महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 93 श्लोक 22-40
त्रिनवतितम (93) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
उन बाणों ने उन दोनों महाधनुर्धरों को तथा उनके छोड़े हुए सायकों को भी छिन्न –भिन्न कर दिया । अर्जुन के बाणों से टुकड़े-टुकड़े होकर उन शत्रुओं के बाण आकाश में विचरने लगे। अपने बाणों के वेग से शत्रुओं के बाणों को नष्ट करके पाण्डु-कुमार अर्जुन ने जहां-तहां अन्य महारथियों से युद्ध करने के लिये प्रस्थान किया।अर्जुन के उन बाण-समूहों से श्रुतायु और अच्युतायु के मस्तक कट गये। भुजाएं छिन्न –भिन्न हो गयीं। वे दोनों आंधी के उखाड़े हुए वृक्षों के समान ध्राशायी हो गयी। श्रुतायु और अच्युतायुका वह वध समुद्रशोषण के समान सब लोगों को आश्रय में डालनेवाला था। उन दोनों के पीछे आनेवाले पचास रथियों को मारकर अर्जुन ने श्रेष्ठ-श्रेष्ठ वीरों को चुन-चुनकर मारते हुए पुन: कौरव सेना में प्रवेश किया। भारत। श्रुतायु तथा अच्युतायु को मारा गया देख उन दोनों के पुत्र नरश्रेष्ठ नियुतायु और दीर्घायु पिता के वध से दुखी हो अत्यन्त क्रोध में भरकर नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करते हुए कुन्तीकुमार अर्जुन का सामना करने के लिये आये । तब अर्जुन ने अत्यन्त कुपित हो झुकी हुई गांठ वाले बाणों द्वारा दो ही घड़ी में उन दोनों को यमराज के घर भेज दिया। जैसे हाथी कमलों से भरे हुए सरोवर को मथ डालता हो, उसी प्रकार आपकी सेनाओं का मन्थन करते हुए पार्थ को आपके क्षत्रियशिरोमणि योद्धा रोक न सके। राजन् । इसी समय युद्ध विषयक शिक्षा पाये हुए अगड़ देश के सहस्त्रों गजारोही योद्धाओं ने क्रोध में भरकर हाथियों के समूह द्वारा पाण्डुकुमार अर्जुन को सब ओर से घेर लिया। फिर दुर्योधन की आज्ञा पाकर पूर्व और दक्षिण देशों के कलिंग आदि नरेशों ने भी अर्जुन पर पर्वताकार हाथियों द्वारा घेरा डाल दिया। तब उग्ररुपधारी अर्जुन ने गाण्डीव धनुष से छोड़े हुए बाणों द्वारा उन सारे आक्रमणकारियों के मस्तकों तथा उत्तम भूषण भुषित भुजाओं को भी शीघ्र ही काट डाला। उस समय उन मस्तकों और भुजबंद सहित भुजाओं से आच्छादित हुई वहां की भूमि सर्पों से घिरी हुई स्वर्ण प्रस्तरयुक्त भूमि के समान शोभा पा रही थी। बाणों से छिन्न भिन्न हुई भुजाएं और कटे हुए मस्तक इस प्रकार गिरते दिखायी दे रहे थे, मानो वृक्षों से पक्षी गिर रहे हों। सहस्त्रों बाणों से बिंधकर खून की धारा बहाते हुए हाथी वर्षा काल में गेरुमिश्रित जल के झरने बहाने वाले पर्वतों के समान दिखायी देते थी। अर्जुन के तीखे बाणों से मारे जाकर दूसरे-दूसरे म्लेच्छ– सैनिक हाथी की पीठ पर ही लेट गये थे। उनकी नाना प्रकार की आकृति बड़ी विकृत दिखायी देती थी। राजन्। नाना प्रकार के वेश धारण करने वाले तथा अनेक प्रकार के अस्त्र–शस्त्रों सम्पन्न योद्धा अर्जुन के विचित्र बाणों से मारे जाकर अभ्दुत शोभा पा रहे थे। उनके सारे अड़ग खून से लथपथ हो रहे थे। सवारों और अनुचरों सहित सहस्त्रों हाथी अर्जुन के बाणों से आहत हो मुंह से रक्त वमन करते थे। उनकें सम्पूर्ण अड़ग छिन्न –भिन्न हो रहे थे। बहुत –से हाथी चिग्घाड़ रहे थे, बहुतेरे धराशायी हो गये थे, दूसरे कितने ही हाथी सम्पूर्ण दिशाओं में चक्कर काट रहे थे और बहुत से गज अत्यनत भयभीत हो भागते हुए अपने ही पक्ष के योद्धाओं को कुचल रहे थे। तीक्ष्ण विषवाले सर्पो के समान भंयकर वे सभी गुप्तास्त्रधारी सैनिकों से युक्त थे।
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