महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 139 श्लोक 79-95

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एकोनचत्वारिंशदधिकशतकम (139) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: एकोनचत्वारिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 79-95 का हिन्दी अनुवाद

उनके रथ आदि साधनों को नष्ट करके राधा नन्दन कर्ण ने फिर क्रोध पूर्वक रण क्षेत्र में युद्ध के लिये उपसिथत हुए इन पाण्डु पुत्र भीमसेन पर आक्रमण किया। महाराज ! एक दूसरे से स्पर्धा रखने वाले वे दोनों नरश्रेष्ठ महाबली वीर परस्पर भिड़कर वर्षा ऋतु में गर्जना करने वाले दो मेघों के समान गरज रहे थे। युद्ध स्थल में अमर्ष और क्रोध से भरे हुए उन दोनों पुरुषसिंहों का संग्राम देव - दानव युद्ध के समान भयंकर हो रहा था। जब कुन्ती कुमार भीमसेन के सारे अस्त्र शस्त्र नष्ट हो गये, उनके पास एक भी आयुध शेष नहीं रह गया और कर्ण के द्वारा उन पर पूर्ववत् आक्रमण होता रहा, तब वे रथ के मार्ग को बंद कर देने के लिये अर्जुन के मारे हुए पर्वताकार हाथियों को वहाँ गिरा देख उनके भीतर प्रवेश कर गये। हाथियों के समूह में पहुँचकर मानो वे रथ के आक्रमण से बचने के लिये दुर्ग के भीतर प्रविष्ट हो गये हों, ऐसा अनुभव करते हुए पाण्डु पुत्र भीम केवल अपने प्राण बचाने की इच्छा करने लगे, उन्होंने राधा पुत्र कर्ण पर प्रहार नहीं किया।
शत्रुओं की नगरी पर विजय पाने वाले कुन्ती कुमार भीमसेन यह चाहते थे कि कर्ण के बाणों से बचने के लिये कोई व्यवघान ( आड़ ) निकल जाय; इसीलिये वे अर्जुन के बाणों से मारे गये एक हाथी की लाश को उठाकर चुपचाप खड़े हो गये। उस समय वे संजीवन नामक महान् औषधि युक्त पर्वत को उठाये हुए हनुमान जी के समान जान पड़ते थे। कर्ण ने बाणों द्वारा उस हाथी के भी टुकड़े टुकड़े कर दिये। तब पाण्डु नन्दन भीम ने हाथी के कटे हुए अंगोें को ही कर्ण पर फेंकना शुरु किया। रथों के पहिये, घोड़ों की लाशे तथा और भी जो जो वस्तुएँ वे धरती पर पड़ी देखते, उन्हें उठाकर क्रोध पूर्वक कर्ण पर फेंकते थे; परंतु वे जो जो वस्तु फेंकते, उन सबको कर्ण अपने तीखे बाणों से काट डालता था। अब भीमसेन पे अपने अंगूूठे को मुट्ठी के भीतर करके वज्रतुल्यअत्यन्त भयंकर घूँसा तानकर सूत पुत्र कर्ण को मार डालने की इच्छा की। तब तक क्षण भर में उन्हें अर्जुन की याद आ गयी।
अतः सव्यसाची अर्जुन ने पहले जो प्रतिज्ञा की थी, उसकी रक्षा करते हुएपाण्डु नन्दन भीम ने समर्थ एवं शक्तिशाली होने पर भी उस समय कर्ण का वध नहीं किया। इस प्रकार वहाँ बाणों के आघात से व्याकुल हुए भीमसेन को सूत पुत्र कर्ण ने बारंबार अपने पैने बाणों की मार से मूर्छित सा कर दियो। परंतु कुन्ती के वचन का स्मरण करके उसने शस्त्रहीन भीमसेन का वध नहीं किया। कर्ण ने उनके पास जाकर अपने धनुष की नोक से उनका स्पर्श किया। धनुष का स्पर्श होते ही वे क्रोध मे भरे हुए सर्प के समान फुफकार उठे और उनहोंने कर्ण के हाथ से वह धनुष छीनकर उसे उसी के मस्तक पर दे मारा। भीमसेन की मार खाकर राधा पुत्र कर्ण की आँखें लाल हो गयीं। उसने हँसते हुए से यह बात कही - ‘ओ बिना दाढ़ी मूंछ के नपुंसक ! ओ मूर्ख ! अरे पेटू ! तू तो अस्त्र शस्त्र के ज्ञान से सर्वथा शून्य है। युद्ध भीरु कायर ! छोकरे ! अब फिर कभी युद्ध न करना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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