महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 106 श्लोक 59-75

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षडधिकशततम (105) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षडधिकशततम अध्याय: श्लोक 59-75 का हिन्दी अनुवाद

भगवान श्रीकृष्ण उस महायुद्ध मे आपके पुत्रों और सैनिकों की चेतना को मानो अपना ग्रास बनाये ले रहे थे। महाराज ! उस मारकाट में माधव को समीप आकर भीष्म के वध के लिये उद्यत हुआ देख उस समय उन वासुदेव के भय से चारो और यह महान कोलाहल सुनायी देने लगा कि भीष्म मारे गये, भीष्म मारे गये। रेशमी पीताम्बर धारण किये इन्द्रनीलमणि के समान श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण भीष्म की और दौड़ते समय ऐसी शोभा पा रहे थे, मानो विद्युन्माला से अलंकृत श्याममेघ जा रहा है। यादव शिरोमणि बार बार गर्जना करते हुए भीष्म के ऊपर उसी प्रकार वेग से धावा कर रहे थे, जैसे सिंह गजराज पर और गोयूथ का स्वामी साँड़ पर आक्रमण करता है। उस महासमर में कमलनयन श्रीकृष्ण को आते देख भीष्म उस रणक्षेत्र में तनिक भी भयभीत न होकर अपने विशाल धनुष को खींचने लगे। साथ ही व्यग्रताशून्य मन से भगवान् गोविन्द को सम्बोधित करके बोले- आइये, आइये, कमलनयन ! देवदेव ! आपको नमस्कार है। सात्वतशिरोमणि ! इस महासमर में आज मुझे मार गिराइये। देव ! निष्पाप श्रीकृष्ण ! आपके द्वारा संग्राम में मारे जाने पर भी संसार में सब ओर मेरा परम कल्याण ही होगा। गोविन्द ! आज इस युद्ध में मैं तीनों लोकों द्वारा सम्मानित हो गया। अनघ ! मैं आपका दास हूँ। आप अपनी इच्छा के अनुसार मुझ पर प्रहार कीजिये। इधर महाबाहु अर्जुन श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे दौड रहे थे। उन्होंने अपनी दोनों भुजाओं से उन्हें पकड़कर काबू में कर लिया। अर्जुन के द्वारा पकड़े जाने पर भी कमलनयन पुरूषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण उन्हें लिये दिये ही वेगपूर्वक आगे बढ़ने लगे। तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले अर्जुन ने बलपूर्वक भगवान के चरणों को पकड लिया और इस प्रकार दसवें कदम तक जाते जाते वे किसी प्रकार हपीकेश को रोकने में सफल हो सके। उस समय श्रीकृष्ण के नेत्र क्रोध से व्याप्त हो रहे थे और वे फुफकारते हुए सर्प के समान लम्बी साँस खींच रहे थे।
उनके सखा अर्जुन आर्तभाव से प्रेमपूर्वक बोले- महाबाहों ! लौटिये, अपनी प्रतिज्ञा को झूठी न कीजिये। केशव ! आपने पहले जो यह कहा था कि मैं युद्ध नहीं करूँगा उस वचन की रक्षा कीजिये।। अन्यथा माधव! लोग आपको मिथ्यावादी कहेंगे। केशव ! यह सारा भार मुझे पर है। मैं अपने अस्त्र शस्त्र, सत्य और सुकृत की शपथ खाकर कहता हूँ कि पितामह भीष्म का वध करूँगा। शत्रुसूदन ! मैं सब शत्रुओं का अन्त कर डालूगा। देखिये, आज ही मैं पूर्ण चन्द्रमा के समान दुर्जय वीर महारथी भीष्म को उनके अन्तिम समय मे इच्छानुसार मार गिराता हूं। म्हामना अर्जुन का यह वचन सुनकर उनके पराक्रम को जामते हुए भगवान् श्रीकृष्ण मन ही मन अत्यन्त प्रसन्न हुए और ऊपर से कुछ भी न बोलकर पुनः क्रोधपूर्वक ही रथ पर जा बैठे। पुरूषसिंह श्रीकृष्ण और अर्जुन को रथ पर बैठे देख शान्तनुनन्दन भीष्म ने पुनः उन पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी, मानो मेघ दो पर्वतों पर जल की धारा गिरा रहा हो। राजन् ! आपके ताऊ देवव्रत उसी प्रकार पाण्डव योद्धाओं के प्राण लेने लगे, जैसे ग्रीष्म ऋतु में सूर्य अपनी किरणों द्वारा सबके तेज हर लेते है। महाराज ! जैसे पाण्डवों ने युद्ध में कौरव सेनाओं को खदेड़ा था, उसी प्रकार आपके ताऊ भीष्म ने भी पाण्डव सेनाओं को मार भगाया। घायल होकर भागे हुए सैनिक उत्साहशून्य और अचेत हो रहे थे। वे रणक्षेत्र में अनुपम वीर भीष्म जी की ओर आँख उठाकर देख भी नहीं सके, ठीक उसी तरह, जैसे दोपहर में अपने तेज से तपते हुए सूर्य की ओर कोई भी देख नहीं पाता। महाराज ! भीष्म के द्वारा मारे जाते हुए सैकड़ों और हजारों पाण्डव सैनिक समर में अलौकिक पराक्रम प्रकट करने वाले भीष्म को भय से पीडि़त होकर देख रहे थे। भारत ! भागती हुई पाण्डव सेनाएँ कीचड़ में फँसी हुई गायों की भाँति किसी को अपना रक्षक नहीं पाती थीं। समर भूमि में बलवान् भीष्म ने उन दुर्बल सैनिकों को चीटियों की भाँति मसल डाला। भारत ! महारथी भीष्म अविचलभाव से खड़े होकर बाणों की वर्षा करते और पाण्डव पक्षीय नरेशों को संताप देते थे। बाणरूपी किरणावलियों से सुशोभित और सूर्य की भाँति तपते हुए भीष्म की ओर वे देख भी नहीं पाते थे। भीष्म पाण्डव सेना को जब इस प्रकार रौंद रहे थे, उसी समय सहस्त्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य अस्ताचल को चले गये। उस समय परिश्रम से थकी हुई समस्त सेनाओं के मन में यही इच्छा हो रही थी कि अब युद्ध बंद हो जाये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व नवें दिन के युद्ध की समाप्तिविषयक एक सौ छठा अध्याय पूरा हुआ।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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