महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 137 श्लोक 20-37
षट्त्रिंशदधिकशतकम (136) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
भारत ! दुर्योधन की आज्ञा पाकर उसके सात भाईयों ने कुपित होकर भीमसेन पर आक्रमण करके उन्हें चारों ओर से घेर लिया। जैसे वर्षा ऋतु में मेघ पर्वत पर जल की धाराएँ बरसाते हैं, उसी प्रकार उन कौरवों ने कुन्ती कुमार के समीप जाकर उन्हें अपने बाणों की वर्षा से आचछादित कर दिया। राजन् ! उन सात महारथियों ने कुपित हो भीमसेन को उसी प्रकार पीड़ा दी, जैसे सात ग्रह प्रजाओं के संहारकाल में सोम को पीड़ा देते हैं। महाराज ! तब कुनती कुमार पाण्डु पुत्र भीम ने अत्यन्त स्वच्द धनुष को सुदृढ़ मुट्ठी से वेग पूर्वक दबाकर उन सातों भाइयों को साधारण मनुष्य जानकर उनके लिये धनुष पर सात बाणों का संधान किया। सूर्य केरणों के समान उन चमकीले बाणों को शक्तिशाली भीम ने परिश्रम पेर्वक आपके उन पुत्रों पर छोड़ दिया। नरेश्वर ! पहले के वैर का बारंबार स्मरण करके भीमसेन ने आपके पुत्रों के प्राणों को उनके शरीरों से निकालते हुए से उन बाणों का प्रहार किया था। भारत ! भीमसेन के चलाये हुए वे बाण सुवर्णमय पंखों से सुशोभित तथा शिला पर तेज किये गये थे। वे आपके पुत्रों को विदीर्ण करके आकाश में उड़ चले।
महाराज ! वे स्वर्ण भूषित बाण उन सातों भाइयों के वक्षःस्थल को विदीर्ण करके आकाश में विचरने वाले गरुड़ पक्षियों के समान शोभा पाने लगे। राजेन्द्र ! वे सुवर्ण भूषित सातों बाण आपके पुत्रों का रक्त पीकर लाल हो ऊपर को उछले थे। उनके पंख और अग्र भागों पर अधिक रक्त जम गया था। उन बाणों से मर्म स्थल विदीर्ण हो जाने के कारण वे सातों वीर रथों से पृथ्वी पर गिर पे, मानो किसी हाथी ने पर्वत के शिखर पर खड़े हुए विशाल वृक्षों को तोड़ गिराया हो। शत्रृन्जय, शत्रुसह, चित्र ( चित्रवाण ), चित्रायुध (अग्रायुध ), दृढ़ ( दृढ़वर्मा ), चित्रसेन ( उग्रसेन ) और विकर्ण - इन सातों भाइयों को भीमसेन ने मार गिराया। राजन् ! वहाँ मारे गये आपके सभी पुत्रों में से विकर्ण पाण्डवों को अणिक प्रिय था। पाण्डु नन्दन भीमसेन उसके लिये अत्यन्त दुखी होकर शोक करने लगे। वे बोले - ‘विकर्ण ! मैंने यह प्रतिज्ञा कर रक्खी थी कि युद्ध स्थल में धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मार डालूँगा ! इसीलिये तुम मेरे हाथ से मारे गये हो।
ऐसा करके मैंने अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया है। ‘वीर ! तुम क्षत्रिय धर्म का विचार करके समर भूमि में आ गये। इसीलिये इस युद्ध में मारे गये; क्योंकि युद्ध धर्म कठोर होता है। ‘जो विशेषतः राजा युधिष्ठिर के और हमारे हित में तत्पर रहते थे, वे बृहस्पति के समान अगाध बुद्धि वाले महा तेजस्वी गंगा नन्दन भीष्म भी न्याय अथवा अन्याय से मारे जाकर समर भूमि में सो रहे हैं और प्राण त्याग की परिसिथति में डाल दिये गये हैं। इसी से कहना पड़ता है कि युद्ध अत्यन्त निष्ठुर कर्म है’। संजय कहते हैं - राजन् ! राधा नन्दन कर्ण के देखते देखते उन सातों भाइयों को मारकर पाण्डु नन्दन महाबाहु भीम ने भयंकर सिंहनाद किया। भारत ! उस सिंहनाद ने धर्मराज युधिष्ठिर को शूरवीर भीम के युद्ध की तथा अपनी महान् विजय की मानो सूचना दे दी।
« पीछे | आगे » |