महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 46 श्लोक 1-20
षट्चत्वारिंश (46) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
कौरव-पाण्डवसेना का घमासान युद्ध
संजय कहते है-भरतवंशी नरेश!उस रणभूमि में जहां-वहां लाखों सैनिकों का मर्यादाशुन्य युद्ध चल रहा था। वह सब आपको बता रहा हूं, सुनिये। न पुत्र पिता को पहचानता था, न पिता अपने और से पुत्र को। न भाई भाईको जानता था, न मामा अपने भानजे को। न भानजे ने मामा को पहचाना, न मित्र ने मित्र को । उस समय पाण्डव-योद्धा कौरव-सैनिकों के साथ इस प्रकार युद्ध करते थे, मानो उनमें किसी ग्रह आदि का आवेश हो गया हो। कुछ नरश्रेष्ठ वीर अपने रथोंद्वारा शत्रुपक्ष की रथसेना पर टूट पडे़। भरतश्रेष्ठ ! कितने ही रथों के जुएं विपक्षी रथों जूओं से ही टकराकर टूट गये।रथों के ईषादण्ड और कुबर भी सामने आये हुए रथों के ईषादण्ड और कुबरों से भिड़कर टुक-टुक हो गये। एक दूसरे को मार डालने की इच्छा रखनेवाले कितने ही रथ दूसरे रथों से आमने-सामने भिड़कर एक पग भी इधर-उधर चल न सके। गण्डस्थल से मदकी धारा बहानेवाले विशालकाय गज राज कुपित हो दूसरे हाथियों से टक्कर लेते हुए अपने दांतो के आघात से एक दूसरे को नाना प्रकार से विदीर्ण करने लगे। महाराज ! कितने ही हाथी तोरण और प्रताकाओं सहित वेगशाली महाकाय एवं श्रेष्ठ गजराजों से भिड़कर उनके दांतो के आघात से अत्यन्त पीड़ितहो आतुर भावसे चिग्घाड़ रहे थे। जिन्हें अनेक प्रकार की शिक्षाएं मिली थी तथा जिनका मद अभी प्रकट नहीं हुआ था, वे हाथी तोत्र और अंकुशों की चोट खाकर सम्मुख खडे़ हुए मदस्त्रावी गजराजों के सामने जाकर युद्ध के लिये डट गये। कुछ महान् गजराज मदस्त्रावी हाथियों से टक्कर लेकर क्रौंच पक्षी की भॉति चीत्कार करते हुए सब दिशाओं में भाग गये। अच्छी तरह शिक्षा पाये हुए कितने ही हाथी तथ श्रेष्ठ गज, जिनके गण्डस्थल से मद चू रहा था, ऋष्टि, तोमर और नाराचों से विद्ध होकर मर्म विदीर्ण हो जाने के कारण चिग्घाड़ते और प्राणशून्य हो धरती पर गिर पड़ते थे। कितने ही भयानक चीत्कार करते हुए सब दिशाओं में भाव जाते थे। महाराज ! हाथियों के पैरों की रक्षा करने वाले योद्धा, जिनके वक्षःस्थल विस्तृत एवं विशाल थे, अत्यंत क्रोध में भरकर इधर-उधर दौड़ रहे थे और हाथों में लिये हुए ऋष्टि, धनुष, चमकीले फरसे, गदा, मुसल, भिन्दिपाल, तोमर, लोहे की परिघ तथा तेज धारवाले उज्जवल सग आदि आयुधों द्वारा एक दूसरे के वध के लिये उत्सुक दिखायी दे रहे थे।परस्पर धावा करने वाले शूरवीरों के चमकीले खग मनुष्यों के रक्त से रंगे हुए देखे जाते थे। वीरों की भुजाओं से घुमाकर चलाये हुए खड्ग जब दूसरों के मर्म पर आघात करते थे, उस सम उनका भयंकर शब्द सुनायी पड़ता था। उस युद्धस्थल में गदा और मूसल के आघात से कितने ही मनुष्यों के अंग-भंग हो गये थे, कितने ही अच्छी श्रेणी के तलवारों से छिन्न-भिन्न हो रहे थे और कितनों को हाथियों ने कुचल दिया था। इस प्रकार असंख्य मनुष्यों के समुदाय अधमरे-से होकर एक दूसरे को पुकार रहे थे। भारत ! उसके वे भयंकर आर्तनाद प्रेतों के कोलाहल के समान श्रवणगोचर हो रहे थे।चॅवर और कलंगीसे सुशोभित हंस-तुल्य सफेद एवं महान् वेगशाली घोड़ोंपर बैठे हुए कितने ही घुड़सवार एक दूसरे पर धावा कर रहे थे।
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