महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 45 श्लोक 24-45
पञ्चत्वारिंश (45) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
इसके बाद आपके दुर्धर्ष पुत्र ने उस महायुद्ध नकुल के घोड़ोंको अपने सायकों द्वारा काट डाला और ध्वज को भी नीचे गिरा दिया। महाबली सहदेव उस महासमर में अपनी विजय के लिये बड़ा प्रयत्न कर रहे थे। उन्हें आपके पुत्र दुर्मूखने धावा करके अपने बाणों की वर्षा से घायल कर दिया। तबवीरवर सहदेव ने उस महायुद्ध में अत्यन्त तीखे बाण से दुर्मूख के सारथीको मार गिराया। वे दोनों युद्धदुर्मद वीर समरांगण में एक दूसरे से टक्कर लेकर पूर्वकृत अपराधों का बदला लेने की इच्छा रखते हुए भयंकर बाणों द्वारा एक दूसरे को भयभीत करने लगे। स्वयं राजा युधिष्ठिर मद्रराज शल्यपर आक्रमण किया। राजन्! मद्रराजने युधिष्ठिर के धुनष के टुकडे़ कर दिये। तब कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने उस कटे हुए धनुष को फेंककर दूसरा वेगयुक्त एवं प्रबलतर धनुष ले लिया और झुकी हुई गॉठवाले तीखे बाणों द्वारा मद्रराज शल्य को ढक दिया। फिर क्रोध में भरकर कहा-‘खडे़ रहो’ ‘खडे़ रहो’। भरतनन्दन ! एक ओर से धृष्टधुम्रने द्रोणाचार्य पर आक्रमण किया। तब द्रोणने अत्यन्त क्रुद्र होकर युद्ध में दूसरों के मारने के साधनभूत धृष्टधुम्र के सुदृढ़ धनुष के तीन टुकडे़ कर डाले। तदनन्तर ! उस रणक्षेत्र में उन्होनें द्वितीय कालदण्ड के समान अत्यन्त भयंकर बाण चलाया। वह बाण धृष्टधुम्र के शरीर में धॅस गया। तत्पश्चात् द्रुपदपुत्र धृष्टधुम्रने दूसरा धनुष लेकर चौदह सायक चलाये और उस युद्धभूमि द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। फिर तो वे दोनोंएक दूसरे पर अत्यन्त कुपित हो भीषण संग्राम करने लगे। महाराज ! वेगशाली शंख ने उस युद्ध में वेगवान् वीर भूरिश्रवा पर धावा किया और कहा- ‘खडे़ रहो’‘खडे़ रहा’। वीर शंख ने रणभूमि में भूरिश्रवा की दाहिनी भूजा विदीर्ण कर डाली; फिर भूरिश्रवा ने भी शंख के गले की हॅसलीपर बाण मारा। राजन् ! उस समरभूमि में इन्द्र और वृत्रासुर की भॉति उन दोनों अभिमानी वीरों में बड़ाभयंकर युद्ध हुआ। प्रजानाथ ! रणक्षेत्र में कुपित हुए बाह्रीक पर अपरिमित आत्मबल से सम्पन्न महारथी धृष्ट के तुने क्रोधपूर्वक आक्रमण किया।राजन्! अमर्षशील बाह्रीक ने समरांगण में बहुत से बाणों द्वारा धृष्टकेतु को पीड़ा दी और सिंह के समान गर्जना की। तब चेदिराज धृष्टकेतुने अत्यन्त क्रुद्ध होकर जैसे मतवाला हाथी किसी मदोन्मत्त गजराजपर हमला करता है, उसी प्रकार तुरन्त ही नौ बाण मारकर उस युद्धभूमि में बाह्रीक को क्षत-विक्षत कर दिया। उस रणभूमि में दोनों वीर परस्पर कुपित हो रोष में भरे हुए मंगल और बुध की भॉति बार-बार गर्जते हुए युद्ध कर रहे थे। जैसे इन्द्र ने युद्ध में बल नाम दैत्य पर चढाई की थी, उसी प्रकार क्रुरकर्मा घटोत्कच ने भयंकर कर्म करनेवाले अलम्बुष नामक राक्षसपर आक्रमण किया। भरतनन्दन! क्रोध में भरे हुए घटोत्कच ने नब्बे तीखे बाणों द्वारा उस महाबली राक्षस अल्म्बुष को विदीर्ण कर दिया। तब अलम्बुघने भी महाबली भीमसेनपुत्र घटोत्कच को झुकी हुई गॉठवाले बाणों द्वारा समरांग में बहुत प्रकार से घायल कर दिया। जैसे देवासुर-संग्राम में महाबली बलासुर ओर इन्द्र घायल हो गये थे, उसी प्रकार इस युद्ध में एक दूसरे के बाणों से क्षत विक्षत हो अलम्बुष और घटोत्कच अद्भूतशोभा धारण कर रहे थे।
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