महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 112 श्लोक 21-42
द्वादशाधिकशततम (112) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
युधिष्ठिर का क्रोध करना, भीष्म और अर्जुन का संघर्ष होना और मेरा अपने विविध अस्त्रो के प्रयोग के लिये उद्योग करना-ये तीनों बातें निश्चय ही प्रजाजनों के अमंगल की सूचना देने वाली हैं। पाण्डुनन्दन अर्जुन मनस्वी, बलवान, शूरवीर, अस्त्र-विधा के पण्डित, शीघ्रतापूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाले, दूर तक का लक्ष्य बेधने वाले, सुदृढ़ बाणों का संग्रह रखने वाले तथा शुभाशुभ निमित्तो के ज्ञाता हैं। इन्द्रसहित सम्पूर्ण देवता भी उन्हे युद्ध में पराजित नहीं कर सकते। वे बलवान, बुद्धिमान, क्लेशों पर विजय पाने वाले और योद्धाओं में श्रेष्ठ हैं।
उन्हें युद्ध में सदा विजय प्राप्त होती है। पाण्डुनन्दन अर्जुन के अस्त्र बड़े भयंकर हैं। उत्तम व्रत का पालन करने वाले पुत्र ! इसलिये तुम उनका रास्ता छोड़कर शीघ्र भीष्म जी की रक्षा के लिये चले जाओ। देखों, इस महाघोर संग्राम में आज यह कैसा महान जन संहार हो रहा है? शूरवीरों के स्वर्णजटित, शुभ एवं महान् कवच अर्जुन के झुकी हुई गाँठवाले बाणों द्वारा विदीर्ण किये जा रहे है। ध्वज के अग्रभाग, तोमर और धनुषों के टुकडे टुकड़े किये जा रहे है। चमकीले प्रास, सुवर्णजटित होने के कारण सुनहरी कान्ति से प्रकाशित होने वाली तीखी शक्तियों और हाथियों पर फहराती हुई वैजयन्ती पताकाएँ क्रोध में भरे हुए किरीटधारी अर्जुन के द्वारा छिन्न भिन्न की जा रही है। बेटा ! आश्रित रहकर जीविका चलाने वाले पुरूषों के लिये यह अपने प्राणों की रक्षा का अवसर नहीं है। तुम स्वर्ग को सामने रखकर यश और विजय की प्राप्ति के लिये भीष्मजी के पास जाओ। यह युद्ध एक महाघोर और अत्यन्त दुर्गम नदी के समान है। उसमें रथ, हाथी और घोडे भँवर है, कपिध्वज अर्जुन रथरूपी नौका के द्वारा इसे पार कर रहे है। यहाँ केवल कुन्तीकुमार युधिष्ठिर में ही ब्राहमणों के प्रति भक्ति, इन्द्रियसंयम, दान, तप और श्रेष्ठ सदाचार आदि सद्गुण दिखायी देते है, जिनके फलस्वरूप उन्हें अर्जुन, बलवान भीम तथा माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल और सहदेव जैसे भाई मिले हैं एवं वृष्णिनन्दन भगवान वासुदेव उनके रक्षक और सहायक बनकर सदा साथ रहते है।
इस दुर्बुद्धि दुर्योधन का शरीर उन्हीं की तपस्या से दग्ध प्राय हो गया है और इसकी भारती सेना को उन्हीें की क्रोधाग्नि जलाकर भस्य किये देती है। देखो भगवान वासुदेव की शरण में रहने वाले ये अर्जुन कौरवों की सम्पूर्ण सेनाओं को सब ओर से विदीर्ण करते हुए इधर ही आते दिखायी देते है। जैसे तिमि नामक महामत्स्य उत्ताल तरंगों से युक्त महासागर के जल को मथ डालता है, उसी प्रकार किरीटधारी अर्जुन के द्वारा मथित हो यह कौरव सेना विक्षुब्ध होती दिखायी देती है। सेना के प्रमुख भाग में हाहाकार और किलकिलाहट के शब्द सुनायी देते है। तुम द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न का सामना करने के लिये जाओ और मैं युधिष्ठिर पर चढ़ाई करूँगा। अमित तेजस्वी राजा युधिष्ठिर व्यूह के भीतर प्रवेश करने के समान बहुत कठिन है; क्योंकि उनके चारो और अतिरथी योद्धा खड़े है। सात्यकि, अभिमन्यु, धृष्टद्युम्न, भीमसेन और नकुल, सहदेव नरेश्वर राजा युधिष्ठिर की रक्षा कर रहे है। यह देखो, भगवान विष्णु के समान श्याम और महान शाल वृक्ष के समान ऊँचा अभिमन्यु द्वितीय अर्जुन के समान सेना के आगे आगे चल रहा है।। तुम अपने उत्तम अस्त्रों को धारण करो और विशाल धनुष लेकर दु्रपदकुमार धृष्टद्युम्न तथा भीमसेन के साथ युद्ध करो।
अपना प्यारा पुत्र नित्य निरन्तर जीवित रहे, यह कौन नहीं चाहता है तथापि क्षत्रिय धर्म पर दृष्टि रखकर मैं तुम्हे इस कार्य में नियुक्त कर रहा हूँ। तात ! ये भीष्म रणक्षेत्र में यमराज और वरूण के समान पराक्रम दिखाते हुए पाण्डवों की विशाल सेना को अत्यन्त दग्ध कर रहे है। महाराज ! अपने पुत्र को इस प्रकार आदेश देकर प्रतापी द्रोणाचार्य इस महायुद्ध में धर्मराज के साथ युद्ध करने लगे।
« पीछे | आगे » |