसेन ने कर्ण के पास आकर उसे बाणों द्वारा आच्छादित कर दिया। उस रण क्षेत्र में पाण्डु नन्दन भीम को अपने बाणों से आच्छादित करते हुए कर्ण ने रीछ के समान रंग वाले अपने काले घोड़ों को भीमसेन के हंस - सदृश श्वेत वर्ण वाले उत्तम घोड़ों के साथ मिला दिया। रीछ के समान रंग वाले और वायु के समान वेगशाली घोड़ों को श्वेत अश्वों के साथ मिला हुआ देख आपके पुत्रों की सेना में हाहाकार मच गया। महाराज ! वायु के समान वेग वाले वे सफेद और काले घोड़े परस्पर मिलकर आकाश में उठे हुए सफेद और काले बादलों के समान अणिक शोभा पा रहे थे। रोषावेश में भरकर क्रोध से लाल आँखें किये कर्ण और भीमसेन को देखकर आपके महारथी भयभीत हो काँपने लगे ।। भरतश्रेष्ठ ! उन दोनों का संग्राम यमराज के राज्य के समान अत्यन्त भयेकर था। प्रेतराज की पुरी के समान उसकी ओर देखना अत्यनत कठिन हो रहा था। उस विचित्र से समाज को देखते हुए महारथियों ने उस महासमर में निश्चय ही उन दोनों में से किसी एक ही व्यक्ति की विजय होती नहीं देखी।
राजन् ! प्रजानाथ ! पुत्रों सहित आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वरूप महान् अस्त्रधारी भीमसेन और कर्ण का अत्यन्त निकट से होने वाला संघर्ष सब लोग देख रहे थे। उन दोनों अद्भुत पराक्रमी शत्रुहन्ता वीरों ने एक दूसरे को तीखे बाणों सक आच्छादित करते हुए आकाश को बाण समूहों से व्याप्त कर दिया। पैने बाणों द्वारा एक दूसरे को मार डालने की इच्छा वाले दोनों महारथी वीर वर्षा करने वाले बादलों के समान अत्यन्त दर्यानीय हो रहे थे । प्रभो ! उन दोनों शत्रुहन्ता वीरों ने सुवर्ण निर्मित बाणों की वर्षा करके आकाश को उसी प्रकार प्रकाशमान कर दिया, जैसे बड़ी - बड़ी उल्काओं के गिरने से वह प्रकाशित होने लगता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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