महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 170 श्लोक 58-70
सप्तत्यधिकशततम (170) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
‘अतः बहुत से श्रेष्ठ महारथी वहाँ उनका सामना करने के लिये जायँ। जब तक अर्जुन यह नहीं जानते कि सात्यकि बहुसंख्यक योद्धाओं से घिर गये हैं, तभी तक तुम सभी शूरवीर बाणों का प्रहार करने में अधिकाधिक शीघ्रता करो। ‘महाराज! जिस उपाय से भी यहाँ ये मधुवंशी सात्यकि परलोकगामी हो जायँ, अच्छी तरह प्रयोग में लायी हुई सुन्दर नीति के द्वारा वैसा ही प्रयत्न करो’। राजन्! जैसे इन्द्र समरागंण में परम यशस्वी भगवान् विष्णु से कोई बात कहते हैं, उसी प्रकार आपके पुत्र दुर्योधन ने कर्ण की सलहा मानकर सुबल पुत्र शकुनि से इस प्रकार कहा- ‘मामा! तुम युद्ध से पीछे न हटने वाले दस हजार हाथियों और उतने ही रथों के साथ तुरंत ही अर्जुन का सामना करने के लिये जाओ। ‘दुःशासन, दुर्विषह, सुबाहु और दुष्प्रधर्षण-ये (महारथी) बहुत से पैदल सैनिकों को साथ लेकर तुम्हारे पीछे-पीछे जायँगे।‘मेरे महाबाहु मामा! तुम श्रीकृष्ण, अर्जुन, धर्मराज युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव तथा भीमसेन को भी मार डालो।‘मामा! जैसे देवताओं की आशा देवराज इन्द्र पर लगी रहती है, उसी प्रकार मेरी विजय की आशा तुम पर अवलम्बित है। जैसे अग्निकुमार स्कन्द ने असुरों का संहार किया था, उसी प्रकार तुम भी कुन्तीकुमारों का वध करो’। प्रभो! आपके पुत्र दुर्योधन के ऐसा कहने पर शकुनि विशाल सेना और आपके अन्य पुत्रों के साथ कुन्तीकुमारों का सामना करने के लिये गया। वह आपके पुत्रों का प्रिय करने के लिये पाण्डवों को भस्म कर देना चाहता था। फिर तो आपके योद्धाओं का शत्रुओं के साथ घोर युद्ध आरम्भ हो गया। राजन्! जब शकुनि पाण्डव सेना की ओर चला गया, तब विशाल सेना के साथ सूतपुत्र कर्ण ने युद्धस्थल में कई सौ बाणों की वर्षा करते हुए तुरंत ही सात्यकि पर आक्रमण किया। इसी प्रकार अन्य सब राजाओं ने भी सात्यकि को घेर लिया।। भारत! तदनन्तर द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न के रथ पर आक्रमण किया। उस रात्रि के समय वीर धृष्टद्युम्न और पान्चालों के साथ द्रोणाचार्य का महान् एवं अद्भुत युद्ध हुआ।
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