महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 22 श्लोक 20-30

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द्वाविंश (22) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 20-30 का हिन्दी अनुवाद

मै ऐसा मानता हॅू कि पाण्‍डव तुम्‍हारे द्वारा दिये हुए विष, अग्निदाह और धूत के क्‍लेशों तथा वनवास को याद करके कभी युद्धभूमि नही छोड़ेंगे। अमित तेजस्‍वी महाबाहु कुन्‍तीपुत्र वृकोदर इधर की ओर लौटे हैं । वे बडे़-बडे़ उदार महारथियों को चुन-चुन कर मारेंगे। वे खग, धनुष, शक्ति, घोड़े, हाथी, मनुष्‍य एवं रथो द्वारा और लोहे के डंडे से समूह-‍के-समूह सैनिकों का संहार कर डालेंगे। देखों, भीमसेन के पीछे सात्‍यकि आदि महारथी तथा पाचाल, केकय, मत्‍स्‍य और विशेषत: पाण्‍डव योद्धाभी आ रहे हैं। क्रोध में भरे हुए भीमसेन से प्रेरित हो वे शूरवीर, बलवान पराक्रमी महारथी सैनिक हमारे सैनिकों को मारते आ रहे हैं। वे कुरूक्षेष्‍ठ पाण्‍डव भीमसेन की रक्षा के लिये द्रोणाचार्य को सब ओर से उसी प्रकार घेर रहे हैं, जैसे बादल सूर्य को ढक लेते हैं। राजन ! पाण्‍डवों के सहायक बन्‍धु श्रीकृष्‍ण हैं । वे उन्‍हें युद्ध विषयक कर्तव्‍य का निर्देश किया करते हैं। वे लज्‍जाशील, शत्रुओं को मारने की कला में निपुण तथा पवित्र लक्षणों से युक्‍त हैं । रणभूमि में बहुत से भूपाल उनके वशमें आ चुके हैं । अत: भगवान नारायण जिनके अगुआ हैं, उन पाण्‍डवों की तुम अवहेलना न करो। ये सब एक रास्‍तेपर चल रहे हैं । यदि व्रत और नियम का पालन करनेवाले द्रोणाचार्य की रक्षा न की गयी तो ये उन्‍हें उसी प्रकार पीड़ा देगे, जैसे मरने की इच्‍छावाले पतग दीपक को बुझा देने की चेष्‍टा करते हैं। इसमे संदेह नही कि वे पाण्‍डव योद्धा अस्‍त्रविद्या में निपुण तथा द्रोणाचार्य की गति को रोकने में समर्थ हैं । मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस समय भरदाजनन्‍दन द्रोणाचार्य पर बहुत बड़ा भार आ पहॅुचा है। अत: हमलोग शीघ्र वही चलें, जहां द्रोणाचार्य खड़े हैं । कही ऐसा न हो कि कुछ भेडि़ये (जैसे पाण्‍डव सैनिक) महान् गजराज जैसे व्रतधारी द्रोणाचार्य का वध कर डाले।

संजय कहते है – महाराज ! राधानन्‍दन कर्ण की बात सुनकर राजा दुर्योधन अपने भाइयों के साथ द्रोणाचार्य के रथ की ओर चल दिया। वहां अनेक प्रकार के रंगवाले उत्‍तम घोड़े से जुते हुए रथों द्वारा एकमात्र द्रोणाचार्य को मार डालने की इच्‍छा से लौटे हुए पाण्‍डव सैनिकों का महान् कोलाहल प्रकट हो रहा था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में द्रोणाचार्य का युद्धविषयक बाईसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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