महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 27 श्लोक 21-31
सप्तविंश (27) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्तकवध पर्व )
सैकड़ों भुजाऍ बाण, प्रत्यचा और धनुष सहित कट गयीं । ध्वज, घोड़े, सारथि और रथी सभी धराशायी हो गये। वृक्ष, पर्वत शिखर और मेघों के समान विशाल एवं ऊँचे शरीरवाले, सजे सजाये हाथी, जिनके सवार पहले ही मार दिये गये थे, अर्जुन के बाणो से आहत होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। उस रणक्षेत्र में बहुत से हाथी अर्जुन के बाणों से मथित होकर सवारो सहित प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़े । उस समय उनके झूल चिथड़े-चिथड़े होकर दूर जा पड़े और उनके आभूषणों के भी टुकड़े-टुकड़े हो गये थे। किरीटधारी अर्जुन् के भल्ल नामक बाणों से ऋटि, प्रास, खग, नखर, मुद्रर और फरसों सहित वीरों की भुजाऍ कट कर गिर गयी। आर्य ! योद्धाओं के मस्तक, जो बालसूर्य, कमल और चन्द्रमा के समान सुन्दर थे, अर्जुन के बाणों से छिन्न-भिन्न हो पृथ्वी पर गिर पड़े। जब क्रोध मे भरे हुए अर्जुन नाना प्रकार के प्राणनाशक बाणों द्वारा शत्रुओं का नाश करने लगे, उस समय आभूषणी से विभूषित हुई संशप्तकों की सारी सेना जलने लगी। जैसे हाथी कमलों से भरे हुए सरोवर को मथ डालता है, उसी प्रकार अर्जुन को सारी सेना का विनाश करते देख सब प्राणी साधु-साधु कहकर अर्जुन की प्रशंसा करने लगे। इन्द्र के समान अर्जुनका वह पराक्रम देख भगवान श्रीकृष्ण अत्यन्त आश्चर्य में पड़कर हाथ जोड़े हुए बोले। पार्थ ! मेरा विश्वास है कि आज समरभूमि में तुमने जो कार्य किया है, यह इन्द्र, यम और कुबेर के लिये भी दुष्कर है। इस संग्राम में मैने सैकड़ों और हजारो संशप्तक महारथियों को एक साथ गिरते देखा है। इस प्रकार वहां खड़े हुए संशप्तक योद्धाओं में से अधिकांश का वध करके अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- अब भगदत्त के पास चलिये।
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