महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 103 श्लोक 1-20

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त्रयधिकशततम (103) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: त्रयधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध और रक्तमयी रणनदी का वर्णन

संजय कहते है- महाराज ! दोपहर होते-होते भीष्म का सोमकों के साथ लोकविनाशक भयंकर संग्राम होने लगा। रथियों में श्रेष्ठ गंगनन्दन भीष्म ने सैकड़ों और हजारों तीखे बाणों की वर्षा करके पाण्डवों की विशाल सेना को नष्ट करना आरम्भ किया। राजन् ! जैसे बैलों के समुदाय कटे हुए धान के बोझों का मर्दन करते है, उसी प्रकार आपके ताऊ देवव्रत ने उस सेना को रौंद डाला। तब धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, विराट और दु्रपद ने समरभूमि में महारथी भीष्म के पास पहुँचकर उन्हें बाणों से घायल करना आरम्भ किया। भारत ! तदनन्तर भीष्म ने विराट और धृष्टद्युम्न को तीन बाणों से घायल करके दु्रपद पर नाराच का प्रहार किया। राजन् ! शत्रुसूदन भीष्म के द्वारा घायल हुए वे महा धनुर्धर वीर पैरों से कुचले हुए सर्पों की भाँति समरांगण में अत्यन्त कुपित हो उठे। शिखण्डी ने भरतवंशियों के पितामह भीष्म को बींध डाला; परंतु मन ही मन उसे स्त्री रूप मानकर अपनी मर्यादा से च्युत न होने वाले भीष्म ने उस पर प्रहार नहीं किया। धृष्टद्युम्न रणक्षेत्र में क्रोध से अग्नि की भाँति जल उठे। उन्होंने तीन बाणों से पितामह भीष्म को उनकी छाती और भुजाओं में चोट पहुँचायी। दु्रपद ने पचीस, विराट ने दस और शिखण्डी ने पचीस सायकों द्वारा भीष्म को घायल कर दिया। महाराज ! उनके सायकों से अत्यन्त घायल होने के कारण वे रक्त प्रवाह से नहा उठे और वसन्त ऋतु में पुष्पों से भरे हुए रक्तशोक की भाँति शोभा पाने लगे।
आर्य ! उस समय गंगनन्दन भीष्म ने उन सबको तीन तीन सीधे जाने वाले बाणों से घायल कर दिया और एक भल्ल के द्वारा दु्रपद का धनुष काट दिया। तब उन्होंने दूसरा धनुष हाथ में लेकर युद्ध के मुहाने पर पाँच तीखे बाणों द्वारा भीष्म को और तीन बाणों से उनके सारथियों को भी घायल कर दिया। महाराज ! भीम, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, पाँचों भाई केकयराजकुमार, सात्वतवंशी सात्यकि, युधिष्ठिर आदि पाण्डव सैनिक तथा धृष्टद्युंम आदि पान्चाल सैनिक द्रुपद की रक्षा के लिए गंगनन्दन भीष्म पर टूट पडे। तब वहाँ उन सबके पैदल, घुड़सवार, रथी और हाथी सवारों में अत्यन्त भयंकर घमासान युद्ध होने लगा, जो यमराज के राष्ट्र की वृद्धि करने वाला था। रथी ने रथी का सामना करके उसे यमलोक पहुँचा दिया। पैदल, हाथीसवार और घुड़सवारों ने भी एक दूसरे से भिड़कर ऐसा ही किया। प्रजानाथ ! उस युद्धस्थल में जहाँ तहाँ सब योद्धा झुकी हुई गाँठ वाले नाना प्रकार के भयंकर बाणों द्वारा अपने विपक्षियों को परलोक के अतिथि बनाने लगे। कितने ही रथ रथियों और सारथियों से शून्य हो भागते हुए घोड़ों के साथ सम्पूर्ण दिशाओं में चक्कर काट रहे थे। राजन्। वे रथ उस रणक्षेत्र में आपके बहुत से पैदल मनुष्यों तथा घोड़ों को कुचलते हुए हवा के समान तीव्र गति से भाग रहे थे और गन्धर्वनगर के समान दृष्टिगोचर हो रहे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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