महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 94 श्लोक 37-57
चतुर्नवतितम (94) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
इस कवच के रहते हुए श्री कृष्ण, अर्जुन तथा दूसरे कोई शस्त्रधारी योद्धा भी तुम्हें बाणों द्वारा चोट पहुंचाने में समर्थ न हो सकेंगे। अत: तुम यह कवच धारण करके शीघ्रतापूर्वक रणक्षैत्र में कुपित हुए अर्जुन का सामना करने के लिये स्वयं ही जाओ । वे तुम्हारा वेग नहीं सह सकेंगे।
संजय कहते हैं- राजन्। ऐसा कहकर वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य ने अपनी विद्या के प्रभाव से सब लोगों को आश्रवर्य में डालने की इच्छा रखते हुए तुरंत आचमन करके उस महायुद्ध में आप के पुत्र दुर्योधन की विजय के लिये उसके शरीर में विधिपूर्वक् मन्त्रजप के साथ-साथ वह अत्यन्त तेजस्वी अभ्दुत कवच बांध दिया।
द्रोणाचार्य बोले – भरतनन्दन। परव्रहा परमात्मा तुम्हारा कल्याण करें। ब्रहाजी तथा ब्राहाण तुम्हारा मगड़ल करें। जो श्रेष्ठ सर्प हैं, उन से भी तुम्हारा कल्याण हो। नहुष पुत्र ययाति, धुन्धुमार और भगीरथ आदि सभी राजर्षि सदा तुम्हारी भलाई करें। इस महायुद्ध में एक पैरवाले, अनेक पैरवाले तथा पैरों से रहित प्राणियों से तुम्हारा नित्य मगड़ल हो। निष्पाप नरेश। स्वाहा, स्वधा और राची आदि देवियां तुम्हारा सदा कल्याण करें। लक्ष्मी और अरुन्धती भी तुम्हारा मगड़ल करें। नरेश्वर । असित, देवल, विश्वामित्र, अगडि़रा, वसिष्ठ तथा कश्यप तुम्हारा भला करें। धाता, विधाता, लोकनाथ ब्रहा, दिशाएं, दिक्पाल तथा षडानन कार्तिकेय भी आज तुम्हें कल्याण प्रदान करें। भगवान सूर्य सब प्रकार से तुम्हारा मगड़ल करें। चारों दिग्गज, पृथ्वी, आकाश और ग्रह तुम्हारा भला करें। राजन् । जो सदा इस पृथ्वी के नीचे रहकर इसे अपने मस्तक पर धारण करते हैं, वे पन्नग श्रेष्ठ भगवान शेषनाग तुम्हें कल्याण प्रदान करें। गान्धारीनन्दन । प्राचीन काल की बात है, त्रृत्रासुर ने युद्ध में पराक्रम पूर्वक् सहस्त्रों श्रेष्ठ देवताओं के शरीर को विदीर्ण करके उन्हें परास्त कर दिया था। उस समय तेज और बल से हीन हुए इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवता महान् असुर वृत्र से भयभीत हो ब्रहाजी की शरण में गयो।
देवता बोले-देवप्रवर। सुरश्रेष्ठ । वृत्रासुर ने जिन्हें सब प्रकार से कुचल दिया है, उन देवताओं के लिये आप आश्रय दाता हों। महान् भय से हमारी रक्षा करें। तब अपने पास खडे़ हुए भगवान विष्णु तथा विषाद में भरे हुए इन्द्र आदि श्रेष्ठ देवताओं से ब्रहाजी ने यह यथार्थ बात कही-। ‘देवताओं । इन्द्र आदि देवता और ब्राहाण सदा ही मेरे रक्षणीय हैं। परंतु वृत्रासुर का जिससे निर्माण हुआ है, वह त्वष्टा प्रजापतिका अत्यन्त दुर्धर्घ तेज है। ‘देवगण। प्राचीन काल में त्वष्टा प्रजापति ने दस लाख वर्षों तक तपस्या करके भगवान शड़कर से वरदान पाकर वृत्रासुर- को उत्पन्न किया था। ‘वह बलवान् शत्रु भगवान शड़कर के ही प्रसाद से निश्चय ही तुम सब लोगों को मार सकता है। अत: भगवान शड़कर के निवास स्थान गये बिना उनका दर्शन नहीं हो सकता। ‘उनका दर्शन पाकर तुम लोग वृत्रा सुर को जीत सकोगे। अत: शीघ्र ही मन्दराचल को चलो, जहां तपस्या के उत्पति स्थान, दक्षयज्ञ विनाशक तथा भगदेवता के नेत्रों का नाश करने वाले सर्वभुतेश्रवर पिनाक धारी भगवान शिव विराजमान है, ‘तब एकत्र हुए उन सब देवताओं ने ब्रहाजी के साथ मन्दरा चल पर जाकर करोड़ों सूर्यों के समान कान्तिमान् तेजोराशि भगवान शिवका दर्शन किया। उस समय भगवान शिव ने कहा-‘देवताओं। तुम्हारा स्वागत है। बोलो, मैं तुम्हारे लिये क्या करुं मेरा दर्शन अमोघ है। अत: तुम्हें अपने अभीष्ट मनोरथों की प्राप्ति हो’।
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