महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 115 श्लोक 1-22
पञ्चदशाधिकशततम (115) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण तथा कौरव-पाण्डव-सैनिकों का भीषण युद्ध
धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! दसवें दिन महापराक्रमी शान्तनुकुमार भीष्म ने पाण्डवों तथा सृंजयों के साथ किस प्रकार युद्ध किया तथा कौरवों ने पाण्डवों को युद्ध में किस प्रकार रोका ? रणक्षेत्र में शोभा पाने वाले भीष्म के उस महायुद्ध का वृत्तान्त मुझसे कहो। संजय ने कहा- भारत! कौरवों ने पाण्डवों के साथ जो युद्ध किया और जिस प्रकार वह युद्ध हुआ, वह सब इस समय बताता हूं। किरीटधारी अर्जुन ने प्रतिदिन अपने उत्तम अस्त्रों द्वारा क्रोध में भरे हुए आपके महारथियों को परलोक में पहुंचाया है। इसी प्रकार युद्ध विजयी कुरूकुलनन्दन भीष्म ने भी सदा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार युद्ध में कुन्तीपुत्रों के सैनिकों का संहार किया। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! एक ओर से कौरवों सहित भीष्म से युद्ध कर रहे थे और दूसरी ओर से पांचाल देशीय वीरों के सहित अर्जुन उनका सामना कर रहे थे, यह देखकर सबके मन में संशय हो गया कि किस पक्ष की विजय होगी। दसवें दिन भीष्म और अर्जुन के उस युद्ध में निरन्तर महाभयंकर जनसंहार होने लगा। राजन! उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता तथा शत्रुओं को संताप देने वाले शान्तनुनन्दन भीष्म ने उस युद्ध में कई अयुत योद्धाओं का संहार कर डाला। भूपाल! जिनके नाम और गोत्र प्रायः अज्ञातथे तथा जो सभी युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाते थे, वे शूरवीर वहां भीष्म के हाथों मारे गये। परंतप! इस प्रकार दस दिनों तक धर्मात्मा भीष्म पाण्डव सेना को संतप्त करके अन्ततोगत्वा अपने जीवन से ही ऊब गये। अब वे रणक्षेत्र में सम्मुख रहकर शीघ्र ही अपने वध की इच्छा करने लगे। महाराज! आपके ताऊ महाबाहु देवव्रत ने यह सोचकर कि अब मैं संग्राम में बहुसंख्यक श्रेष्ठ मानवों का वध न करूं, अपने निकटवर्ती पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर से इस प्रकार बोले-‘सम्पूर्ण शास्त्रों निपुण विद्वान, महाज्ञानी तात युधिष्ठिर! मैं तुम्हें धर्म के अनुकूल तथा स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाली एक बात बता रहा हूं, तुम मेरे उस वचन को सुनो। ‘तात भरतनन्दन! अब मैं इस देह से ऊब गया हूँ क्योंकि रणभूमि में बहुत से प्राणियों का वध करते हुए ही मेरा समय बीता है। ‘इसलिये यदि तुम मेरा प्रिय करना चाहतेहो तो अर्जुन तथा पांचालों और सृंजयों को आगे करके मेरे वध के लिए प्रयत्न करो।’ भीष्म के इस अभिप्राय को जानकर सत्यदर्शी पाण्डुनन्दन राजा युधिष्ठिर रणभूमि में सृंजय वीरों को साथ ले भीष्म की ओर आगे बढे। राजन! उस समय भीष्मजी का वह वचन सुनकर धृष्टद्युम्न और पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर ने अपनी सेना को आज्ञा दी- वीरों! आगे बढो। युद्ध करो और संग्राम में भीष्म पर विजय पाओ। तुम सब लोग शत्रुविजयी सत्यप्रितिज्ञ अर्जुन के द्वारा सुरक्षित हो। ‘ये महाधनुर्धर सेनापति धृष्टद्युम्न तथा भीमसेन भी समरागंण में निश्चय ही तुम सब लोगों की रक्षा करेंगे। ‘सृंजय वीरो! आज तुम युद्ध में भीष्मजी से तनिक भी भय न करो। हम शिखण्डी को आगे करके भीष्म पर अवश्य ही विजय पायेंगे। तब वे पाण्डव सैनिक दसवें दिन वैसा ही करने की प्रतिज्ञा करके ब्रह्मलोकको अपना लक्ष्य बनाकर क्रोध से मूर्छित हो शिखण्डी तथा पाण्डुपुत्र अर्जुन को आगे करके आगे बढे और भीष्म को मार गिराने का महान प्रयत्न करने लगे।
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