महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 20-42

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त्रयोविंश (23) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 20-42 का हिन्दी अनुवाद

पाचालों के जो बारह हजार महारथी युद्ध में लड़ रहे थे, उनमे से छ: हजार इस समय शिखण्‍डी के पीछे चलते थे। आर्य ! पुरूषसिंह शिशुपालके पुत्र को सांरग के समान चितकबरे अश्‍व खेल करते हुए से वहन कर रहे थे। चेदिदेश का श्रेष्‍ठ राजा अत्‍यन्‍त बलवान दुर्जय वीर धृष्‍टकेतु काम्‍बोजदेशीय चितकबरे घोड़ों द्वारा युद्धभूमि की ओर लौट रहा था। केकय देश के सुकुमार राजकुमार बृहत्‍क्षत्रको पुआल के धूऍ के समान उज्‍जवलनील वर्णवाले सिन्‍धुदेशीय अच्‍छी जाति के घोड़ों ने शीघ्रतापूर्वक रणभूमि मे पहॅुचाया। शिखण्‍डी के शूरवीर पुत्र ऋक्षदेव को पेझ के समान वर्ण और निर्मल नेत्रवाले बाह्रिक देश के सजे सजाये घोड़ों ने रणभूमि में पहॅुचाया। सोने के आभूषणों तथा कवचों से सुशोभित रेशम के समान श्‍वेतपीत रोमवाले सहनशील घोड़ों ने शत्रुओं का दमन करनेवाले सेनाबिन्‍दु को युद्धभूमि में पहॅुचाया। क्रौच वर्ण के उत्‍तम घोड़ों ने काशिराज अभिभू के सुकुमार एवं युवा पुत्र को, जो महारथी वीर था, युद्धभूमि में पहॅुचाया। राजन ! मनके समान वेगशाली तथा काली गर्दनवाले श्‍वेतवर्ण के घोड़े, जो सारथि की आज्ञा माननेवाले थे, राजकुमार प्रतिविन्‍ध्‍य को रण में ले गये। कुन्‍तीकुमार भीमसेन ने जिस सौम्‍यरूप वाले पुत्र सुतसोम को जन्‍म दिया था, उसे उड़द के फूल की भॉति सफेद और पीले रंगवाले घोड़ों ने रणक्षेत्र में पहॅुचाया। कौरवों के उदयेन्‍दु नामक पुर (इन्‍द्रप्रस्‍थ) में सोमाभिषव (सोमरस निकालने) के दिन सहस्‍त्रों चन्‍द्रमाओं के समान कान्तिमान् वह बालक उत्‍पन्‍न हुआ था, इसलिये उनका नाम सुमसोम रक्‍खा गया था। नकुल के स्‍पृहणीय पुत्र शतानीक को शालपुष्‍प के समान रक्‍त-पीत वर्णवाले और बालसूर्य के समान कान्तिमान्‍ अश्‍व रणभूमि में ले गये। मोर की गर्दन के समान नीले रंगवाले सुनहरी रस्सियों आबद्ध हो द्रौपदीपुत्र सहदेव कुमार पुरूषसिंह श्रुतकर्मा को युद्धभूमि में पहॅुचाया। इसी प्रकार युद्ध में अर्जुन की समानता करनेवाले, शास्‍त्रज्ञान के भण्‍डार द्रौपदीनन्‍दन अर्जुनकुमार श्रुतकीर्तिको नीलकण्‍ड की पॉख के समान रंगवाले उत्‍तम घोड़े रणक्षेत्र में ले गये।

जिसे युद्ध में श्रीकृष्‍ण और अर्जुन से डयोढ़ा बताया गया हैं, उस सुभद्रा कुमार अभिमन्‍यु को रणक्षेत्र में कपिल वर्णवाले घोड़े ले गये। आपके पुत्रों में से जो एक युयुत्‍सु पाण्‍डवों की शरण में जा चुके हैं, उन्‍हें पुआल के डंठल के समान रंगवाले, विशालकाय एवं वृहद् अश्‍वों ने युद्धभूमि में पहॅुचाया। उस भयंकर युद्ध में काले रंग के सजे-सजाये घोड़ों ने वृद्धक्षेम के वेगशाली पुत्र को युद्धभूमि में पहॅुचाया। सुचित के पुत्र कुमार सत्‍यधृति को सुवर्णमय विचित्र कवचों से सुज्जित और काले रंग के पैरोंवाले, सारथि की इक्ष्‍छा के अनुसार चलनेवाले उत्‍तम घोड़ों ने युद्धक्षेत्र में उपस्थित किया। सुनहरी पीठ से युक्‍त, रेशम के समान रोमवाले, सुवर्णमालाधारी तथा सहनशक्ति से सम्‍पन्‍न घोड़ों ने श्रेणिमान् को युद्ध में पहॅुचाया। सुवर्णमाला धारण करनेवाले शूरवीर और सुवर्ण रंग के पृष्‍ठभागवाले सजे-सजाये घोड़े स्‍पृहणीय नरश्रेष्‍ठ काशिराज को रणभूमि में ले गये। अस्‍त्रों के ज्ञान में, धनुर्वेद में तथा ब्राह्रावेद में भी पारगत पूवोक्‍त सत्‍यधृति को अरूणवर्ण के अश्‍वों ने युद्धक्षेत्र में उपस्थित किया। जो पाचालों के सेनापति हैं, जिन्‍होने द्रोणाचार्य को अपना भाग निश्चित कर रक्‍खा था, उन धृष्‍टधुम्न को कबूतर के समान रंगवाले घोड़ों ने युद्धभूमि में पहॅुचाया। उनके पीछे सुचित के पुत्र युद्धदुर्मद सत्‍यधृति, श्रेणिमान्, वसुदान और काशिराज के पुत्र अभिभू चल रहे थे। ये सबके सब यम और कुबेर के समान पराक्रमी योद्धा वेगशाली, सुवर्णमालाओं से अलंकृत एवं सुशिक्षित, उत्‍तम काबुली घोड़ों द्वारा शत्रुओं को भयभीत करते हुए धृष्‍टधुम्न का अनुसरण कर रहे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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