महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 95 श्लोक 40-52
पञ्चनवतितम (95) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
अमर्षशील शूरवीर दु:शासन ने अपनी भागती हुई सेना को पुन: स्थिरता पूर्वक स्थापित करके कुपित हो युद्ध स्थल में रथियों में श्रेष्ठ सात्य कि पर आक्रमण किया। अपनी सेना तथा चार सौ महाधनुर्धरों के साथ कवच धारण करके सुसज्जित हो मैंने चेकितान को रोका। सेना सहित शकुनि ने माद्री पुत्र नकुल का प्रतिरोध किया। उसके साथ हाथों में धनुष, शक्ति और तलवार लिये सात सौ गान्धार-देशीय योद्धा मौजूद थे। अवन्ती के राजकुमार बिन्द और अनुविन्द ने मत्स्य नरेश विराट पर आक्रमण किया। उन दोनों महाधनुर्धर वीरों ने प्राणों का मोह छोड़कर अपने मित्र दुर्योधन के लिये हथियार उठाया था। किसी से परास्त न होने वाले पराक्रमी यज्ञसेन कुमार शिखण्डी को, जो राह रोक कर खड़ा था, बाहीक ने पूर्ण प्रयत्नशील होकर रोका। अवन्तीके एक –दूसरे वीर ने क्रूर स्वभाव वाले प्रभद्रकों और सौवीरदेशीय सैनिकों के साथ आकर क्रोध में भरे हुए पाच्चाल राजकुमार धृष्टद्युम्न को रोका। क्रोध में भरकर युद्ध के लिये आते हुए क्रुरकर्मा तथा शूरवीर राक्षस घटोत्कच पर अलायुध ने शीघ्रता पूर्वक आक्रमण किया। पाण्डवपक्ष के महारथी राजा कुन्तिभोज ने विशाल सेना के साथ आकर कुपित हुए कौरव पक्षीय राक्षस राज अलम्बुष का सामना किया। मरतनन्दन । उस समय सिंधुराज जयद्रथ सारी सेना के पीछे महाधनुर्धर कृपाचार्य आदि रथियों से सुरक्षित था। राजन्। जयद्रथ के दो महान् चक्र रक्षक थे। उसके दाहिने चक्र की अश्वत्थामा और बायें चक्र की रक्षा सूत पुत्र कर्ण कर रहा था। भूरिश्रवा आदि वीर उसके पृष्टभाग की रक्षा करते थे। कृप,वृषसेन, शल और दुर्जय वीर शल्य –ये सभी नीतिश, महान् धनुर्धर एवं युद्धकुशल थे और इस प्रकार सिंधुराज की रक्षाका प्रबन्ध करके वहां युद्ध कर रहे थे।
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