महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 116 श्लोक 43-64
षोडशाधिकशततम (116) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाराज! सेनापति विराट ने भी सिन्धुराज जयद्रथ की छाती में तीस तीखे बाणों द्वारा गहरी चोट पहुंचायी। उस संग्राम में मत्स्यराज और सिन्धुराज दोनों के ही धनुष और खड़ग विचित्र थे। वे दोनों ही विचित्र रूप धारण करके बड़ी शोभा पा रहे थे। द्रोणाचार्य उस महासमर में पांचालराजकुमार धृष्टद्युम्न से भिड़कर झुकी हुई गांठवाले बहुसंख्यक बाणोंद्वारा बड़ा भारी युद्ध किया। महाराज! तत्पश्चात द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न के विशाल धनुष को काटकर पचास गणों द्वारा उन्हें बींध डाला। तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले धृष्टद्युम्न ने दूसरा धनुष लेकर रणभूमि में द्रोणाचार्य के देखते-देखते उनके ऊपर बहुत से बाण चलाये। तदनन्तर महारथी द्रोण ने अपने बाणों के आघात से धृष्टद्युम्न के सारे बाणों को काट दिया और द्रुपद पुत्र पर पांच बाण चलाये। महाराज! तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले धृष्टद्युम्न ने कुपित हो द्रोणाचार्य पर गदा चलायी, जो रणभूमि में यमदण्ड के समान भयंकर थी। उस स्वर्ण पत्र विभूषित गदा को सहसा अपनी ओर आती देख द्रोणाचार्य ने युद्ध स्थल में पचासों बाण मारकर उसे दूर गिरा दिया। राजन! द्रोणाचार्य के धनुष से छूटे हुए उन बाणें द्वारा नानाप्रकार से छिन्न-भिन्न हुई वह गदा चूर-चूर होकर पृथ्वी पर बिखर गयी। अपनी गदा को निष्फल हुई देख शत्रुओं को संताप देने वाले धृष्टद्युम्न ने द्रोण के ऊपर पूर्णतः लोहे की बनी हुई सुन्दर शक्ति चलायी। भरत ! द्रोणाचार्य ने युद्ध स्थल में नौ बाण मारकर उस शक्ति के टुकडे़-टुकडे़ कर दिये और महाधनुर्धर धृष्टद्युम्न को भी उस रणक्षेत्र में बहुत पीड़ितकिया। महाराज! इस प्रकार द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न में भीष्म के लिये यह घोररूप एवं भयानक महायुद्ध हुआ। अर्जुन ने गंगानन्दन भीष्म के निकट पहुँच कर उन्हें तीखे बाणों द्वारा पीड़ित करते हुए बड़ी सावधानी के साथ उन पर चढाई की। ठीक वैसे ही, जैसे वन में कोई मतवाला हाथी किसी मदोन्मत्त गजराज पर आक्रमण कर रहा हो। तब प्रतापी एवं महाबली राजा भगदत्त ने मदान्ध गजराज पर आरूढ़ हो अर्जुन के ऊपर धावा किया उस हाथी के कुम्भस्थल में तीन जगह से मदकी धारा चू रही थी। देवराज इन्द्र के ऐरावत हाथी के समान उस गजराज को सहसा आते देख अर्जुन ने बड़ा यत्न करके उसका सामना किया। तब हाथी पर बैठे हुए प्रतापी राजा भगदत्त ने युद्ध में बाणों की वर्षा करके अर्जुन को आगे बढने से रोक दिया। अर्जुन ने भी अपने सामने आते हुए उस हाथी को चांदी के समान चमकीले लोहमय तीखे बाणों द्वारा उस महासमर में बींध डाला। महाराज! कुन्ती कुमार अर्जुन शिखण्डी को बार-बार यह प्रेरणा देते और कहते थे कि तुम भीष्म की ओर बढो और इन्हें मार डालो। पाण्डु के ज्येष्ठ भ्राता महाराज! तदनन्तर प्राग्ज्योतिष नरेश भगदत्त पाण्छुनन्दन अर्जुन को छोड़कर तुरंत ही द्रुपद के रथ की ओर चल दिये। महाराज! तबअर्जुन ने शिखण्डी को आगे करके बड़े वेग से भीष्म पर धावा किया। फिर तो भारी युद्ध छिड़ गया। तदनन्तर युद्ध में आपकेशूरवीर सैनिक कोलाहल करते और ललकारते हुए वेगशाली पाण्डुकुमार अर्जुन की ओर दौड़ पडे़। वह एक अदभुत सी बात थी। जनेश्वर! जैसे आकाश में फैले हुए बादलों को हवा छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार अर्जुन ने उस अवसर पर आपके पुत्रों की विविध सेनाओं को विनष्ट कर दिया।
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