महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 114 श्लोक 1-20
चतुर्दशाधिकशततम (114) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
कौरवपक्ष के महारथियों के साथ युद्ध में भीमसेन और अर्जुन का अद्भुत पुरूषार्थ
संजय कहते हैं- राजन! उस समय रणक्षेत्र में विजय के लिए प्रयत्न करने वाले महारथी शल्य को अर्जुन ने झुकी हुई गांठवाले बाणों की वर्षा करके ढक दिया। उसके बाद सुशर्मा और कृपाचार्य को भी तीन-तीन बाणों से बींध डाला। राजेन्द्र! फिर समरागण में प्राग्ज्योतिष नरेश भगदत, सिन्धुराज जयद्रथ, चित्रसेन, विकर्ण, कृतवर्मा, दुर्मर्षण तथा महारथी विन्द और अनुविन्द- इनमें से प्रत्येक को गीध की पांख से युक्त तीन-तीन बाणों द्वारा विशेष पीड़ा दी। तत्पश्चात् अतिरथी वीर अर्जुन ने युद्ध में आपकी सेना को बाण समूहों द्वारा अत्यन्त पीड़ित कर दिया। भारत! चित्रसेन के रथ पर बैठे हुए जयद्रथ ने रणक्षैत्र में कुन्तीकुमार अर्जुन को घायल करके भीमसेन को भी बहुत-से सायकों द्वारा वेगपूर्वक बींध डाला। महाराज ! फिर रथियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य तथा शल्य ने भी समरागण में मर्मस्थल को विदीर्ण करने वाले बाणों द्वारा अर्जुन को बारम्बाशर घायल किया। माननीय प्रजानाथ ! चित्रसेन आदि आपके पुत्रों ने भी युद्वस्थल में तुरंत ही पांच-पांच तीखे बाणों द्वारा अर्जुन और भीमसेन को घायल कर दिया। उस समय वहां रथियों में श्रेष्ठ भरतकुलभूषण कुन्ती कुमार भीमसेन और अर्जुन ने समरभूमि में त्रिगतों की विशाल सेना को पीड़ित कर दिया। इधर सुशर्मा ने भी रणक्षेत्र में नौ शीघ्रगामी बाणों द्वारा अर्जुन को घायल करके पाण्डवों की विशाल सेना को भयभीत करते हुए बड़े जोर से सिंहनाद किया। इसी प्रकार अन्य शूरवीर महारथियों ने भीमसेन और अर्जुन को सुवर्ण पंखयुक्त, सीधे जाने वाले पैने बाणों द्वारा बींध डाला। उन समस्त रथियों के बीच में खड़े होकर खेल-से करते हुए भरतभूषण उदार महारथी कुन्ती कुमार भीमसेन और अर्जुन विचित्र दिखायी देते थे। जैसे मांस की इच्छा रखने वाले दो मदोन्मत सिंह गौओं के झुंड में खड़े हुए हों, उसी प्रकार भीमसेन और अर्जुन उस रणभूमि में सुशोभित हो रहे थे।
उन दोनों वीरों ने रणक्षेत्र में सैकड़ों शूरवीर मनुष्यों के धनुष और बाणों को बार बार छिन्न-भिन्न करके उनके मस्तकों को भी काट गिराया। उस माहसमर में बहुत से रथ टूट गये, सैकड़ों घोड़े मारे गये तथा कितने ही हाथी और हाथी सवार धराशायी हो गये। राजन! बहुत से रथी और घु़ड़सवार जहां-तहां चारों ओर मारे जाकर कांपते और छटपटाते हुए दिखायी देते थे। वहां मरकर गिरे हुए हाथियों, पैदल सिपाहियों, घोड़ों तथा टूटे हुए बहुत-से रथों द्वारा पृथ्वी आच्छादित हो गयी थी। भारत! अनेक टुकड़ों में कटकर गिरे हुए छत्रों, ध्वजाओं, स्वर्णमय दण्ड से विभूषित चामरों, फेंके हुए अंकुशों, चाबुकों, घण्टों और झूलों से वहां की भूमि एक गयी थी। केयूर, अंगद, हार तथा मणिजटित कुण्डल आदि आभूषणों, रंकुमृग के कोमल चर्म, वीरों की पगड़ियों, ऋष्टि आदि अस्त्रों तथा चामर और व्यजन आदि से भी वहां की धरती आच्छादित हो गयी थी। जहां-तहां गिरी हुई राजाओं की चन्दनचर्चित भुजाओं और जांघों से वह रणभूमि पट गयी थी। महाराज! मैंने उस रणक्षेत्र में अर्जुन का अद्भुत पराक्रम यह देखा कि उन महाबली वीर ने शत्रुपक्ष के उन सब प्रमुख वीरों को बाणों द्वारा रोककर अनेकों वीरों को मार डाला था।
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