महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 14 श्लोक 21-37
चतुर्दश (14) अध्याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवतद्गीता पर्व)
जो रणभूमि में महाबली जमदग्निनन्दन परशुराम से भी टक्कर लेने की सदा इच्छा रखते थे, जिनका पराक्रम इन्द्र के समान था और परशुरामजी भी जिन्हें पराजित न कर सके थे; संजय! महारथियों के कुल में प्रकट हुए वे महावीर भीष्म समरभूमि में किस प्रकार मारे गये, यह मुझे बताओ; क्योंकि मुझे शान्ति नहीं मिल रही है। संजय! कभी युद्ध के पीछे न हटने वाले भीष्मजी का मेरे पक्ष के किन महाधनुर्धरों ने साथ नहीं छोड़ा? दुर्योधन की आज्ञा पाकर किन-किन वीरों ने उन्हें सब ओर से घेर रक्खा था? संजय! जब शिखण्डी आदि समस्त पाण्डव वीरों ने भीष्म पर आक्रमण किया, उस समय समस्त कौरवों ने कहीं अच्युत भीष्म का साथ छोड़ तो नहीं दिया था? अवश्य ही मेरा यह हृदय लोहे के समान सुदृढ़ है, तभी तो पुरूषसिंह भीष्म को मारा गया सुनकर विदीर्ण नहीं होता हैं! जिन दुर्जय वीर भरतभूषण भीष्म में सत्य, मेघा और नीति- ये तीन अप्रमेय शक्तियां थी, वे युद्ध में कैसे मारे गये? वे युद्ध में महान् मेघ के समान ऊंचे उठे हुए थे। धनुष की टकार ही उनकी गर्जना थी, बाण ही उनके लिये वर्षा की बुंदें थीं और धनुष का महान् शब्द ही बिजली की गड़गड़ाहट का भयंकर शब्द था।
वीरवर भीष्म ने शत्रुपक्ष के रथियों- कुन्तीकुमारों, पाञ्चालों तथा सृंजयों को मारते हुए उनके ऊपर उसी प्रकार बाणों की बौछार की, जैसे वज्रधारी इन्द्र दानवों पर बाण-वर्षा करते हैं। उनका धनुष-बाण आदि अस्त्रसमुह भयंकर एवं दुर्गम समुद्र के समान था, बाण ही उसमें ग्राह थे, धनुष लहरों के समान जान पड़ता था, वह अक्षय, द्वीपरहित, चञ्चल तथा नौका आदि तैरने के साधनों से शून्य था। गदा ओर खङ्ग आदि ही उसमें मगर के समान थे। वह अश्वरूपी भंवरों से भयावह प्रतीत होता थे, पैदल सेना उसमें भरे हुए मत्स्यों के समान जान पड़ती थी तथा शंख और दुन्दुभियों की ध्वनि ही उस समुद्र की गर्जना थी। भीष्मजी उस समुद्र में शत्रुपक्ष के हाथियों, घोड़ों, पैदलों तथा बहुसंख्यक रथों को वेगपूर्वक डूबो रहे थे। वे समरभूमि में शत्रुवीर के प्राणों का अपहरण करने वाले थे। अपने क्रोध और तेज से दग्ध एवं प्रज्वलित से होते हुए शत्रुसंतापी भीष्म को जैसे तट समुद्र को रोक देता हैं उसी प्रकार किन वीरों ने आगे बढ़ने से रोका था।
शत्रुहन्ता भीष्म ने दुर्योधन के हित के लिये समरभूमि में जो पराक्रम किया था, वह अनुपम है। उस समय कौन –कौन से योद्धा उनके आगे थे? किन-किन वीरों ने अमित-तेजस्वी भीष्म के रथ के दाहिने पहिये की रक्षा की थी? किन लोगों ने दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करते हुए उनके पीछे की ओर रहकर शत्रुपक्ष के वीरों को आगे बढ़ने से रोका था? कौन-कौन से वीर निकट से भीष्म की रक्षा करते हुए उनके आगे खडे़ थे? और किन वीरों ने युद्ध में लगे हुए शूरशिरोमणि भीष्म के बायें पहिये की रक्षा की थी ? संजय! उनके बायें चक्र की रक्षा में तत्पर होकर किन-किन योद्धाओं ने सृंजयवंशियों का विनाश किया था? तथा किन्होंने आगे रहकर सेना के अग्रणी दुर्जय वीर भीष्म की सब ओर से रक्षा की थी? संजय! किन लोगों ने दुर्गम संग्राम में आगे बढ़ते हुए उनके पार्श्वभाग का संरक्षण किया था? और किन्होंने उस सैन्यसमूह में आगे रहकर वीरतपूर्वक शत्रुयोद्धाओं का डटकर सामना किया था?
« पीछे | आगे » |