महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 136 श्लोक 1-19
षट्त्रिंशदधिकशतकम (136) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
भीमसेन और कर्ण का युद्ध, कर्ण का पलायन, धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध तथा भीम का पराक्रम
संजय कहते हैं - राजन् ! आपके पुत्रों को रण भूमि में गिरा हुआ देख प्रतापी कर्ण अत्यन्त कुपित हो अपने जीवन से विरक्त हो उठा। उस समय अधिरथ पुत्र कर्ण अपने आपको अपराधी सा मानने लगा; क्योंकि भीमसेन ने उसकी आँखें के सामने रण भूमि में आपके पुत्रों को मार डाला था। तदनन्तर पहले के वैर का बारंबार स्मरण करके कुपित हुए भीमसेन ने कर्ण के शरीर में बड़े वेग से अपने पैने बाण धँसा दिये। तब राधा नन्दन कर्ण ने हँसते हुए से पाँच बाण मारकर भीमसेन को घायल कर दिया। फिर शान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख वाले सत्तर बाणों द्वारा उन्हें गहरी चोट पहुँचायी। कर्ण के चलाये हुए उन बाणों की कुछ भी परवा न करके भीमसेन ने रण भूमि में झुकी हुई गाँठ वाले सौ बाणों द्वारा राधा पुत्र को घायल कर दिया। माननीय नरेश ! फिर पाँच तीखे बाणों द्वारा सूत पुत्र के मर्म स्थानों में चोट पहुँचाकर भीमसेन ने एक भल्ल द्वारा उसका धनुष काट दिया। भारत ! तब शत्रुओं कां संताप देने वाले कर्ण ने खिन्न होकर दूसरा धनुष हाथ में ले भीमसेन को अपने बाणों द्वारा आच्छादित कर दिया। भीमसेन ने उसके घोड़ों और सारथि को मारकर उसके प्रहार का बदला चुका लेने के पश्चात् पुनः बड़े वेग से अट्टहास किया।
महाराज ! पुरुष शिरोमणि भीम ने अपने बाणों द्वारा कर्ण का धनुष भी फिर काअ दिया। स्वर्णमय पृष्ठ भाग से युक्त और गम्भीर टंकार करने वाला उसका वह धनुष पृथ्वी पर गिर पड़ा। महारथी कर्ण उस रथ से उतर गया और गदा लेकर उसने समर भूमि में भीमसेन पर रोष पूर्वक चला दी। राजन् ! उस विशाल गदा को अपने ऊपर आती देख भीमसेन ने सब सेनाओं के देखते देखते बाणों द्वारा उसका निवारण कर दिया। तब सूत पुत्र के वध की इच्छा वाले पराक्रमी पाण्डु पुत्र भीमसेन ने बड़ी उतावली के साथ एक हजार बाण चलाये। परंतु कर्ण ने उस महासमर में अपने बाणों द्वारा उन सभी बाणों का निवारण करके भीमसेन के कवच को बाणों से छिन्न - भिन्न कर दिय। तदनन्तर उसने सब सेनाओं के देखते देखते भीमसेन पर पचीस नाराचों का प्रहार किया। वह अद्भुत सा बात हुई। माननीय नरेश ! तब अत्यन्त क्रोध में भरे हुए महाबाहु भीमसेन ने सूत पुत्र को झुकी हुई गाँठ वाले नौ बाण मारे। वे तीखे बाण कर्ण के कवच तथा दाहिनी भुजा को विदीर्ण करके बाँबी में घुसने वाले सर्पों के समान धरती में समा गये । भीमसेन के धनुष से छूटे हुए बाणों से आच्छादित होकर कर्ण पुनः भीमसेन से विमुख हो गया ( उन्हें पीठ दिखा कर भाग चला )। सूत पुत्र कर्ण को युद्ध से विमुख, पैदल तथा भीेमसेन के बाणों से आच्छादित देखकर राजा दुर्योधन अपने सैनिकों से बोला - ‘वीरों ! सब ओर से राधा नन्दन कर्ण के रथ की ओर शीघ्र जाओ और उनकी रक्षा का प्रबन्ध करो।’ राजन् ! तब भाई की यह बात सुनकर आपके पुत्र शीघ्रता पूर्वक युद्ध में पाण्डु पुत्र भीम पर बाणों की वर्षा करते हुए आ पहुँचे।
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