महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 141 श्लोक 19-37
एकचत्वारिंशदधिकशतकम (141) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
‘पार्थ ! युद्ध सथल में द्रोणाचार्य असदि बहुत से महारथियों के साथ एक मात्र रथ की सहायता से युद्ध करके यह सात्यकि इधर आ रहा है। ‘कुन्ती कुमार ! अपने बाहुबल का आश्रय ले कौरव सेना को विदीर्ण करके धर्मराज का भेजा हुआ यह सात्यकि यहाँ आ रहा है। ‘कुन्ती नन्दन ! कौरव सेना में किसी प्रकार भी जिसकी समता करने वाला एक भी योद्धा नहीं है, वही यह रण दुर्मद सात्यकि यहाँ आ रहा है। ‘पार्थ ! जैसे सिंह गायों के बीच से अनायास ही निकल जाता है, उसी प्रकार कौरव सेना के घेरे से छूटकर निकला हुआ यह सात्यकि बहुत सी शत्रु सेना का संहार करके इधर आ रहा है। ‘कुन्ती नन्दन ! यह सात्यकि सहस्त्रों राजाओं के कमल सदृश मस्तकों द्वारा इस रण भूमि को पाटकर शीघ्रता पूर्वक इधर आ रहा है। ‘यह सात्यकि रण भूमि में भाइयों सहीत दुर्योधन को जीतकर और जलसंध का वध करके शीघ्र यहाँ आ रहा है। ‘शोणित ! और मांस रूपी कीचड़ से युक्त खून की नदी बहाकर और कौरव सैनिकों को तिनकों के समान उड़ाकर यह सात्यकि इधर आ रहा है’। तब हर्ष में भरे हुए कुन्ती कुमार अर्जुन ने केशव से कहा - ‘महाबाहो ! सात्यकि जो मेरे पास आ रहा है, यह मु,झे प्रिय नहीं है। ‘केशव ! पता नहीं, धर्मराज का क्या हाल है ? सात्यकि से रहित होकर वे जीवित हैं या नहीं ? ‘महाबाहो ! सात्यकि को तो उन्हीं की रक्षा करनी चाहिये थी।
श्रीकृष्ण ! उन्हें छोड़कर ये मेरे पीछे कैसे चले ओय? ‘इन्होंने राजा युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य के लिये छोड़ दिया और सिंधुराज जयद्रथ भी अभी मारा नहीं गया । इसके सिवा ये भूरिश्रवा रण में शिनि पौत्र सात्यकि की ओर अग्रसर हो रहा है । ‘इस समय सिंधुराज जयद्रथ के कारण यह मुझ पर बहुत बडत्रा भार आ गया। एक तो मुझे राजा का कुशल समाचार जानना है, दुसरे सात्यकि की भी रक्षा करनी है। ‘इसके सिवा जयद्रथ का भी वध करना है। इधर सूर्य देव अस्ताचल पर जा रहे हैं। माधव ! ये महाबाहु सात्यकि इस समय थक कर अल्पप्राण हो रहे हैं। इनके घोडत्रे और सारथि भी थक गये हैं। किंतु केशव ! भूरिश्रवा और उनके सहायक थके नहीं हैं। ‘क्या इन दोनों के इस संघर्ष में इस समय सात्यकि के सकुशल विजयी हो सकेगे ? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि सत्य पराक्रमी शिनि प्रवर महाबली सात्यकि समुद्र को पार करके गाय की खुरी के बराबर जल में डूबने लगे। ‘कौरव कुल के मुख्य वीर अस्त्रवेत्ता महामना भूरिश्रवा से भिड़कर क्या सात्यकि सकुशल रह सकेंगे। ‘केशव ! मैं तो धर्मराज के इस कार्य को विपरीत समझता हूँ, जिन्होंने द्रोणाचार्य का भयश् छोडत्रकर सात्यकि को इधर भेज दिया। ‘जैसे बाज पक्षी मांस पर झपट्टा मारता है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य प्रतिदिन धर्मराज को बेदी बनाना चाहते हैं। क्या राजा युधिष्ठिर सकुशल होंगे?’
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